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शिक्षा में शामिल हो संत साहित्य, भारतीय संत साहित्य उच्च शिक्षण सम्मेलन में उठी मांग
डिजिटल डेस्क, मुंबई। संत साहित्य जीवन दर्शन का दाता है। शिक्षा का उद्देश्य मानव निर्मित है। इससे पहले संतों ने लोकतंत्र, सदभाव और अंत्योदय के बहुत महत्वपूर्ण विचार दिए है। यह विचार भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) के अध्यक्ष एवं सांसद डॉ. विनय सहस्त्रबुद्धे ने व्यक्त किए। वे पुणे के एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी और श्रीक्षेत्र आलंदी देहु कैंपस डेवलमेंट कमिटी आलंदी द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित पहले भारतीय संत साहित्य उच्च शिक्षण सम्मेलन के समापन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. विश्वनाथ कराड ने की।
डॉ सहस्त्रबुध्दे ने कहा, संत ज्ञानेश्वर कहते थे कि जो जे वांछिले तो ते लाभो, आज के दौर में लोकतंत्र यह इस शब्द का अर्थ है। उसके बाद वह समाज के दृष्टिकोण को आकार देने के लिए सद्भाव के विचार रखे। आगे चलकर यही विचार डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर द्वारा प्रस्तुत किया गया। संतों ने भी उपेक्षित तत्वों को न्याय दिलाने के लिए अंत्योदय का विचार किया। अंत्योदय के इस विचार को महात्मा गांधी ने बहुत महत्व दिया है। यदि किसी संत के विचार को आधुनिक काल से जोडा जाए तो वह मानव निर्मित है। डॉ. विजय भटकर ने कहा कि लोगों को सच्चाई से अवगत कराना शिक्षा है। मैं कौन हूं इसका विचार अध्यात्म में है। इसलिए सत्य को जानने के लिए संत साहित्य को शिक्षा में शामिल करना चाहिए। इस सृष्टि में हजारों संस्कृतियां आई और कालांतर में वे लुप्त हो गई। लेकिन भारतीय संस्कृति बची हुई है और उसका पुनर्जन्म हुआ है। इसमें संत साहित्य शामिल है।
स्वामी सुमेधानंद सरस्वती ने कहा कि भारतीय शिक्षा प्रणाली को समृध्द करने के लिए संत साहित्य बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकांनद कहते थे कि मनुष्य अपनी मां की गोद में, पिता की संगति में, घर के आंगन में, गांव की गलियों में और स्कूल में परिपूर्ण होता है। डॉ. विश्वनाथ कराड ने कहा किसंत साहित्य के माध्यम से मनुष्य ने यह संदेश दिया है कि कैसे जीना है और कैसे नहीं जीना है। भारतीय संतों ने सभी मानव जाति के उत्थान और कल्याण के लिए धर्मशास्त्र और आध्यात्मिकता का ज्ञान उपलब्ध कराया है।
रविदास महाराज ने कहा-मनुष्य में दोषों को खत्म करने के लिए उसपर संस्कार होना जरूरी है। जब बच्चे के मन में यह संस्कार दिया जाएगा तो उसके व्यक्तित्व का पता चल सकेगा। इसलिए संतों के साहित्य को पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाए। बापूसाहेब मोरे न कहा कि यह सम्मेलन संतों के विचारों को जमीनी स्तर से उच्च शिक्षा तक पहुंचाने के लिए महत्वपूर्ण है। सांसद महंत बाल नाथयोगी ने भी कहा कि समाज सेवा मनुष्य का पहला कर्तव्य है। इसके लिए हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए और उस कार्य को पूरा करना चाहिए जो ईश्वर ने हमें दिया है।
Created On :   19 July 2021 9:05 PM IST