जेल अधीक्षक की सजा पर सर्वोच्च न्यायालय ने लगाई रोक

Supreme Court stays jail superintendents sentence
जेल अधीक्षक की सजा पर सर्वोच्च न्यायालय ने लगाई रोक
नागपुर जेल अधीक्षक की सजा पर सर्वोच्च न्यायालय ने लगाई रोक

डिजिटल डेस्क, नागपुर। देश की सर्वोच्च अदालत ने नागपुर मध्यवर्ती कारागृह के अधीक्षक अनूप कुमरे की सजा पर रोक लगाई है। बीती 16 मार्च को नागपुर खंडपीठ ने कुमरे को हाईकोर्ट की अवमानना का दोषी करार देकर  7 दिन की जेल और 5000 रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी। इस आदेश को कुमरे ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है। कुमरे के अधिवक्ता सुधीर वोडिटेल और रवींद्र बाणा का पक्ष सुनकर सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिवादी महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी कर 29 जुलाई तक जवाब मांगा है। तब तक नागपुर खंडपीठ द्वारा दी गई सजा पर रोक लगाई गई है। कैदी से जुड़ा मामला यह है  दरअसल, कुमरे को न्यायमूर्ति विनय देशपांडे और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की खंडपीठ ने कोर्ट की अवमानना का दोषी माना था। यह मामला जेल में बंद कैदियों को आपातकालीन पैरोल देने से जुड़ा था। कोरोना काल में जेल में बंद कैदियों के लिए राज्य सरकार ने आपातकालीन पैरोल का नियम लाया था। हनुमंत पेंदाम नामक एक कैदी ने पैरोल खत्म होने के बाद कारागृह पहुंच कर समर्पण का प्रयास किया, लेकिन उसके पास कोरोना निगेटिव प्रमाण-पत्र न होने की बात कह कर उसे लौटा दिया गया। इसके बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया। कैदी की इसलिए आपातकालीन पैरोल नकारी गई कि उसने पिछली बार खुद समर्पण नहीं किया। कारागृह के इस अजीबो-गरीब कार्यप्रणाली के खिलाफ कैदी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की। जब अदालत को पता चला कि यह एकमात्र नहीं, ऐसे अनेक मामले हैं, जिसमें कुमरे अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर रहे हैं। ऐसे में हाईकोर्ट ने कुमरे पर अवमानना का मुकदमा शुरू किया था।

समर्पण करें कैदी, नहीं तो दर्ज होगा आपराधिक मामला

कोरोना काल में आपातकालीन पैरोल पर रिहा कैदियों को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने अपने फैसले में परिवर्तन किया है। बीती 19 मई को हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को वक्त पर समर्पण न करने वाले कैदियों पर भादवि 224 के तहत मामला दर्ज न करने का आदेश दिया था, लेकिन इसके बाद राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में अर्जी दायर करके कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता कंचन मानकर के वकील नितेश समुद्रे ने सर्वोच्च न्यायालय के 29 अप्रैल के उस आदेश को छिपाया, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने कैदियों को दो सप्ताह के भीतर समर्पण करने के आदेश दिए थे। ऐसे में मामले से जुड़े सभी पक्षों को सुनकर हाईकोर्ट ने 19 मई का अपना आदेश वापस ले लिया है। 

यह है पूरा मामला 

दरअसल, कोरोना काल में विकट स्थिति को देखते हुए हाई पॉवर कमेटी की सिफारिश पर कैदियों को आपातकालीन पैरोल पर रिहा करने का फैसला लिया गया था। स्थिति सामान्य होने के बाद 4 मई 2022 को राज्य सरकार ने जीआर जारी करके ऐसे कैदियों को 15 दिन में संबंधित कारागृह में समर्पण करने के आदेश दिए। समर्पण न करने पर भादवि 224 के तहत उन पर मामला दर्ज करने की चेतावनी दी। 19 मई को नागपुर खंडपीठ ने समर्पण न करने वाले कैदियों पर अगले आदेश तक सख्त कार्रवाई नहीं करने के आदेश जारी किए थे। अपने नए आदेश में हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि उन्होंने 4 मई के इस जीआर पर कोई स्थगन नहीं लगाया था।

Created On :   23 May 2022 4:01 PM IST

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