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घर का निवासी होने का दावा कर बेटा पुनर्विकास प्रोजेक्ट के तहत पिता को मिले घर का हकदार नहीं
डिजिटल डेस्क, मुंबई। घर का निवासी होने का दावा कर बेटा पिता को पुनर्विकास प्रोजेक्ट के तहत मिले नए घर का हकदार नहीं हो सकता है। बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले में यह बात उभर कर सामने आयी है। 74 वर्षीय बुजुर्ग पिता को म्हाडा ने एक चाल का पुनर्विकास करने के बाद फ्लैट आवंटित किया था। चूंकि बेटे ने कागजी रिकॉर्ड में खुद को पिता के चाल के घर का निवासी बताया था। इसलिए म्हाडा ने बुजुर्ग को घर का आवंटन हासिल करने के लिए अपने बेटे अथवा उसके सहमति पत्र लाने को कहा था। यहीं नहीं म्हाडा ने बुजुर्ग को कारण बताओ नोटिस जारी कर साफ किया था कि बेटे का सहमति पत्र न लाने की स्थिति में क्यों न उसके फ्लैट के आवंटन को रद्द कर दिया जाए। म्हाडा की इस नोटिस को चुनौती देते हुए 74 वर्षीय बुजुर्ग ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
न्यायमूर्ति गौतम पटेल व न्यायमूर्ति माधव जामदार की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। खंडपीठ ने कहा कि हम रोजना ऐसे मामलों को देख रहे हैं जहां बच्चे अपने बुजुर्ग माता पिता की संपत्ति को हड़पने की कोशिश करते नजर आते है। इस तरह के विवाद अब मुंबई शहर में जैसे आम हो गए है। और बढते जा रहे है। जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है और बुजुर्ग माता-पिता के लिए हानिकारक भी है। इसी कडी में मौजूदा मामले के रुप में एक और दुर्भाग्यपूर्ण मामला हमारे सामने आया है। जिसमे अपने पिता से अलग रह रहे बेटे ने खुद को बुजुर्ग पिता के घर का निवासी बताया है। जबकि हकीकत में पिता ने लालबाग इलाके में चाल में एक लैंडलार्ड से घर खरीदा था। और पिता ही टैनेंटे के रुप में लैंडलार्ड को किराए का भुगतान कर रहे थे। और वे पुनर्वास के पहले चाल में रह भी रहे थे।
बिजली का बिल उनके नाम पर था। किराए की रशीद में उनके नाम का उल्लेख है। इसके विपरीत किराए की रशीद व बिजली के बिल में बेटे के नाम का कही पर भी जिक्र नहीं है। फिर म्हाडा के रिकार्ड में कैसे बुजुर्ग याचिकाकर्ता के सिर्फ एक बेटे को घर का निवासी दिखाया गया है जबकि उसके तीन बेटे है। याचिकाकर्ता ने कई बार म्हाडा से अपने बेटे का नाम रिकार्ड से हटाने का आग्रह किया था लेकिन म्हाडा ने इस पर विचार नहीं किया।
खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता का बेटा घर के स्वामित्व व अपने दावे को लेकर कोई भी दस्तावेज हमारे सामने नहीं पेश कर पाया है। इस तरह से खंडपीठ ने म्हाडा की ओर से याचिकाकर्ता की जारी नोटिस को खारिज कर दिया और म्हाडा को 74 वर्षीय बुजुर्ग को घर को सौपने का निर्देश दिया और कहा कि याचिकाकर्ता ही घर का हकदार है। बेटा चाहे तो अपने उपलब्ध कानूनी विकल्पों को अपना सकता है।
Created On :   6 April 2022 5:15 PM IST