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राज्य सरकार के पास है स्टाम्प पेपर को लेकर नीतिगत फैसला करने का अधिकार
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि राज्य में स्टाम्प पेपर विक्रेताओं की संख्या बढाना है अथवा नागरिकों के लिए ई-स्टैंप की सुविधा शुरु की जानी चाहिए की नहीं। इस बारे में सरकार को नीतिगत फैसला लेना चाहिए। वैसे भी यह मामला राज्य सरकार व कार्यपालिका के दायरे में आता है। इसलिए कोर्ट इस मामले में कोई बाध्यकारी निर्देश जारी करने का इच्छुक नहीं है। इस विषय को लेकर पेशे से वकील स्वप्निल कदम ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। याचिका में मुख्य रुप से राज्य व मुंबई के आसपास के इलाकों में स्टाम्प पेपर विक्रेताओं की कमी के मुद्दे को उठाया गया था। याचिका में कहा गया था कि छोटी राशि के स्टाम्प पेपर हासिल करने के लिए भी नागरिकों को दिक्कत होती है। इसके साथ ही बड़े पैमाने पर अवैध रुप से स्टाम्प पेपर बेचे जाते हैं। इसलिए इसकी जांच के भी निर्देश दिए जाए। क्योंकि बढी आबादी व मुकदमों की बढती संख्या के लिहाज से स्टाम्प पेपर विक्रेता पर्याप्त नहीं है।
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति माधव जामदार की खंडपीठ के सामने इस याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका पर सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने पाया कि याचिकाकर्ता ने इस विषय को लेकर सरकार को एक निवेदन भी दिया है। इसके मद्देनजर खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता अपने निवेदन व याचिका में उठाए गए मुद्दे को राजस्व विभाग के मुख्य सचिव के सामने रखे। खंडपीठ ने अतिरिक्त मुख्य सचिव को इस निवेदन पर आठ सप्ताह के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दिया है। खंडपीठ ने कहा कि स्टाम्प पेपर विक्रेताओं की संख्या बढानी चाहिए की नहीं यह सरकार का नीतिगत मामला है। हम इस बारे में निर्देश नहीं दे सकते हैं। जहां तक बात स्टाम्प पेपर के अवैध बिक्री की है तो याचिकाकर्ता इसकी जानकारी पुलिस को दे। वैसे राज्य सरकार ने हलफनामा दायर कर कहा था मुंबई में स्टाम्प पेपर के लिए डिजटल विकल्प है। इसलिए यहां स्टाम्प पेपर विक्रेताओं की बड़ी संख्या में जरुरत नहीं है। खंडपीठ ने सरकार के हलफनामे पर गौर करने के बाद याचिका को समाप्त कर दिया।
Created On :   11 Nov 2022 8:47 PM IST