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गौशाला में कलशों में टंगी हैं अस्थियां -लॉकडाउन से उपजा संकट, नहीं जा पा रहे प्रयागराज
डिजिटल डेस्क छतरपुर । कोरोना वायरस संक्रमण की रोकथाम के लिए जारी लॉक डाउन के कारण लोगों को घरों में ही रहने और देश में रेल और बसों का आवागमन बंद रखने का आदेश जारी किया गया है। लोगों के प्रयागराज आने-जाने पर रोक के कारण मृतकों की अस्थियां भी कलश से मोक्ष का इंतजार कर रही हैं। लॉकडाउन के कारण लोग अपने मृत परिजन की अस्थियां गंगा व अन्य पवित्र नदियों में प्रवाहित नहीं कर पा रहे हैं। परिजनों ने घर, श्मशान या फिर मंदिर में अस्थि कलश रखे हुए हैं, ताकि आवागमन के साधन चालू हो तो वे इनका विसर्जन हरिद्वार या अपनी मान्यानुसार पवित्र जगहों पर जाकर विसर्जित कर सकें।
शहर के बगराजन माता मंदिर के पास स्थित हरिओम गौशाला में भी लॉकडाउन के चलते आधा दर्जन से अधिक अस्थि कलशों का संचयन कर अस्थाई तौर पर रखा गया है। हरिओम गौशाला के संचालक पारस दुबे उर्फ डब्बू महाराज ने बताया कि इस तरह से पहले भी लोग अपने परिजनों के अस्थि कलश रख जाते थे, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि इतने लंबे समय के लिए एक साथ इतनी बड़ी संख्या में अस्थि कलशों को यहां पर रखा गया है।
लॉकडाउन खत्म होने का इंतजार में परिजन
दाह संस्कार के बाद लॉक डाउन की वजह से मृतक के परिजन अस्थियों को गंगाजी या अन्य पवित्र नदियों में विसर्जित नहीं कर जा सके। परिजनों के अनुसार इस दुख की घड़ी में चिंता इस बात कि है वे प्रयाग कैसे पहुंचें। लॉक डाउन के कारण परिजनों को आने-जाने की स्वीकृति न मिलने के कारण निजी वाहन से अस्थियां बहाने प्रयाग जाने का कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा और तेरहवीं के कार्यक्रम को भी अति सूक्ष्म रुप में करना पड़ा।
मुक्तिधामों में भी अस्थि कलश संचित
शहर की गौशालाओं के अलावा मुक्तिधामों पर भी अंतिम क्रिया के बाद मृतकों की अस्थियों को कमरे में संभाल कर रख दिया गया है। आधा दर्जन अस्थि कलश ऐसे हैं, जिन्हें रखे हुए 10 से 15 दिन बीत चुके हैं। मुक्तिधाम के कर्मचारी ने बताया कि लॉक डाउन खुलने के इंतजार में लोग अपने परिजन की अस्थियों को विसर्जन के लिए नहीं ले जा पा रहे हैं। लॉक डाउन कब खुलेगा और कब उन्हें गंगा में प्रवाहित करेंगे, यह सवाल परिवार के लोगों के मन को कचोट रहा है।
पुरातन समय में तीर्थयात्रा के दौरान विसर्जन की थी परंपरा
हिंदू धर्म में निधन के बाद अंतिम संस्कार किया जाता है। अंतिम संस्कार के बाद अस्थि संचय व अस्थियों को 3 से 10 दिन के अंदर देश की पवित्र नदियों में विसर्जन की परंपरा है। कोरोना वायरस ने इस परंपरा पर भी अस्थायी रोक लगा दी। हिंदू धर्म के जानकार पं. विनोद कुमार नायक ने बताया कि पुरातन समय में पवित्र नदियों तक पहुंचने के पर्याप्त संसाधन नहीं होते थे, ऐसे में लोग तीर्थ जाने पर ही उनका विसर्जन करते थे। मृतक के परिजन अस्थियों का संचय कर उन्हें किसी पेड़ या बागीचों में रखते थे। इसके बाद जब लोग पैदल तीर्थ दर्शन के लिए जाते थे, उस वक्त इनका विसर्जन किया जाता था। समय के साथ संसाधन शुरू हुए तो लोगों ने इन्हें 10 दिन के अंदर विसर्जन की परंपरा बना ली।
Created On :   20 April 2020 3:39 PM IST