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कंपनी के खुद के टोकन, शासन को करोड़ों का चूना
आराध्य ग्रुप मामला - सीजीएसटी की जाँच में हर दिन हो रहे नए खुलासे, खँगाले जा रहे रिकॉर्ड, सामने आया टोकन का फंडा
डिजिटल डेस्क जबलपुर । सीजीएसटी के छापे के बाद रेत ठेका कंपनी आराध्य ग्रुप के दस्तावेजों की जाँच का क्रम जारी है। इस बीच शुक्रवार को एक और चौंकाने वाले राज का खुलासा हुआ है। रेत का परिवहन करने वालों के पास से कुछ टोकन (रसीद नुमा कागज) अधिकारियों के हाथ लगे हैं। यह बात भी सामने आई कि ठेका कंपनी के लोग निर्धारित रॉयल्टी पर्ची की जगह यही रसीद कागज नुमा टोकन डंपर और हाइवा चालकों को थमा देते थे। सेटिंग के चलते यह टोकन इस तरह असरकारी होता था कि रास्ते में मिलने वाले खनिज विभाग, प्रशासन और पुलिस के अधिकारी इसी टोकन को देखकर रेत भरे वाहन को आगे जाने की इजाजत दे देते थे। इसके बदले हर महीने उन्हें विधिवत उपकृत भी किया जाता था। जानकार बताते हैं कि मिली भगत से रॉयल्टी की पर्ची की जगह इस टोकन को चलाकर शासन को करोड़ों रुपए का चूना लगाया गया। जानकार बताते हैं कि रेत का परिवहन करने वाले वाहनों के पास रॉयल्टी पर्ची होना अनिवार्य है। इसके बिना किसी भी वाहन से रेत का परिवहन करना नियम विरुद्ध है, लेकिन साँठगाँठ के चलते इन सभी नियमों को ताक पर रख दिया गया। यह भी बात सामने आई है कि इस खेल में खनिज विभाग के कुछ अधिकारियों ने भी बराबरी की भूमिका निभाई है। अवैध खदानों से खोदी गई कई हाइवा रेत तक इसी टोकन के सहारे बाजार में खपा दी गई। कहने को तो रॉयल्टी पर्ची पर आराध्य ग्रुप द्वारा सिर्फ 14 खदानों से ही रेत निकाली जा रही है लेकिन हकीकत में 43 खदानों से अवैध तरीके से खनन करके रेत को बेच दिया गया। कई जगह पर भारी मात्रा में स्टॉक भी इसी फंडे के तहत किया गया है।
मनमाने रेट पर बिकती है रेत
रेत के खेल में आम आदमी को नुकसान होता है। नियम यह है कि प्रति घनमीटर के हिसाब से शासन के खाते में 526 रुपये की राशि जमा होती है। इसके बाद ठेका कंपनी एक हाइवा से 12 से 15 हजार रुपये वसूलती है। वाहन मालिक फिर अपना खर्चा निकालकर बाजार में रेत पहुँचाते हैं। इसमें भी कई लोगों के कमीशन जुड़ जाते हैं। इस तरह एक हाइवा रेत आम आदमी को 22 से 25 हजार रुपये में मिलती है।
हर दिन निकलती हैं 4 सौ गाडिय़ाँ
खनिज विभाग से जुड़े सूत्रों के अनुसार रेत निकालने पर 526 रुपये प्रति घनमीटर के हिसाब से रॉयल्टी पर्ची कटती है। यह राशि सरकार के खाते में जाती है। यहाँ लेकिन हाथ से लिखी पर्चियाँ और बंदियाँ (टोकन) चल रही हैं। जिससे हर दिन सरकार को लाखों रुपये का राजस्व का नुकसान हो रहा है। ऐसा भी नहीं है कि खनिज विभाग ने इस पर शिकंजा कसने के लिए कोई प्रयास न किए हों। खनिज माफिया हर नियम कायदे का कोई न कोई तोड़ निकाल लेता है। जानकारों का अनुमान है कि हर दिन जिले से तकरीबन 400 गाड़ी (डंपर, हाइवा, ट्रैक्टर आदि) रेत निकलती है। एक हाइवा में 12 घनमीटर रेत आती है इस तरह एक हाइवा की 6 हजार रुपये से ज्यादा की रॉयल्टी बनती है। यह लेकिन जमा नहीं होती है। कुछ वाहनों की ईटीपी काटकर ठेका कंपनी फॉर्मेल्टी कर रही है जबकि कई हाइवा रेत अवैध तरीके से शहर में पहुँचकर बिक रही है। इस रेत का मुनाफा वाहन मालिक और ठेकदारों तक ही पहुुँच रहा है। माह के अंत में इसका विधिवत बँटवारा अधिकारियों तक किया जाता है।
इनका कहना है
अवैध रेत के परिवहन और खनन के साथ ही अन्य जाँच भी टीम करती है। वाहन की रॉयल्टी पर्ची है कि नहीं इसके साथ ही अन्य दस्तावेज भी चैक किये जाते हैं। अगर कहीं गड़बड़ी होती है तो जाँच की जाती है। अगर टोकन पर्ची चल रही है तो इसकी भी जाँच की जाएगी और कार्रवाई की जाएगी।
पीके तिवारी, जिला खनिज अधिकारी
Created On :   21 Aug 2021 1:54 PM IST