शहर के पहाड़-चट्टान, सीलिंग व जेडीए की जमीनों की लूटपाट जारी

The citys mountain-rocks, ceiling and looting of JDA lands continue
शहर के पहाड़-चट्टान, सीलिंग व जेडीए की जमीनों की लूटपाट जारी
पुराने रिकॉर्डों में शासन का नाम दर्ज है फिर अचानक निजी नामों पर कैसे आई भूमि, इसको लेकर उठ रहे कई सवाल शहर के पहाड़-चट्टान, सीलिंग व जेडीए की जमीनों की लूटपाट जारी

डिजिटल डेस्क जबलपुर । राजा-महाराजाओं का शासन खत्म होने के बाद शासकीय रिकॉर्ड में विशालकाय पहाड़ शासकीय मद में दर्ज थे। पुराना रिकॉर्ड वर्ष 1954-55 में भी पहाड़-चट्टान शासकीय रूप में दर्ज है पर अचानक अधिकांश पहाड़ी निजी नामों में कब आ गईं और कैसे शासकीय रिकॉर्ड में दर्ज हो गया यह कोई बताने तैयार नहीं है। निजी नामों में दर्ज होने पर आम लोगों ने इन पहाड़ों को ध्वस्त कर दिया। बारूद के सहारे विशालकाय चट्टानों को टुकड़ों में करके इन स्थल को समतल कर दिया। यह सब तमाशा प्रशासन के जिम्मेदार नुमाइंदे देख रहे हैं पर शासकीय रिकॉर्ड को चैक करने की फुर्सत किसी को नहीं है। स्थिति यह है कि रोड के दोनों तरफ लोगों ने अवैध को वैध कराकर बाकायदा पक्का निर्माण भी शुरू कर दिया। पहाड़ों पर आवासीय, व्यावसायिक निर्माण भी किए जा रहे हैं। यही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं होगा जब इन पहाड़ों का नामो-निशान तथाकथित भूमाफिया मिटा देंगे और शहर के नागरिक मुँह ताकते रहेंगे और आने वाली पीढ़ी के लिए पहाड़ एक इतिहास की तरह बनकर रह जाएँगे और किताबों में ही उनके चित्र देख पाएगी। 
जिला प्रशासन के राजस्व रिकॉर्ड का अवलोकन करने में यह बात सामने आई है कि मदन महल की पहाड़ी कभी किसी निजी व्यक्ति के नाम पर नहीं थी। वर्ष 1909-10 के राजस्व रिकॉर्ड का अवलोकन किया जाए या फिर वर्ष 1954-56 का। सारे रिकॉर्ड में पहाड़-चट्टान के नाम पर ही पूरा इलाका दर्ज है। मदन महल का किला भी पुरातात्विक धरोहर है और उसके साथ ही पूरी पहाड़ी भी धरोहर के रूप में देखी जाती है, पर वोट की राजनैतिक बहार में पूरी पहाड़ी में बस्ती बसा दी गई थी पर हाईकोर्ट के सामने शहर के जागरूक नागरिकों ने पूरा पक्ष रखा और हाईकोर्ट के निर्देश पर पहाड़ी तो खाली हो गई पर अचानक पहाडिय़ों में निजी नाम के स्वामित्व बनकर लोग सामने आने लगे हैं जो यहाँ धरोहर को क्षति पहुँचाने में पीछे नहीं हैं। उल्लेखनीय है कि मप्र हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि मदन महल पहाड़ी का नए सिरे से सर्वे कर अतिक्रमण हटाए जाएँ।
कैसे हो गई हेराफेरी
मदन महल का किला हो या फिर पहाड़ी पुरातात्विक धरोहर हैं। इन क्षेत्रों का विकास करके एक पर्यटन स्थल बनाए जाने की कार्ययोजना बनाई गई थी उसके बाद भी जिम्मेदार आँखें मूँदे हुए हैं। जानकारों का कहना है कि शासकीय रिकॉर्ड में हेराफेरी हुई है यह जाँच का विषय है। पुराना रिकॉर्ड आज भी जीवित है और उससे अगर जिला प्रशासन मिलान कराता है तो संभव है कि सारी स्थिति स्पष्ट हो जाएँगी। 
 

Created On :   25 Sept 2021 2:33 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story