पेट में तैर रहा था बच्चा, दो घंटे की सर्जरी कर बचाई महिला की जान

The child was swimming in the stomach, the woman saved her life after two hours of surgery
पेट में तैर रहा था बच्चा, दो घंटे की सर्जरी कर बचाई महिला की जान
पेट में तैर रहा था बच्चा, दो घंटे की सर्जरी कर बचाई महिला की जान


डिजिटल डेस्क शहडोल। जिला चिकित्सालय शहडोल की महिला सर्जन ने एक प्रसूता की जटिल सर्जरी कर जान बचाने में सफल रहीं। हालांकि महिला की जान बचाने के लिए उसकी बच्चेदानी निकालनी पड़ गई। अनूपपुर जिला अस्पताल से ग्राम नौगई निवासी प्रसूता अनीता बाई 24 वर्ष पति मुकेश सिंह को 7 जनवरी को यह कहकर शहडोल के लिए रेफर कर दिया गया था कि पेट में बच्चे की धड़कन समझ में नहीं आ रही है। उसी दिन सुबह 11.30 बजे अनीता को शहडोल में एडमिट कराया गया। दोपहर 2 बजे की ड्यूटी पर पहुंची डॉ. ममता जगतपाल ने चेक किया तो मामला जटिल जान पड़ा। क्योंकि बच्चा पेट में ऊपरी सतह पर तैरता समझ में आया। उन्होंने सीएमएचओ और सीएस को जानकारी देने के साथ ही ऑपरेशन शुरु किया।
खतरे में आ सकती थी जननी-
पेट में चीरा लगाते ही उन्होंने पाया कि महिला की बच्चेदानी पेट से लगभग पूरी तरह अलग हो चुकी है। बच्चा बच्चेदानी के बाहर पेट में तैर रहा है। लेकिन उसकी मौत हो चुकी है। अब सबसे बड़ी समस्या थी कि बच्चेदानी को बचाने का प्रयास करते हैं तो महिला की जान को खतरा हो सकता है। परिजनों से चर्चा के बाद मां की जान बचाने का निर्णय लेते हुए सर्जरी कर बच्चेदानी को बाहर निकाला गया। करीब दो घंटे की सर्जरी के बाद महिला की जान बचाई जा सकी। महिला की हालत में सुधार है तथा उसे एचडीयू में भर्ती कर उपचार किया जा रहा है। इस सर्जरी में डॉ. ममता के साथ डॉ मनोज जायसवाल, नेहा व अन्य स्टॉफ ने सहयोग किया।
इसलिए बनी ऐसी स्थिति-
सर्जरी करने वाली चिकित्सक डॉ. ममता के अनुसार महिला का पहला बच्चा भी सीजर से हुआ था। पहले प्रसव के डेढ़ साल बाद ही दूसरा बच्चा आ गया। जिससे पहले सीजर के दौरान लगे टांगे कट गए। दूसरे प्रसव के दौरान बढ़े प्रेसर से बच्चेदानी फटती चली गई। समय पर इलाज नहीं मिलने से भी स्थिति विपरीत बन गई।
अब नहीं मिल पाएगा मातृत्व सुख-
महिला की जान तो बच गई लेकिन अब वह मातृत्व सुख से वंचित हो चुकी है। क्योंकि पहला बच्चा जो सीजर से हुआ था उसकी भी मौत हो चुकी है। दूसरा बच्चा भी जीवित नहीं बचा। उस पर बच्चेदानी भी निकल चुकी है। दूसरे प्रसव में अनूपपुर अस्पताल में लापरवाही के आरोप लगे हैं। परिजनों की मानें तो यदि अनूपपुर में डॉक्टर प्रयास कर उपचार करते तो शायद बच्चे की जान बचाई जा सकती थी। पति का कहना है कि नियति को यही मंजूर था। उसके स्वयं के बच्चे नहीं तो क्या हुआ, परिवार में और बच्चे हैं उनके साथ ही जीवन गुजर जाएगा।

Created On :   10 Jan 2020 1:39 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story