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शक्तिमिल गैंगरेप मामले में फैसला सुरक्षित - फांसी की सजा पाए तीनों आरोपियों ने दायर की थी याचिका
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने शक्तिमिल सामूहिक दुष्कर्म मामले में आरोपियों की ओर से दायर याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है। निचली अदालत ने इस मामले से जुड़े तीनों आरोपियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 376ई के तहत फांसी की सजा सुनाई है। तीनों आरोपियों ने हाईकोर्ट में इस धारा की वैधानिकता को चुनौती दी है और इसे रद्द करने की मांग की है। याचिका में आरोपियों ने दावा किया है कि अभियोजन पक्ष ने उनके मामले में गलत तरीके से इस धारा को लगाया है।
इस धारा के तहत दुष्कर्म के अपराध को दोहरानेवाले के लिए फांसी की सजा का प्रावधान किया गया है। न्यायमूर्ति बीपी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति रेवती मोहिते ढेरे की खंडपीठ के सामने आरोपियों का पक्ष रखनेवाले अधिवक्ता युग चौधरी ने दावा किया है कि धारा 376ई आतर्किक है। यह धारा मनमानी व भेदभाव पूर्ण है। यह संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत है। इसलिए इसे रद्द किया जाए। निर्भया कांड के बाद पैदा हुए जनाक्रोश के आधार पर कानून में इस तरह की धारा जोड़ना उचित नहीं। दुष्कर्म पीड़िता का पुनर्वास संभव है। सरकार की ओर से पीड़िता के पुनर्वास के लिए उपलब्ध कराई गई निधि का इस्तेमाल ही नहीं हो पाता। उन्होंने कहा कि वर्मा कमेटी ने सरकार को पुलिस की गश्त बढाने व कैमरा लगाने का भी सुझाव दिया था लेकिन सरकार ने इन सिफारिशों को लागू करने की बजाय 376ई को लाना उचित समझा।
जबकि भारतीय दंड संहिता में संसोधन के जरिए इस धारा को जोड़ने वाली केंद्र सरकार की ओर से पैरवी कर रहे एडीशनल सालिसिटर जनरल अनिल सिंह ने धारा 376ई को न्यायसंगत ठहराया था। उन्होंने दावा किया था कि दुष्कर्म के अपराधियों को कड़ा सजा देने के लिए व दुष्कर्म के अपराध को रोकने के लिए इस धारा को लाया गया है। राज्य के महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणी ने एडिशनल सालिसिटर जनरल श्री सिंह के तर्को का समर्थन करते हुए दुष्कर्म को हत्या से बड़ा अपराध बताया था। मामले से जुड़े सभी पक्षों को सुनने के बाद मंगलवार को खंडपीठ ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया।
Created On :   5 March 2019 7:52 PM IST