विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार नीति महिला सशक्तिकरण और पंचायत स्तर तक मजबूती देगी विज्ञान और प्रौद्योगिकी का राज्य स्तरीय वेबिनार सम्पन्न

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विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार नीति महिला सशक्तिकरण और पंचायत स्तर तक मजबूती देगी विज्ञान और प्रौद्योगिकी का राज्य स्तरीय वेबिनार सम्पन्न

डिजिटल डेस्क, टीकमगढ़। कोविड-19 से हुए बदलाव को केन्द्र में रखकर बनाई जा रही नई विज्ञान नीति में महिला सशक्तिकरण और पंचायतों तक पर जोर दिया जाएगा। भारत में स्वतंत्रता के बाद चार विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी नीतियों का निर्माण हो चुका है। पांचवी और नई विज्ञान नीति के निर्माण की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है। इस नीति में महिलाओं के सशक्तिकरण और पंचायतों तक पहुंचने पर विशेष जोर दिया जा रहा है। यह विचार विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के एडवाइजर एवं समूह प्रमुख डॉ. अखिलेश गुप्ता ने ‘विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार नीति-2020 और राज्यों से अपेक्षाएँ’ विषय पर दूसरे दौर में राज्य-स्तरीय ऑनलाइन विचार-विमर्श में विस्तार से जानकारी देते हुए व्यक्त किये। दूसरे दौर के विमर्श में विश्वविद्यालयों के कुलपतियों, वैज्ञानिक संस्थानों के निदेशकों और वैज्ञानिकों ने भाग लिया। डॉ. गुप्ता ने नवीन विज्ञान नीति की विशेषताओं को रेखांकित करते हुए बताया कि स्वतंत्रता के बाद पहली विज्ञान नीति का निर्माण वर्ष 1958 में किया गया था। दूसरी विज्ञान नीति वर्ष 1983 और तीसरी विज्ञान नीति वर्ष 2003 में बनाई गई। चौथी विज्ञान नीति का निर्माण दस वर्ष बाद वर्ष 2013 में किया गया, जिसमें नवाचारों को शामिल किया गया था। उन्होंने बताया कि पांचवी और नवीन विज्ञान नीति कोविड-19 महामारी के बाद समाज में हुए व्यापक बदलाव को केन्द्र में रखकर तैयार की जा रही है। डॉ. गुप्ता ने कहा कि अभी तक चारों विज्ञान नीतियों को बनाने में वैज्ञानिकों का योगदान रहा था, लेकिन नई विज्ञान नीति में सभी राज्यों की विज्ञान परिषदों और नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को भी शामिल किया गया है। मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् के महानिदेशक और एसटीआईपी 2020 के राज्य-स्तरीय विचार-विमर्श के नोडल अधिकारी डॉ. अनिल कोठारी ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि समाज को विज्ञान और वैज्ञानिकों से बड़ी अपेक्षाएँ हैं। नवीन विज्ञान नीति-2020 का सृजन कोविड-19 की चुनौतियों के बीच हो रहा है, जिसमें समग्रता पर पूरा ध्यान दिया जा रहा है। विज्ञान भारती, नई दिल्ली के सचिव श्री प्रवीण रामदास ने अपने उद्बोधन में नवीन विज्ञान नीति में स्वदेशी प्रौद्योगिकी और नवाचारों को महत्व देने को एक अच्छा कदम बताया। स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर, दिल्ली, बोर्ड ऑफ गर्वनर एवं विज्ञान भारती के प्रेसीडेंट डॉ. अमोघ गुप्ता ने अपने आरंभिक उदबोधन में कहा कि नई विज्ञान नीति का मूल उद्देश्य स्वदेशी भावना का सशक्तिकरण और प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत के आव्हान को साकार करना है। नई विज्ञान नीति को लेकर क्या सोचते हैं विशिष्टजन प्रो.रामदेव भारद्वाज, कुलपति, अटलबिहारी वाजपेयी हिन्दी विशवविद्यालय ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि समाज में अवैज्ञानिक सोच को रोकने के लिए साइंटिफिक टेम्पर को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान दौर में विज्ञान के विकेन्द्रीकरण पर भी ध्यान केन्द्रित करना चाहिये। श्री नदंकुमारम, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, मेपआईटी ने कहा कि नई नीति में पुराने ढर्रे से बाहर निकलकर ट्रेक चेंज करना चाहिये। उन्होंने कहा कि समाज में बड़ी कंपनियों के नवाचार दिखाई दे रहे हैं, जबकि बहुत छोटे स्तर पर और स्थानीय नवाचार नदारद हैं। डॉ. पंकज श्रीवास्तव, भारतीय वन प्रबंधन संस्थान ने जन-जातीय समाज की परम्पराओं में मौजूद विज्ञान को सामने लाने के लिए एक प्लेटफॉर्म बनाने का सुझाव दिया। उन्होंने लैब-टू-लैंड प्रोग्राम को पलटने और आम लोगों में प्रभावी विज्ञान के प्रसार पर जोर दिया। प्रो. अखिलेश पांडेय, कुलपति विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ने नई विज्ञान नीति में राज्यों की विज्ञान परिषदों की भूमिका के विस्तार और विज्ञान की उपलब्धियों को पंचायतों तक पहुंचाने का सुझाव दिया। डॉ. नरेन्द्र सिंह रघुवंशी, निदेशक, मैनिट, भोपाल ने कहा कि प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों में अनुसंधान और विकासखंड स्थापित करना चाहिये। अच्छी रिसर्च के वित्तीय पोषण के लिए एक मैकेनिज्म बनाना चाहिये। उन्होंने रिसर्च की क्वालिटी में गिरावट पर चिंता जताई। डॉ. अपरूपदास, निदेशक, आईसीएमआर-एनआईआरटीएच, जबलपुर ने जन-जातियों के परंपरागत ज्ञान-विज्ञान को पब्लिक डोमेन में पहुंचाने के लिए समग्र एप्रोच अपनाने का सुझाव दिया। उन्होंने जन-जातियों में न्यूट्रीशन जागरूकता के प्रसार पर जोर दिया। प्रो. टी. ठाकुर, मैनिट, भोपाल ने प्रस्तावित विज्ञान नीति में ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े मुद्दों को सम्मिलित करने का सुझाव दिया। डॉ. के. पात्रा, निदेशक, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ %B

Created On :   29 Sept 2020 3:55 PM IST

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