संस्कृत को आधिकारिक भाषा बनाने पर विचार किया जाए - न्या. बोबडे
डिजिटल डेस्क, नागपुर. भारत में प्रशासन और अदालतों के कामकाज की भाषा क्या हो, इस पर कई मत हैं, लेकिन एक बात स्पष्ट है कि अंग्रेजी के प्रभुत्व वाली इस कार्यप्रणाली में क्षेत्रीय भाषा में कामकाज की मांग होती है। अदालतें भी इससे अछूती नहीं हैं। ऐसे में मुझे डॉ. बाबासाहब आंबेडकर द्वारा संविधान सभा में रखे गए उस प्रस्ताव की याद आती है, जिसमें उन्होंने संस्कृत को देश के आधिकारिक कामकाज की भाषा बनाने का पक्ष लिया था। इस पर संविधान सभा के कई प्रतिष्ठित सदस्यों ने हस्ताक्षर भी किए, लेकिन संस्कृत की जगह यह दर्जा हिंदी को मिला। अब वक्त है कि डॉ. आंबेडकर के उस प्रस्ताव पर फिर से विचार किया जाए। संस्कृत को केवल देवभाषा नहीं, बल्कि देश के आधिकारिक कामकाज की भाषा क्यों न बनाया जाए? भारत के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश शरद बोबडे ने शुक्रवार को संस्कृत भारती के अखिल भारतीय छात्र सम्मेलन के उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता करते हुए यह विचार रखे। कार्यक्रम रेशमबाग स्थित भट सभागृह में आयोजित किया गया था।
एक धर्म तक सीमित नहीं : न्या.बोबडे ने कहा कि संस्कृत देश की सबसे प्राचीन और संपन्न भाषा है। यह किसी एक धर्म तक सीमित नहीं है। यह तो साहित्य, विज्ञान, कानून, दर्शन जैसे विषयों पर बात करती है। अन्य कई भाषाओं ने अपने शब्द संस्कृत भाषा से ही लिए हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें, तो नासा के एक वैज्ञानिक ने अपने शोध पत्र में संस्कृत को कंप्यूटर के लिए सबसे उपयुक्त भाषा माना है। ऐसे में संस्कृत भाषा का धर्मनिरपेक्ष तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है।
नई शिक्षा नीति में प्रबंध : भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष और सांसद तेजस्वी सूर्या कार्यक्रम के उद्घाटक थे। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति में संस्कृत संवर्धन पर बहुत जोर दिया गया है। संस्कृत देवभाषा है, भारतीय जीवन पद्धति का व्याकरण है। गीता परिवार संपादक व राम जन्मभूमि न्यास के कोषाध्यक्ष स्वामी गोविंद देव गििर ने देश की एकता कायम रखने के लिए संस्कृत को जरूरी बताया। कार्यक्रम की प्रस्तावना संस्कृत भारती के महामंत्री सत्यनारायण भट ने रखा। स्वागत समिति अध्यक्ष उद्योगपति सत्यनारायण नुवाल ने स्वागत भाषण दिया। संस्कृत भारती अध्यक्ष प्रा.गोपबुधू मिश्र ने कार्यक्रम की रूपरेखा रखी। स्वामी गोविंददेव गिरि के हाथों ज्ञानेश्वरी के संस्कृत अनुवाद प्रति का विमोचन किया गया है। कवि कुलगुरु कालिदास संस्कृत विवि के कुलगुरु डॉ. मधुसूदन पेन्ना ने यह अनुवाद किया है। संचालन संस्कृत भारती के विदर्भ प्रांत मंत्री भरत कुमार पंडा ने किया। आभार प्रदर्शन प्रांत उपाध्यक्ष श्रीनिवास वर्णेकर ने किया। प्रचार प्रमुख शिरीष भेडसगावकर, संगठन मंत्री दिनेश कामत, संपर्क प्रमुख शिरीष देवपुजारी, संस्कृत विदुषी लीना रस्तोगी, डॉ. प्रा. विजय कुमार मेनन व अन्य अतिथियों की कार्यक्रम में उपस्थिति थी।
Created On :   28 Jan 2023 2:45 PM IST