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श्रम कानूनों के कई प्रावधानों पर राज्य सरकार को एतराज, जानिए - क्या है नए नियम
डिजिटल डेस्क, मुंबई। केंद्र सरकार के कृषि कानूनों की तरह अब महाराष्ट्र की महा आघाडी सरकार मोदी सरकार के श्रम कानूनों की भी समीक्षा में जुटी है। बुधवार को राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में मंत्रियों के सामने केंद्र के इस कानून की जानकारी विस्तार से पेश की गई। सूत्रों के अनुसार नए श्रम कानूनों के कई प्रावधानों पर राज्य सरकार को एतराज है। जबकि कुछ प्रावधानों पर संतो। व्यक्त किया गया है। दरअसल केंद्र सरकार ने 29 श्रम कानून को एकत्र कर चार संहिता तैयार की है। श्रम विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि इसमें से कई कानून श्रमिकों के हित में नहीं हैं। औद्योगिक संबंध संहिता के तहत औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 को समाप्त कर दिया गया है। अब तक 100 या उससे अधिक कामगारों वाले उद्योगों को बंद करने से पहले सरकार की अनुमति जरुरी होती थी लेकिन नए कानून में इसे समाप्त कर दिया गया है। अब 300 से ज्यादा कामगारों वाले कारखानों को बंद करने के लिए ही सरकार से अनुमति जरुरी होगी। महाराष्ट्र में 5700 ऐसे कारखाने हैं जहां 100 से ज्यादा श्रमिक कार्यरत हैं। नए कानून के तहत अब केवल 1600 कारखानों को बंद करने से पहले सरकार की अनुमति लेनी होगी।
कारखानों में हड़ताल करना मुश्किल
पुराने कानून के तहत केवल सार्वजनिक सेवा देने वाले उद्योगों को हड़ताल पर जाने से 6 सप्ताह पहले नोटिस देने और नोटिस देने के 14 दिन पहले हड़ताल न करना अनिवार्य था, लेकिन नए कानून में सभी उद्योगों के लिए हड़ताल से पहले 60 दिन की नोटिस देने और नोटिस देने के 14 दिनों के भीतर हड़ताल न करना अनिवार्य किया गया है। साथ ही प्रतिष्ठान के 51 फीसदी सदस्यों वाले श्रमिक संगठनों को यूनियन के तौर पर मंजूरी देने का अधिकार मालिक के पास होगा। इसी तरह पुराने कानून के तहत 50 या उससे अधिक कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों में औद्योगिक सेवा योजना अधिनियम लागू था। अब यह 300 या उससे अधिक कर्मचारियों वाले यूनिट के लिए ही लागू हो सकेगा। राज्य के श्रम विभाग का मानना है कि इससे राज्य में 50 से 299 कामगारों वाले प्रतिष्ठानों में सेवा शर्तों को लेकर अनिश्चितता तैयार होगी।
इस कानून से मिलेगी राहत
औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के अनुसार न्यायालयीन प्रकरण शुरु रहने पर कामगारों को वेतन देने का प्रवाधान नहीं है लेकिन नए कानून के अनुसार यदि कोर्ट द्वारा किसी कामगार को ड्यूटी पर रखने के आदेश को प्रबंधन हाईकोर्ट में चुनौती देता है तो मामला न्याय प्रविष्ट होने तक कामगार को पुरा वेतन देना अनिवार्य होगा। राज्य के श्रम विभाग ने भी यह कह इस कानून की तारीफ की है कि मामला कोर्ट में लंबा खिंचने पर इससे कामगारों को बड़ी राहत मिलेगी।
राजस्व मंत्री बाला साहेब थोरात के मुताबिक केंद्र सरकार के नए श्रम कानून उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने वाले हैं। इससे श्रमिकों का नुकसान होगा। हमने श्रमिक संगठनों से चर्चा की है। वे इससे नाराज हैं। मैं इस बारे में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से चर्चा करूंगा।
नए कानून में अब सभी उद्योगों में महिलाओं को काम करने की अनुमति होगी।
मौजूदा कानून में कानून भंग होने पर कंपनी व्यवस्थापक को 2 साल तक की सजा का प्रावधान था पर नए कानून में सजा का प्रावधान हटा कर जुर्माने की राशि 2 लाख से 3 लाख कर दी गई है। राज्य के श्रम विभाग का मानना है कि इससे कारखानों मालिकों की दंबई बढ़ेगी।
नए श्रम कानून के तहत अंतरराज्यीय श्रमिकों की जानकारी का डेटा तैयार करना और इसके लिए वेबसाईट बनाना होगा।
पुराने कानून के तहत ठेका मजदूरों को अपने गांव से चलने के दिन से वेतन देना होता था लेकिन नए कानून में इसे समाप्त कर दिया गया है। अभी तक अंतरराज्यीय मजदूरों के लिए निवास की सुविधा उपलब्ध कराने का प्रावधान था पर नए कानून से यह प्रावधान भी हटा दिया गया है।
अभी तक 5 से ज्यादा सिने कामगारों के लिए भविष्य निर्वाह निधी (पीएफ) लागू करना अनिवार्य था। नए कानून में यह संख्या 20 कर दी गई है।
अभी तक श्रमिक पत्रकार अधिनियम में केवल प्रिंट मीडिया में काम करने वाले ही शामिल थे पर अब नए कानून में प्रिंट के अलावा इलेक्ट्रानिक मीडिया, डिजिटल मीडिया, रेडियो में काम करने वाले पुर्ण कालिक और अंशकालिक कर्मचारी श्रमिक पत्रकार होंगे।
मौजूदा कानून में पत्रकारों का वेतन तय करने के लिए वेतन आयोग गठित करने का प्रावधान था पर नए कानून में यह प्रावधान समाप्त कर दिया गया है।
नए कानून के अनुसार इस्तीफा देने पर कर्मचारी को दो दिनों में उसका फाईनल भुगतान करना होगा।
प्रतिष्ठानों को हर महिने सात तारीख तक वेतन देना अनिवार्य होगा।
20 या उससे ज्यादा कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों में बोनस अधिनियम लागू होगा। पहले यह संख्या 10 थी।
Created On :   8 Oct 2020 7:16 PM IST