IIT मुंबई में छात्र के प्रवेश का मामला, निदेशक एडमिशन देने के बारे में करें विचार

Student admission in IIT Mumbai, Director should consider giving admission
IIT मुंबई में छात्र के प्रवेश का मामला, निदेशक एडमिशन देने के बारे में करें विचार
IIT मुंबई में छात्र के प्रवेश का मामला, निदेशक एडमिशन देने के बारे में करें विचार

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने समय पर फीस भरने की सूचना न मिल पाने के कारण भारतीय प्रद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मुंबई में प्रवेश से वंचित एक छात्र को राहत दी है। हाईकोर्ट ने आईआईटी के निदेशक को छात्र के प्रवेश देने से जुड़ी संभावना पर विचार करने को कहा है। अनुसूचित जाति के छात्र प्रथमेश पेडमकर ने दावा किया था कि उसका चयन मैरिट के आधार पर एससी वर्ग में मास्टर ऑफ डिजाइन कोर्स के लिए हो गया था। उसे कोर्स की फीस कब भरनी है इसकी जानकारी ही उसे नहीं मिल पायी। जिसके चलते वह प्रवेश से वंचित रह गया। छात्र ने याचिका में दावा किया था कि उसे एडमिशन से जुड़ी सारी जानकारी ईमेल के जरिए भेजी गई थी। उसका इंटरव्यू भी ऑनलाइन लिया गया था। लेकिन एडमिशन के लिए फीस कब भरनी है इसकी जानकारी उसे मेल से नहीं भेजी गई। जिससे वह 10 अगस्त 2020 को फीस भरने के लिए नहीं पहुंच सका और उसे प्रवेश से वंचित कर दिया। 

मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता की खंडपीठ के सामने छात्र की याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान आईआईटी की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता अर्श मिश्रा ने याचिका का विरोध किया। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता को कब फीस भरनी है इसकी जानकारी आईआईटी के पोर्टल में डाली गई थी। कुल 19 बच्चों को मेल के जरिए फीस भरने से संबंधित जानकारी नहीं मिल पाई थी। इसमे से 14 बच्चों ने पोर्टल से जानकारी लेकर समय पर फीस भरी है और दाखिला लिया है। कोर्स की पढ़ाई भी शुरु हो गई है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता की यह जिम्मेदारी थी कि वह पोर्टल जाकर भी प्रवेश संबंधी जानकारी हासिल करे। कुछ तकनीकि खामी के चलते संस्थान की ओर से भेजे गए मेल नहीं पहुंच पाए थे। वहीं याचिकार्ता के वकील अशरफ शेख ने कहा कि उनके मुवक्किल को सारी जानकारी मेल पर आई थी। इसलिए उन्होंने पोर्टल को नहीं देखा। 

मामले से जुड़े दोनों पक्षो को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में आईआईटी देश का श्रेष्ठ संस्थान है। इसलिए यदि वह अपनी तकनीकि गलती की सुधार की दिशा में कदम उठाता है, तो उसकी प्रतिष्ठा और बढ़ेगी। चूकी याचिकाकर्ता आरक्षित वर्ग है। इसलिए आईआईटी के निदेशक संविधान के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए याचिकाकर्ता के प्रवेश के बारे में विचार करे। संभव हो तो अतिरिक्त सीट बनाने पर विचार भी किया जाए। यदि याचिकाकर्ता को प्रवेश नहीं दिया जाता है, तो इसका लिखित में कारण दिया जाए। इस तरह से खंडपीठ ने याचिका को समाप्त कर दिया। 
 

Created On :   23 Oct 2020 6:23 PM IST

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