भाजपा को मिले झटके, कांग्रेस और शिवसेना ने भी ठोंकी ताल

Shock to BJP, Congress and Shiv Sena also came on political beat
भाजपा को मिले झटके, कांग्रेस और शिवसेना ने भी ठोंकी ताल
भाजपा को मिले झटके, कांग्रेस और शिवसेना ने भी ठोंकी ताल

डिजिटल डेस्क, नागपुर। साल की पहली तिमाही में ही कोरोना के संकट ने हर क्षेत्र को प्रभावित किया। योजनाएं, रणनीतियां धरी रह गईं। राजनीति क्षेत्र भी इस संकट के प्रभाव से अछूता नहीं रहा। कार्यक्रम व चुनाव टलते रहे। लेकिन राजनीतिक दलों में हलचल साल भर चलती रही। साल आरंभ होने के पहले ही राज्य की सत्ता में भाजपा को महाविकास आघाड़ी ने पटखनी दे दी, इसमें शामिल दल शहर में नया जोश दिखाते रहे। खासकर कांग्रेस पराजय की परिधि लांघ जीत के जश्न मनाती रही। भाजपा झटके दर झटके खाते रही। शिवसेना में भी संगठनात्मक कदमताल रही। राकांपा में बदलाव की योजना बनती रह गई।

जिले की राजनीति में पिछले कुछ वर्षों से भाजपा का दबदबा रहा है। लोकसभा, विधानसभा, मनपा व जिप के चुनावों में वह एक तरफा जीतते रही है। लेकिन साल की शुरुआत के साथ भी भाजपा को झटके मिलने लगे। 8 जनवरी को जिला परिषद के चुनाव का परिणाम सबसे चौंकाने वाला था। कांग्रेस ने जिला परिषद की सत्ता पा ली। हालांकि कांग्रेस की सहयोगी राकांपा व शिवसेना को अधिक सफलता नहीं मिली। लेकिन भाजपा बुरी तरह से प्रभावित हुई। केंद्रीय मंत्री नितीन गडकरी, पूर्व पालकमंत्री चंद्रशेखर बावनकुले के गृह क्षेत्र में जिप सर्कल में भी भाजपा सफल नहीं हुई। इस बीच राज्य में विधानपरिषद की 10 सीटों के लिए चुनाव घोषित हुए। उसमें सभी सीटों के लिए निर्विरोध सदस्य चुने गए। नागपुर से भाजपा के शहर अध्यक्ष भी विधानपरिषद सदस्य चुन लिए गए। लेकिन साल का अंत आते ही भाजपा को बड़ा झटका लगा। विधानपरिषद की नागपुर स्नातक सीट के चुनाव में भाजपा पराजित हो गई। भाजपा के लिए यह सीट प्रतिष्ठा की थी। 58 साल से यहां भाजपा ही जीतती रही। गडकरी इस सीट से 25 साल तक विधानपरिषद सदस्य थे। 5 दिसंबर को चुनाव परिणाम ने सबको चौंका दिया। कांग्रेस के अभिजीत वंजारी जीत गए। भाजपा में संगठन विस्तार हुआ। जमाल सिद्धीकी को भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त किया गया। प्रदेश कार्यकारिणी में चंद्रशेखर बावनकुले, धर्मपाल मेश्राम, अर्चना डेहनकर ने प्रमुख स्थान पाया।

कांग्रेस की उम्मीदें बढ़ीं। जिले से कांग्रेस के दो विधायक मंत्री बने। ब्रम्हपुरी के कांग्रेस विधायक विजय वडेट्टीवार का आवास भी नागपुर में है। वे भी मंत्री बनकर कांग्रेस को संगठनात्मक बल देते रहे। पालकमंत्री पद को लेकर कांग्रेस में हलचल रही। लाॅकडाउन के दौरान अप्रैल में तीनों मंत्री सड़क मार्ग से मुंबई पहुंचे थे। उसके बाद पालकमंत्री पद की जिम्मेदारी में बदलाव हुआ। साल के अंत में कांग्रेस विधायक विकास ठाकरे को नागपुर सुधार प्रन्यास का विश्वस्त नियुक्त कर दिया गया। हालांकि कांग्रेस में वर्चस्व का संघर्ष जारी रहा। पालकमंत्री नितीन राऊत कांग्रेस नेताओं में अकेले पड़ते नजर आए। 16 अगस्त को उन्होंने घोषणा की थी कि नागपुर में 1000 बेड का मेगा कोविड उपचार सेंटर बनेगा, लेकिन वह घोषणा पूरी नहीं हो पाई। मुंबई से आया विशेषज्ञों का दल केवल कुछ सुझाव देकर लौट गया। विधानपरिषद की स्नातक सीट के चुनाव में कांग्रेस ने एकजुटता अवश्य दिखाई, लेकिन अन्य मामलों में समन्वय कम ही नजर आया।

शिवसेना में बड़ा बदलाव हुआ। शिवसेना के शहर प्रमुख पद पर रहते हुए मंगेश कड़व को धोखाधड़ी के आरोपों में जेल जाना पड़ा। कड़व को शिवसेना से बाहर कर दिया गया। जिला प्रमुख प्रकाश जाधव भी होल्ड पर रहे। बाद में विप सदस्य दुष्यंत चतुर्वेदी को महानगर प्रमुख नियुक्त करके शहर शिवसेना की कमान उन्हें सौंप दी गई। सितंबर में शिवसेना की शहर कार्यकारिणी का विस्तार हुआ। प्रमोद मानमोडे, विशाल बरबटे जैसे सहकार व कार्पोरेट क्षेत्र के कार्यकर्ता शिवसेना में प्रमुख भूमिका में आए। शिवसेना का स्वरूप बदलने लगा।

राकांपा में संगठन मामले में भले ही कुछ नया नहीं हुआ। लेकिन पार्टी के नेता व गृहमंत्री अनिल देशमुख के बढ़ते राजनीतिक प्रभाव के साथ वह गदगद रही। देशमुख ने जमीन मामले में नागरिकों को राहत देने का प्रयास किया। काेरोना काल में विशेषज्ञों की टीम लाकर प्रशासनिक मामलों में पकड़ का परिचय दिया। प्रशांत पवार जैसे कार्यकर्ता का राकांपा में शामिल होना चर्चा में रहा।

अधिकार व कार्यकर्ता को लेकर राजनीतिक संघर्ष का नजारा तत्कालीन मनपा आयुक्त तुकाराम मुंढेे व सामान्य कार्यकर्ता साहिल सैयद के मामले में देखने को मिला। मुंढे के विरोध में लगभग सभी दल एकजुट दिखे। भाजपा आक्रामक रही। साहिल को लेकर गृहमंत्री अनिल देशमुख व पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के बीच पत्र-वार चलता रहा। आंदोलन के मामले में भाजपा को सत्ता की चुभन झेलनी पड़ी। राष्ट्रीय महामार्ग प्राधिकरण के कार्यालय में ताेड़फोड़ के मामले में भाजपा नगरसेवक प्रदीप पोहाणे को गिरफ्तार किया गया। सोशल मीडिया पर प्रचार के मामले में सुमित ठक्कर को लेकर भाजयुमो कार्यकर्ताओं को भी थाने में रखा गया।

पूर्व विधायक सुधाकर देशमुख पर लेटरहेड के दुरुपयोग का आरोप लगा। मामला पुलिस थाने तक पहुंचा। विविध कार्यक्रम ऑनलाइन हुए। संघ का विजयादशमी उत्सव भी पहली बार सीमित कार्यकर्ताओं के बीच हुआ। राजनीतिक कार्यक्रम ही हुए। 10 जनवरी को एक कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू शामिल हुए थे। उसके बाद बड़े सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं हो पाए। बड़ी सभाओं में रेशमबाग मैदान में भीम आर्मी की सभा शामिल रही।

 

Created On :   22 Dec 2020 4:41 PM IST

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