डॉक्टरों के लिए सामाजिक उत्तरदायित्व सेवा अनिवार्य, रद्द हुआ आर्थिक दंड भर छूट पाने का प्रावधान 

Social responsibility service mandatory for doctors
डॉक्टरों के लिए सामाजिक उत्तरदायित्व सेवा अनिवार्य, रद्द हुआ आर्थिक दंड भर छूट पाने का प्रावधान 
मबीबीएस पाठ्यक्रम में उत्तीर्ण डॉक्टरों के लिए सामाजिक उत्तरदायित्व सेवा अनिवार्य, रद्द हुआ आर्थिक दंड भर छूट पाने का प्रावधान 

डिजिटल डेस्क, मुंबई। प्रदेश के सरकारी और महानगर पालिका के चिकित्सा महाविद्यालयों से एमबीबीएस पाठ्यक्रम में उत्तीर्ण विद्यार्थियों को अब सामाजिक उत्तरदायित्व सेवा देना अनिवार्य होगा। यानी एमबीबीएस पास विद्यार्थियों को सरकारी अथवा नगर निकायों के अस्पतालों में सेवा देना बंधनकारक होगा। सरकार ने 10 लाख रुपए दंड भर कर सामाजिक उत्तरदायित्व सेवा से छूट हासिल करने की सुविधा वाले  शासनादेश को रद्द कर दिया है। प्रदेश सरकार के चिकित्सा शिक्षा विभाग की तरफ से इस संबंध में 13 जून को शासनादेश जारी किया गया है। इसके मुताबिक साल 2022-23 शैक्षणिक वर्ष से दाखिला लेने वाले सरकारी और महानगर पालिकाओं के चिकित्सा महाविद्यालयों के विद्यार्थियों के लिए यह फैसला लागू होगा। वहीं 5 जनवरी 2018 के शासनादेश के अनुसार अनुदानित और निजी गैर अनुदानित चिकित्सा महाविद्यालयों के सरकारी छात्रवृत्ति अथवा शुल्क प्रतिपूर्ति योजना का लाभ लेने वाले एमबीबीएस के विद्यार्थियों के लिए भी सामाजिक उत्तरदायित्व सेवा का निर्वहन करना पड़ेगा। साल 2022-23 शैक्षणिक वर्ष से सरकार द्वारा अनुदानित और निजी गैर अनुदानित चिकित्सा महाविद्यालयों में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों के लिए भी सामाजिक उत्तरदायित्व सेवा देना अनिवार्य रहेगा। इन चिकित्सा महाविद्यालय के विद्यार्थियों को दंड भर के सेवा में छूट नहीं मिल सकेगी। साल 2021-22 और उससे पहले के शैक्षणिक वर्ष में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों के लिए प्रचलित नियम लागू होगा। 

सरकार के अनुसार कोरोना महामारी के दौर में सरकारी मशीनरी में अतिरिक्त डॉक्टरों की जरूरत पड़ने की बात सामने आई है। इसके मद्देनजर एमबीबीएस पास होने वाले विद्यार्थियों के लिए सामाजिक उत्तरदायित्व सेवा अनिवार्य की गई है। इससे पहले सरकारी और मनपा के चिकित्सा अस्पतालों में एमबीबीएस पाठ्यक्रम के लिए दाखिले के समय विद्यार्थियों से बांड लिखाया जाता था। जिसके तहत एमबीबीएस उत्तीर्ण होने के बाद विद्यार्थियों को सरकारी अस्पतालों में सेवाएं देनी पड़ती थी। लेकिन विद्यार्थी सेवा देने में लापरवाही बरतते थे। इसके मद्देनजर सेवा न देने वाले विद्यार्थियों से साल 2008 के शासनादेश के अनुसार 5 लाख रुपए दंड वसूला जाता था। यह दंड भरने वाले विद्यार्थियों को सेवा देने से छूट मिल रही थी। साल 2008-09 से विद्यार्थियों के लिए दंड के प्रावधान की राशि 5 लाख से बढ़ाकर 10 लाख रुपए कर दी गई थी। लेकिन ऐसा ध्यान में आया है कि एमबीबीएस पास होने वाले अधिकांश विद्यार्थी दंड की राशि जमा कर सामाजिक उत्तरदायित्व सेवा देने से मुक्त हो जाते हैं। इसके मद्देनजर सरकार ने अब दंड देने के प्रावधान को रद्द करके विद्यार्थियों के लिए सेवा देना अनिवार्य कर दिया है। 

मुंबई के भरोसे ’जंग’ जीतने की तैयारी

तमाम आशंकाओ को खारिज करते हुए तीन माह पहले योगी आदित्य नाथ दोबारा देश के सबसे बड़े सूबे उत्तरप्रदेश का सीएम बनने में कामयाब रहे। योगी के नेतृत्व में भाजपा ने बहुमत हासिल किया पर राज्य के कुछ ऐसे जिले भी रहे जहां पार्टी का खाता भी नहीं खुल सका। पूर्वी उत्तरप्रदेश का आजमगढ़ भी उन्ही में से एक है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव इसी जिले की संसदीय सीट से सांसद थे। यूपी विधानसभा में बने रहने के लिए उन्होंने आजमगढ़ वाली एमपी की सीट छोड़ दी है। अब यहां हो रहे उपचुनाव में भाजपा ने भोजपुरी फिल्मों के स्टार दिनेशलाल यादव उर्फ निरहुआ को मैदान में उतारा है। भाजपा इस बार किसी भी तरह इस सीट पर कब्जा कर सपा के मजबूत गढ़ में सेध लगाना चाहती है। इसके लिए मुंबई में रहने वाले आजमगढ़ के लोगों की तलाश की जा रही है। मुंबई भाजपा के उत्तर भारतीय सेल की भी मदद ली जा रही है।दिनेशलाल ने खुद मुंबई के उत्तर भारतीय भाजपा नेताओं से बातचीत की है। फिलहाल ऐसे 500 लोगों की सूची तैयार की गई है, जिन्हे मतदान के लिए मुंबई से आजमगढ़ ले जाने की योजना है। बात सिर्फ इनके वोट की नहीं है। पार्टी का मानना है की इन मुंबईकरों के वोट देने गांव पहुंचने से भाजपा के पक्ष में माहौल बनेगा। वे और लोगों को भी निरहुआ को वोट देने के लिए प्रेरित कर सकेंगे। इस कवायद का कितना लाभ हुआ यह तो 26 जून को होने वाली मतगणना के बाद ही पता चल सकेगा। पर पार्टी का मानना है की जीत के लिए कोशिशों में कोई कमी नहीं होनी चाहिए। 

बिना विभाग वाले मंत्री का खर्चा

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जाल में फंस कर जेल जाने वाले एनसीपी नेता नवाब मलिक अभी भी बिना विभाग के मंत्री बने हुए हैं। इस साल फरवरी में मलिक की गिरफ्तारी के कुछ दिनों बाद उनको जमानत न मिलती देख उनके विभागों की जिम्मेदारी दूसरे मंत्रियों को सौंप दी गई पर नवाब का मंत्री पद का दर्जा बनाए रखा गया है। मंत्री महोदय पिछले पांच महीनों से जेल में हैं पर मंत्रालय में उनका कार्यालय आबाद है। जिस पर हर माह लाखों रुपए खर्च हो रहे हैं। न मंत्री जी हैं और न उनका विभाग। ऐसे में मंत्री का स्टाफ रोज कार्यालय तो आता है पर कोई काम न होने से हाथ पर हाथ रख कर टाइम पास करने के अलावा उनके पास कोई काम नहीं है। फिलहाल मंत्री जी के स्टाफ को उनकी वापसी का इंतजार है। उन्हें उम्मीद है की नवाब भाई के जेल से बाहर आते ही फिर से उनके विभाग भी उन्हें वापस मिल जायेंगे। उम्मीद पर दुनिया कायम है। पर न जाने यह उम्मीद कब पूरी होगी। 

भाषा वाली बाधा

कांग्रेस पार्टी में दिल्ली से नियुक्त होने वाले पार्टी प्रभारियों का खूब जलवा रहा है। महाराष्ट्र कांग्रेस को अक्सर दक्षिण के पार्टी प्रभारी मिलते रहे हैं। इस बार मल्लिकार्जुन खरगे के बाद जब एच के पाटिल को महाराष्ट्र के लिए पार्टी प्रभारी नियुक्त किया गया तो उनके सरनेम की वजह से राज्य के कांग्रेसियों को खुशी हुई की मराठी भाषी प्रभारी मिला है। पर पाटिल साहब के मुंबई आगमन के बाद पता चला की साहब के तो मराठी छोड़िए हिंदी में भी हाथ तंग हैं। पाटिल साहब अक्सर पार्टी नेताओं-कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हैं पर अंग्रेजी में। पिछले दिनों शिर्डी में आयोजित प्रदेश कांग्रेस के चिंतन शिविर में पाटिल अंग्रेजी में अपना भाषण दे रहे थे। ग्रामीण इलाको से आए अधिकांश कांग्रेसियों को उनकी कोई बात पल्ले नहीं पड़ी। वे एक दूसरे से पूछते रहे की पाटिल साहब ने क्या ’ज्ञान’ दिया। पार्टी नेताओं की माने तो उनके साथ भाषा एक बड़ी बाधा बन रही है। अधिकांश कार्यकर्ताओं को उनका अंग्रेजी वाला भाषण समझ में नहीं आता। साथ ही अंग्रेजी के अल्पज्ञान के चलते आम कांग्रेसी उनके सामने अपनी बात भी अच्छी तरह नहीं रख पाते। इसके पहले भी दक्षिण भारतीय खरगे महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रभारी थे पर वे हिंदी के साथ साथ मराठी भी बोलते हैं। पर पाटिल साहब का हिंदी से परहेज राज्य के कांग्रेसियों के लिए परेशानी का सबब बन रहा।

 

 

Created On :   14 Jun 2022 8:41 PM IST

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