ब्लैक फंगस -150 के पार मरीजों का आंकड़ा , संदेह के कठघरे में इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन!

The figure of patients across the Black Fungus-150, Industrial Oxygen in the Box of Doubt!
ब्लैक फंगस -150 के पार मरीजों का आंकड़ा , संदेह के कठघरे में इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन!
ब्लैक फंगस -150 के पार मरीजों का आंकड़ा , संदेह के कठघरे में इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन!

अनशॉल्ड थ्यौरी- * ऑक्सीजन के ट्रांसपोर्टेशन में नहीं रखा गया मेडिकल स्टैंडर्ड का ध्यान इसलिए फैला फंगस
* कारण जानने इक हो रहा मरीजों का डाटा
* मेडिकल एक्सपट्र््स ने कहा- स्टेरॉइड से इम्युनिटी वीक होना भी बड़ी वजह
डिजिटल डेस्क जबलपुर ।
म्यूकोरमाइसिस यानी की ब्लैक फंगस पोस्ट कोविड बीमारी के रूप में तेजी से सामने आ रहा है। रोजाना इसके मरीज बढ़ रहे हैं। जबलपुर में ही ऐसे मरीजों की संख्या 154 पहुँच चुकी है। कोरोना के इलाज के दौरान स्टेरॉइड के अधिक इस्तेमाल से मरीज की इम्युनिटी कम होना और शुगर के अनियंत्रित हो जाने को ब्लैक फंगल इंफेक्शन की वजह बताया जा रहा है। इसके बीच इस बात पर भी बहस हो रही है कि ब्लैक फंगस कहीं इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन की वजह से तो नहीं हो रहा है? दूसरी लहर में ऑक्सीजन की किल्लत  के चलते बड़ी मात्रा में इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन की सप्लाई अस्पतालों को की गई थी। ऐसे में जिन टैंकरों और प्लांट्स में इनकी फिलिंग और रिफिलिंग हुई, वहाँ मेडिकल ऑक्सीजन के स्टैंडर्ड के हिसाब से हाईजीन मेंटेंन किया गया या नहीं, जैसे कई प्रश्न उठ रहे हैं। कहा जा रहा है कि  ब्लैक फंगस के मामले देश के उन्हीं राज्यों में देखे गए हैं, जहाँ इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन दी गई, अन्य राज्यों यहाँ तक की दूसरे देशों में भी ब्लैक फंगस के केस नहीं देखे गए,  जबकि स्टेरॉइड का इस्तेमाल सिर्फ कोरोना नहीं बल्कि कई अन्य बीमारियों में भी होता रहा है। 
ट्रांसपोर्टेशन में नहीं रखा मेडिकल स्टैंडर्ड का ध्यान -  दूसरी लहरी में जब ऑक्सीजन की किल्लत हुई तो पूर्ति के लिए इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन पहुँचाई गई। लोगों का तर्क है कि  इसके लिए मेडिकल स्टैंडर्ड का ध्यान नहीं रखा गया। नॉन मेडिकल सिलेंडर्स और टैंकर्स का उपयोग हुआ। कई जगह वर्षों से पड़े पुराने सिलेंडर्स भी उपयोग कर लिए गए। उपयोग से पहले इन्हें स्टर्लाइज यानी ठीक से साफ नहीं किया गया। जिसके वजह से हाईजीन मेंटेंन नहीं हो सका।  
स्टेरॉइड का ज्यादा इस्तेमाल बनी वजह 6 चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि इसकी अहम वजह वे स्टेरॉइड हैं, जो कोरोना के मरीजों में वायरस का संक्रमण दूर करने के लिए दिए जाते हैं, जिसके चलते मरीजों की रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है, जो फंगल इंफेक्शन से लडऩे में नाकामयाब साबित होती है। मेडिकल कॉलेज में निश्चेतना विशेषज्ञ डॉ. आशीष सेठी के अनुसार इम्युनिटी वीक होने में स्टेरॉइड का ज्यादा इस्तेमाल प्रमुख कारण है। ब्लैक फंगस की मुख्य वजह भी यही है। इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन उपयोग भी मेडिकल ऑक्सीजन की तरह किया जा सकता है, थोड़ा शुद्धता का फर्क है। 
मेडिकल और इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन में फर्क 
* विज्ञान के जानकारों के अनुसार मेडिकल और इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन में मुख्य अंतर शुद्धता का है। मेडिकल ऑक्सीजन 99 प्रतिशत तक शुद्ध होती है। इसका रख-रखाव भी मेडिकल स्टैंडर्ड के मुताबिक होता है। कोरोना काल में मेडिकल ऑक्सीजन की अत्यधिक जरूरत पड़ी। इसके पहले रेस्पेरेटरी, कार्डियक, एनेस्थिसिया आदि में मेडिकल ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती रही है। अत्यधिक ऊँचाई पर चढऩे वाले एथलीट्स भी मेडिकल ऑक्सीजन लेकर जाते हैं। 
* इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन का उपयोग दहन के लिए, कटिंग के लिए, केमिकल रिएक्शन आदि के लिए होता है। यह 85 से 90 फीसदी तक शुद्ध होती है। इसके रख-रखाव और साफ-सफाई पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता, जितना मेडिकल ऑक्सीजन पर दिया जाता है।
 

Created On :   27 May 2021 3:17 PM IST

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