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शिवसेना के भीतर उपजे विवाद का मामला भेजा संविधान पीठ
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने शिवसेना के विधायकों की अयोग्यता, चुनाव चिन्ह और निष्कासन से संबंधित मामले को आखिरकार पांच जजों की संवैधानिक पीठ के पास भेज दिया है। इस मामले पर अब अगली सुनवाई गुरुवार को मुकर्रर की गई है। मामले को संवैधानिक बेंच को रेफर करते हुए तीन जजों की पीठ का नेतृत्व कर रहे मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा कि अयोग्यता की कार्यवाही शुरू करने के लिए स्पीकर/डिप्टी स्पीकर की शक्ति से संबंधित मुद्दे को सुलझाना महत्वपूर्ण है, जब उनके खिलाफ खुद अविश्वास का प्रस्ताव है। पीठ ने कहा कि 2016 के नबाम रेबिया बनाम डिप्टी स्पीकर मामले के फैसले में अंतर को भरने की जरूरत है। संविधान की 10वीं अनुसूची के पैरा 3 को हटाने का क्या प्रभाव है? 10वीं अनुसूची के साथ परस्पर क्रिया का दायरा क्या है? स्पीकर की शक्तियों का दायरा क्या है? पार्टी में दरार होने पर चुनाव आयोग की शक्ति का दायरा क्या है? किसी व्यक्ति को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने की राज्यपाल की शक्ति और क्या वह न्यायिक समीक्षा के योग्य है? इन सभी सवालों पर बड़ी बेंच को फैसला करना है।
कोर्ट के इस आदेश के बाद उद्धव ठाकरे की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने अनुरोध किया कि एकनाथ शिंदे द्वारा चुनाव आयोग के समक्ष आधिकारिक शिवसेना के रूप में मान्यता के लिए शुरू की गई कार्यवाही पर रोक लगाई जाए। इसके बाद पीठ ने कहा कि इस अंतरिम राहत पर विचार के लिए 25 अगस्त को संविधान पीठ सुनवाई करेगी। इस दौरान पीठ ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह तब तक कोई फैसला न करे जब तक कि संविधान पीठ मामले की सुनवाई न कर ले।
बता दें कि पिछली सुनवाई के दौरान बागी विधायकों के वकील नीरज कौशल ने नबाम रेबिया केस के फैसले का हवाला देते हुए दलील रखी थी कि डिप्टी स्पीकर किसी विधायक को अयोग्य नहीं ठहरा सकते है। उद्धव ठाकरे पक्ष के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि इस मामले में रेबिया केस के तहत फैसला नहीं आ सकता बल्कि यह संविधान के 212 अनुच्छेद के तहत मामला बनता है।
क्या है नबाम रेबिया केस
दरअसल, 9 दिसंबर 2015 को कांग्रेस विधायकों के बागी गुट ने राज्यपाल से विधानसभा अध्यक्ष रेबिया को हटाने की मांग की थी। उन्होंने शिकायत दी था कि विधानसभा अध्यक्ष उन्हें अयोग्य घोषित करना चाहते है। इसके बाद राज्यपाल ने 16 दिसंबर को विधानसभा का आपात सत्र बुलाने और अध्यक्ष के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने को हरी झंडी दे दी। कांग्रेस ने राज्यपाल की इस कार्यवाही का विरोध किया। इसके बाद केंद्र ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया। फिर आपात सत्र में महाभियोग प्रस्ताव को पास कर नया सदन का नेता चुना गया और इसी दिन स्पीकर ने कांग्रेस के 14 विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया। मामला हाईकोर्ट पहुंचा, जहां विधायकों को अयोग्य घोषित करने पर रोक लगाई गई। सुप्रीम कोर्ट ने भी 2016 में इस केस में सुनवाई के बाद अरुणाचल प्रदेश में न केवल कांग्रेस सरकार को फिर से बहाल करने का आदेश दिया, बल्कि स्पीकर के कांग्रेस के 14 विधायकों को अयोग्य ठहराने के फैसले को पलट दिया। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के उस फैसले को गलत ठहराया जिसके तहत उन्होंने विधानसभा सत्र को जनवरी 2016 की जगह दिसंबर 2015 में ही बुलाने का फैसला किया था।
क्या कहता है अनुच्छेद 212
संविधान का अनुच्छेद 212 न्यायालयों द्वारा विधायिका की कार्यवाही की जांच न करने को रोकता है। अनुच्छेद 212 (1) कहता है कि प्रक्रिया की किसी कथित अनियमितता के आधार पर किसी राज्य के विधानमंडल में किसी भी कार्यवाही की वैधता पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया जाएगा।
Created On :   23 Aug 2022 9:41 PM IST