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सड़क दुर्घटना में विकलांग हुई बच्ची के लिए मुआवजे पर मुहर, बेटे ने वापस ली पिता के खिलाफ दायर याचिका
डिजिटल डेस्क, मुंबई। महज पांच साल की उम्र में सड़क हादसे के चलते स्थायी रुप से दिव्यांग हुई बच्ची अपनी चोट के चलते मसूमियत भरे जीवन के आनंद से वंचित हुई है। इसके साथ ही चोट के चलते उसकी शिक्षा व भविष्य से जुड़ी संभावनाए भी प्रभावित हुई है। यह बात कहते हुए बांबे हाईकोर्ट ने बच्ची को मुआवजा देनेवाले ठाणे के मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल के आदेश को कायम रखा और बीमा कंपनी की अपील को खारिज कर दिया है। ट्रिब्यूनल ने मई 2017 में बच्ची को हादसे के चलते आई शारिरिक चोट के मद्देनजर मुआवजे के रुप में आठ प्रतिशत ब्याज के साथ कुल 10 लाख 68 हजार 301 रुपए प्रदान किए थे। इस बारे में ट्रिब्यूनल में बच्ची के माता-पिता ने दावा दायर किया था। बीमा कंपनी (रिलांयस जनरल इंश्योरेंस) ने ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी। न्यायमूर्ति भारती डागरे के सामने अपील पर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान बीमा कंपनी की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने कहा कि जिस ट्रक से हादसा हुआ था। उसके ड्राइवर के पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था। ट्रक का फिटनेस प्रमाणपत्र व परमिट भी नहीं था। इस तरह से ट्रक मालिक ने बीमा से जुड़े नियम व शर्तों का उल्लंघन किया है। इसके अलावा बच्ची सड़क पर लापरवाहीपूर्ण ढंग से चल रही थी। जिसके चलते 9 अप्रैल 2011 को बच्ची को दुर्घटना का सामना करना पड़ा है। इस दौरान उन्होंने बच्ची के उपचार के खर्च को लेकर भी सवाल उठाया और बच्ची की विवाह से जुड़ी संभावना प्रभावित होने के लिए अलग से एक लाख रुपए देन पर भी आपत्ति जताई। वहीं बच्ची के माता-पिता के वकील ने ट्रिब्यूनल के आदेश को उचित बताया और कहा कि मुआवजे की रकम से यदि एक लाख कम कर दिया जाता है तो उन्हें आपत्ति नहीं है। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति ने कहा कि ट्रिब्यूनल की ओर से उपचार के खर्च के रुप में दी गई राशि में हस्तक्षेप करने की जरुरत नजर नहीं आती है। सड़क हादसे में बच्ची पैर में चोट लगी है। इसके चलते वह स्थायी रुप से दिव्यांग हो गई है।इस हादसे का बच्ची के शारिरिक व मानसिक स्थिति पर विपरीत असर पड़ा है। वह सामान्य बच्चों की तरह जीवन नहीं जी पाएगी। इस सड़त दुर्घटना के चलते उसकी शिक्षा व भविष्य़ से जुड़ी संभावनाएं प्रभावित हुई है। इसलिए मुआवजे की कुल रकम में से एक लाख रुपए की रकम को कम कर बाकी मुआवजे के आदेश को कायम रखा जाता है। किंतु बीमा कंपनी ने मुआवजे की एक लाख रुपए की रकम को लेकर आपत्ति जताई थी। जिसे देखते हुए कोर्ट ने एक लाख रुपए कम कर दिए लेकिन नौ लाख 68 हजार रुपए मुआवजे की रकम को कायम रखा।
बेटे ने वापस ली पिता के खिलाफ दायर याचिका, रेमंड के पूर्व अध्यक्ष सिंघानिया की आत्मकथा का मामला
उधर रेमंड कंपनी ने अपनी कंपनी के पूर्व चेयरमैन विजयपत सिंघानिया की आत्मकथा से जुड़ी किताब (एन इनकंप्लीट लाइफ) की रिलीज को लेकर बांबे हाईकोर्ट में दायर की गई न्यायालय की अवमानना याचिका को वापस ले लिया है और राहत के लिए ठाणे जिला न्यायालय में जाने की बात कही है। रेमंड समूह के मौजूदा चेयरमैन गौतम सिंघानिया विजयपत सिंघानिया के बेटे हैं। पिता-पुत्र में लंबे समय से विवाद चल रही। बुधवार को हाईकोर्ट की खंडपीठ की ओर से दिए आदेश तहत गुरुवार को अवकाशकालीन न्यायमूर्ति माधव जामदार के सामने फिर मामले की सुनवाई हुई। सिंघानिया व उनके बेटे के बीच किताब की रिलीज को लेकर कानूनी विवाद चल रहा है। मामले से जुड़े तथ्यों व ठाणे कोर्ट के आदेश पर गौर करने के बाद न्यायमूर्ति ने मौखिक रुप से कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि कंपनी ने शुरुआत में इस मामले की सुनवाई करनेवाले एकल न्यायमूर्ति को ठाणे कोर्ट के आदेश को लेकर गुमराह किया है। कंपनी की ओर से ठाणे कोर्ट के आदेश को गलत तरीके से दर्शाया गया है। न्यायमूर्ति की इस टिप्पणी के मद्देनजर कंपनी की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता ने न्यायमूर्ति से याचिका को वापस लेने की अनुमति देने का आग्रह किया। जिसे स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति ने याचिका को वापस लेने की इजजात दे दी और कंपनी को ठाणे कोर्ट में जाने की छूट दी। इससे पहले कंपनी ने हाईकोर्ट में न्यायालय की अवमानना याचिका दायर कर दावा किया था कि किताब में मानहानि पूर्ण बाते हो सकती हैं। इसलिए ठाणे कोर्ट ने किताब की बिक्री पर रोक लगा दी थी। इसके बावजूद विजयपत सिंघानिया ने 31 अक्टूबर 2021 को किताब के 232 पेज रिलीज कर दिए थे। इसलिए कंपनी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। क्योंकि दीवाली के चलते ठाणे कोर्ट बंद है।
Created On :   11 Nov 2021 8:58 PM IST