बाईक के लिए पैसे मांगना क्रूरता नहीं, निचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट ने माना सही 

Seeking money for a bike is not cruel - ‌Bombay High Court
बाईक के लिए पैसे मांगना क्रूरता नहीं, निचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट ने माना सही 
बाईक के लिए पैसे मांगना क्रूरता नहीं, निचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट ने माना सही 

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने पर्याप्त भोजन न देने व मोटर साइकिल के लिए पैसे मांगने के अारोप को क्रूरता मानने से इंकार कर दिया है। यहीं नहीं हाईकोर्ट ने क्रूरता व आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले से बरी किए पति व उसके रिश्तेदारों के रिहाई के आदेश को बरकरार रखा है। निचली अदालत ने इस मामले में आरोपी विजय बोंबले व उसके पांच रिश्तेदारों को भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए, 306, 302 व 34 के आरोपों के तहत सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था। निचली अदालत के इस आदेश के खिलाफ राज्य सरकार ने बांबे हाईकोर्ट में अपील की थी। न्यायमूर्ति के. आर. श्रीराम के सामने राज्य सरकार की अपील पर सुनवाई हुई। मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद न्यायमूर्ति ने पाया 27 मई 2001 को  बोंबले का विवाह जयश्री के साथ हुआ था। विवाह के कुछ महीने बाद जयश्री ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। इसके बाद जयश्री के पिता ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत में जयश्री के पिता ने दावा किया था कि उनकी बेटी ने उन्हें बताया था कि उसे पर्याप्त भोजन नहीं दिया जाता है। मायके से हिरोहांडा मोटरसाइकिल के लिए पैसे लाने के लिए कहा जा रहा है। उनकी बेटी ने अपने पति की यातना से तंग आकर आत्महत्या की है। शुरुआत में पुलिस ने इस मामले में आरोपियों पर 302 के तहत आरोप लगाया था। लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद पता चला कि जयश्री ने आत्महत्या की थी। इसके बाद हत्या के आरोप को हटा लिया गया था। न्यायमूर्ति ने मामले से जुड़े सबूतों पर गौर करने के बाद पाया कि जयश्री के पति के पास शादी के पहले से मोटरसाइकिल थी। जिसके कर्ज का भुगतान भी हो गया था। उसकी माली हालत भी ठीक थी। ऐसे में मोटरसाइकिल के लिए पैसे मांगने का आरोप आधारहीन दिख रहा है। न्यायमूर्ति ने कहा कि इस मामले में जयश्री के पति ने उसे आत्महत्या के लिए उकसाया था। इसको लेकर भी हमारे सामने सबूत नहीं हैं। इस मामले में लगाए गए आरोप आम नजर आ रहे हैं। इसलिए हम पुणे कोर्ट के 29 मई 2003 के  रिहाई के आदेश को बरकरार रखते हैं। यह कहते हुए न्यायमूर्ति ने राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया। 

 

सबूतों के अभाव में दुष्कर्म का दोषी बरी

बांबे हाईकोर्ट ने मेडिकल सबूतों के अभाव में दुष्कर्म के मामले में दोषी पाए गए एक आरोपी को बरी कर दिया है। निचली अदालत ने इस मामले में आरोपी धानाजी शिंदे को आठ साल के कारावास की सजा सुनाई थी। शिंदे पर मानसिक रुप से कमजोर एक युवती के साथ दुष्कर्म करने का अारोप था। अभियोजन पक्ष के मुताबिक पीड़ित लड़की जब घर में अकेली थी तो उसने पीड़िता के साथ दुष्कर्म किया था। खेत से आने के बाद पीड़िता के घरवालों ने आरोपी को देखा था। वहीं आरोपी ने खुद पर लगे आरोपों का खंडन किया था। न्यायमूर्ति नितिन सांब्रे के सामने शिंदे की अपील पर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति ने पाया कि इस मामले में ऐसे मेडिकल जांच के सबूत नहीं पेश किए गए जिससे आरोपी पर लगे आरोपों को साबित करते हो। इसके साथ ही फोरेंसिक सबूत भी अपुष्ट नजर आ रहे हैं। पीड़िता के धोए हुए कपड़े जांच के लिए भेजे गए थे। निचली अदालत में इस मामले में पीड़िता की जांच करनेवाले डाक्टर को भी गवाह के रुप में नहीं बुलाया गया है। इस स्थिति में आरोपी को सुनाई गई सजा को यथावत नहीं रखा जा सकता है। यह कहते हुए न्यायमूर्ति ने आरोपी शिंदे को मामले से बरी कर दिया और निचली अदालत के आदेश को खारिज कर दिया। 
 

Created On :   25 Dec 2019 6:55 PM IST

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