महाराष्ट्र सरकार का मराठा आरक्षण वाला एसईबीसी अधिनियम असंवैधानिक

SEBC Act of Maratha Reservation of Maharashtra Government unconstitutional
महाराष्ट्र सरकार का मराठा आरक्षण वाला एसईबीसी अधिनियम असंवैधानिक
महाराष्ट्र सरकार का मराठा आरक्षण वाला एसईबीसी अधिनियम असंवैधानिक

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मराठा समुदाय को सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण देने वाले महाराष्ट्र सरकार के सामाजिक और शैक्षणिक रुप से पिछड़े वर्ग (एसईबीसी) अधिनियम को असंवैधानिक करार दिया है। साथ ही शीर्ष अदालत ने बुधवार को सुनाए फैसले में यह भी कहा कि इंदिरा साहनी केस में 50 फीसदी आरक्षण की सीमा तय करने वाले फैसले पर फिर से विचार करने की जरुरत नहीं है। पांच जजों की पीठ में जस्टिस अशोक भूषण, एल नागेश्वर राव, एस अब्दुल नजीर, हेमंत गुप्ता और रवीन्द्र भट ने अपने फैसले में कहा कि इंदिरा साहनी केस के फैसले के अनुसार मराठा आरक्षण 50 फीसदी सीमा का उल्लंघन करता है। पीठ ने कहा कि मराठा समुदाय को आरक्षण देने के लिए उन्हें शैक्षमिक और सामाजिक तौर पर पिछड़ा वर्ग नहीं कहा जा सकता है। मराठा आरक्षण लागू करने के लिए 50 फीसदी की सीमा को तोड़ने का कोई संवैधानिक आधार नहीं है और न ही कोई असाधारण स्थिति है। कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार का 2018 का अधिनियम समानता के सिद्धातों का उल्लंघन करता है और 50 प्रतिशत से अधिक की सीमा स्पष्ट रुप से संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करती है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इंदिरा साहनी में निर्धारित आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा अच्छा कानून है। लिहाजा इसके फैसले को एक बड़ी बेंच के पास भेजने के त र्क में हमे कोई तथ्य नहीं मिलता है। इस न्यायालय द्वारा उक्त निर्णय का बार-बार पालन किया गया है। कोर्ट ने आगे कहा कि न तो गायकवाड़ आयोग की रिपोर्ट और न ही बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले ने मराठों के मामले में असाधारण स्थिति को 50 प्रतिशत से अधिक कर दिया है। हालांकि, पीठ ने स्पष्ट किया कि यह फैसला 9 सितंबर 2020 तक किए गए मराठा कोटा के तहत पीजी मेडिकल प्रवेश को प्रभावित नहीं करेगा।

इसके पहले बॉम्बे हाईकोर्ट में इस आरक्षण को 2 मुख्य आधारों पर चुनौती दी गई। पहला इसके पीछे कोई उचित आधार नहीं है। इसे सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए दिया गया है। दूसरा यह 1992 में इंदिरा साहनी केस में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत रखने के दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन करता है, लेकिन जून 2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस आरक्षण के पक्ष में फैसला दिया। कोर्ट ने माना कि असाधारण स्थितियों में किसी व र्ग को आरक्षण दिया जा सकता है।हालांकि, कोर्ट ने आरक्षण को घटाकर नौकरी में 13 और उच्च शिक्षा में 12 प्रतिशत कर दिया था।  

न्यायपालिका ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण क्यों जारी रखा

इस मामले से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील सुहास कदम ने कहा कि मराठा आरक्षण पर फैसला न्याय के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि मराठा आरक्षण अगर 50 फीसदी सीमा का उल्लंघन करता है तो यह सीमा तो पहले ही टूट गई जब केन्द्र सरकार ने संविधान संशोधन कर गरीब सवर्णों को आर्थिक आधार पर (ईडब्ल्यूएस) 10 प्रतिशत आरक्षण दे दिया। न्यायपालिका ईडब्ल्यूएस आरक्षण को जारी रखती है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट का आज का फैसला अलग हो सकता था अगर केन्द्र सरकार इसके पक्ष में कोर्ट में ठोस भूमिका रखती। अब भी केन्द्र सरकार के पास अवसर है। वह इस फैसले को चुनौती दे सकती है।

26 से अधिक राज्यों में 50% से ज्यादा आरक्षण

मराठा आरक्षण मामले में मुख्य हस्तक्षेप याचिकाकर्ता दाते पाटील ने कहा कि देश के 26 से अधिक राज्यों ने 50% से अधिक आरक्षण दिया है। यह सभी राज्य इस मामले में प्रतिवादी थे। उन्होंने सवाल उठाया कि ऐसे में एक राज्य को अलग और दूसरे राज्य को अलग न्याय क्यों? उन्होंने कहा कि केन्द्र द्वारा नियुक्त मेजर जनरल आर सी सिन्हा और सांसद सुदर्शन नच्चीअप्पन समिति ने अपनी रिपोर्ट में आरक्षण की सीमा बढाने के बारे में सिफारिश की है। मेरी मांग है कि लोकसभा और राज्यसभा के पटल पर रखे इस रिपोर्ट को तत्काल मंजूरी देने की जरुरत है। इसके लिए सभी राजनीतिक दलों ने विशेष अधिवेशन बुलाने की मांग करना चाहिए।

 

एनएचआरसी का अस्पतालों में घटित हादसों की शिकायत पर महाराष्ट्र सरकार को नोटिस

कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर से बेकाबू हुए हालातों के बीच अस्पतालों में आग और ऑक्सीजन लीक के हादसों को लेकर एडवोकेट राजसाहेब पाटील की शिकायत पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किया है। एड पाटील ने एनएचआरसी से शिकायत में बीते चार महीने के दौरान अस्पतालों में घटित कई हादसों का जिक्र किया था, जिसमें 9 जनवरी 2021 को भंडारा के एक अस्पताल के सिक न्यूबोर्न केयर यूनिट में आग लगने से 1 से 2 महीने 10 नवजात शिशुओं की मौत, 27 मार्च को मुंबई के एक अस्पताल में आग, 10 अप्रैल को नागपुर के एक असपताल में आग, 21 अप्रैल को नासिक स्थित डॉ जाकिर हुसैन अस्पताल में टैंकर से ऑक्सीजन सप्लाई के दौरान हुए लीकेज से 24 मरीजों की मौत और 23 अप्रैल को मुंबई के विरार स्थित विजय वल्लभ कोविड केयर अस्पताल में के आईसीयू में लगी आग में 13 मरीजों की मौत आदि शामिल है। एनएचआरसी ने अपने आदेश में कहा है कि शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि इन स्थानों पर इस तरह की घटनाएं लापरवाही, पर्यवेक्षण की कमी, अग्नि सुरक्षा उपायों की कमी के साथ अन्य एहतियाती उपायों का अभाव के कारण घटित हुए है। अपने कर्तव्य के निर्वहन में लोकसेवकों द्वारा लापरवाही बरतना भी एक कारण है। शिकायत में इन हादसों के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों पर कड़ी कारवाई के आदेश देने संबंधी राज्य सरकार को निर्देश देने की मांग की गई। इस पर आयोग ने राज्य के मुख्य सचिव, स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव और फायर स र्विस विभाग के निदेशक को नोटिस जारी करते हुए मामले में की गई कार्रवाई के संबंध में चार सप्ताह के भीतर रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा है।

Created On :   5 May 2021 8:10 PM IST

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