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पिछले 3 साल में 18% बढ़े आत्महत्या के मामले, कोरोना काल में 7 % बढ़ोतरी
डिजिटल डेस्क, नागपुर। आर्थिक व सामाजिक विकास के मामले में अग्रणी रहा महाराष्ट्र आत्महत्या का गहरा दंश झेल रहा है। देश में आत्महत्या के मामले में राज्य सबसे आगे है। आत्महत्या के कारण अलग-अलग हैं, लेकिन यह भी चौंकाने वाली स्थिति है कि किसान आत्महत्या की घटनाएं कम नहीं हो रही हैं। विशेषकर खेत में काम करने वाले मजदूरों की आत्महत्या की घटनाएं आए दिन सामने आती हैं। विदर्भ, मराठवाड़ा में कृषि क्षेत्र का पिछड़ापन सर्वाधिक है। दिवाली के समय सरकार विविध सेक्टर को तोहफे देने की तैयारी कर रही है। ऐसे में कृषि क्षेत्र को भी तोहफे की दरकार है।
क्या है रिपोर्ट
एनसीआरबी अर्थात नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने 2020 का एक्सिडेंटल डेथ एंड सुसाइड डाटा िरपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के अनुसार, आत्महत्या करने वालों में सर्वाधिक दिहाड़ी मजदूर हैं। देश में 1 लाख 53 हजार आत्महत्या के प्रकरण दर्ज किए गए हैं। इनमें 37 हजार मजदूर शामिल हैं। 19,901 प्रकरण महाराष्ट्र के हैं। इसमें भी 4006 आत्महत्या के प्रकरण कृषि क्षेत्र से हैं। रिपोेर्ट के अनुसार 2011 के बाद 2020 में महाराष्ट्र में सर्वाधिक आत्महत्या दर्ज की है। 2020 यानी कोरोनाकाल में देश में कृषि क्षेत्र में आत्महत्या के प्रकरणों में 7 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। 2017 से 2020 तक कृषि क्षेत्र में आत्महत्या के मामलों में 18 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है।
नागपुर विभाग में संकट
राज्य सरकार के राजस्व विभाग का आंकड़ा ही देखें तो आत्महत्या के मामले में नागपुर संभाग में गहरा संकट है। राज्य सरकार दावा करती है कि राज्य में किसान आत्महत्या कम हुई है, लेकिन नागपुर व नाशिक विभाग में आंकड़े बढ़ने की सचाई भी स्वीकारती है। 2020 में कृषि क्षेत्र में आत्महत्या के मामले में नागपुर व नाशिक विभाग सबसे आगे रहा। दो वर्ष का रिकॉर्ड देखा जाए तो अमरावती संभाग की स्थिति भी चिंतनीय है। अमरावती संभाग में इन वर्षों में 1893 आत्महत्या कृषि क्षेत्र में हुई है। अकेले यवतमाल जिले में 295 आत्महत्या हुई है। कई आत्महत्या के प्रकरण तो अपात्र ठहरा दिए जाते हैं।
क्या कहते हैं जानकार
पूर्व कृषिमंत्री अनिल बोंडे कहते हैं कि किसानों को आधार देने में सरकार विफल हो रही है। पिछले दिनों अतिवृष्टि के कारण न केवल फसल, बल्कि खेतों की भी हानि हुई। खेतों की उपजाऊ क्षमता घट गई। किसान ही नहीं, खेतों को आधार देने की आवश्यकता है। खेत जमीन के सुधार के लिए विशेष राहत निधि की दरकार है, लेकिन सरकार इन मामलों पर ध्यान ही नहीं दे रही है। फडणवीस सरकार के समय कृषि संकट में राहत देने की प्रक्रिया का जिक्र करते हुए बोंडे कहते हैं कि सरकार की उदासीनता से किसानों की निराशा बढ़ती जा रही है। विदर्भवादी नेता नितीन रोंघे कहते हैं कि सरकारों की विफलता के कारण कृषि क्षेत्र का संकट दूर नहीं हो पाया है। खासकर विदर्भ में किसानों को राहत देने के लिए व्यवस्थागत उपाय योजना करने के बजाय अनदेखी की जा रही है। किसान आत्महत्याग्रस्त क्षेत्रों में प्रत्यक्ष चर्चा के अनुभव के आधार पर रोंघे कहते हैं कि कर्ज में डूबे किसान त्योहार या अन्य पारिवारिक कार्यक्रमों के समय निराश होने लगते हैं।
Created On :   31 Oct 2021 3:13 PM IST