अब तक 2500 से अधिक मवेशियों का जीवन बचा चुकी है युवाओं की टोली

So far, the lives of more than 2500 cattle have been saved.
अब तक 2500 से अधिक मवेशियों का जीवन बचा चुकी है युवाओं की टोली
अब तक 2500 से अधिक मवेशियों का जीवन बचा चुकी है युवाओं की टोली

डिजिटल डेस्क शहडोल । जिला मुख्यालय से लगे ग्राम कल्याणपुर में युवाओं के प्रयास से लावारिस व घायल मवेशियों को आसरा मिला है। अटल कामधेनु गौसेवा संस्थान के नाम से संचालित इस गौसेवा केंद्र में घायल व बीमार मवेशियों व जानवरों को रखकर सेवा की जा रही है। संस्थान द्वारा अब तक 2500 से अधिक मवेशियों को नया जीवन दे चुकी है। इनमें 2304 गाय-बैल, 40 डॉग, घोड़ा 3, बिल्ली 1, लोमड़ी 1, पक्षी 3, बंदर 1 व 5 भैंस शामिल हैं। सबसे बड़ी बात युवाओं की टीम घूम घूमकर घायल गाय, बैल, श्वान व अन्य बीमार मवेशियों को तलाश करती है। इसके बाद उन्हें यहां लेकर आती है।  
इस तरह हुई शुरुआत
संस्थान के संस्थापक सदस्य उड़ीसा के थर्मल पावर में इंजीनियर गौरव मिश्रा सेवा कार्य के सूत्रधार हैं। वर्ष 2013 में एक दिन देखा कि एक बछिया ट्रेन से टकराकर घायल हो गई है। लोगों की मदद से पशु चिकित्सालय ले गए, लेकिन प्रापर रिस्पांस नहीं मिला। जिस पर उनके मन में विचार हुआ क्यों न एक संस्थान खोला जाए जहां ऐसे घायलों व बीमार मवेशियों का उपचार किया जाए। अपने विचार को बड़े भाई प्रभाकर मिश्रा को बताया। जो तैयार हो गए। इसके बाद उन्होंने कल्याणपुर में संस्थान संचालित कराया।  संस्थान से जुड़े गौरव, प्रभाकर, सार्थक मिश्रा, मोहित गुप्ता, उत्कर्ष सिंह, अमर सोनी, किशन यादव, मनोज अगरिया, दीपेंद्र मरावी, हरिकृष्ण मिश्रा, हेमंत शुक्ला, पंकज गुप्ता, हर्षित सोंधिया, प्रिंस सिंह, रजत मिश्रा, नवजोत सिंह परिहार, दिलीप त्रिपाठी, राहुल आर्या, अभिषेक सेन, रामजी यादव आदि वाहनों से आदि चोटिल मवेशियों व श्वानों को लाने का कार्य करते हैं। पशु चिकित्सालय के सुरेन्द्र सिंह रोजाना आकर इंजेक्शन व दवाइयां देते हैं। गौरव मिश्रा बताते हैं कि संस्थान को चलाने के लिए खर्च होने वाली राशि के लिए मदद तो मिलती है लेकिन उस अपेक्षा के अनुसार नहीं मिल पाती। प्रशासन को कई बार पत्र दिया, पर पहल नहीं हुई।
हर माह 50-60 हजार का खर्च
संस्थान में हर समय 10 से 15 मवेशी रहते हैं। उपचार से ठीक होने के बाद उन्हें जाने देते हैं। उनके भोजन व अन्य व्यवस्थाओं पर प्रति महीने 50 से 60 हजार का खर्च आता है। अधिकतर राशि संस्थान के लोग ही व्यय करते हैं। समाजसेवी रंजीत बसाक के अलावा बबलू डेयरी तथा सांझा रसोई के युवा करते हैं। 80 प्रतिशत मामलों में रंजीत अपने वाहन उपलब्ध कराते हैं।
 

Created On :   24 Feb 2020 1:27 PM IST

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