जहां चंद्रशेखर आजाद ने गुजारे थे अज्ञातवास के डेढ़ साल, वह स्थली है उपेक्षित

The place is neglected where the Chandrashekhar Azad had lived
जहां चंद्रशेखर आजाद ने गुजारे थे अज्ञातवास के डेढ़ साल, वह स्थली है उपेक्षित
जहां चंद्रशेखर आजाद ने गुजारे थे अज्ञातवास के डेढ़ साल, वह स्थली है उपेक्षित

डिजिटल डेस्क, टीकमगढ़। पूरा देश भारत के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की112वीं जयंती 23 जुलाई को मना रहा है। दुर्भाग्य है कि अमर शहीदों के ऐतिहासिक स्मारकों की देखरेख पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इसका जीता-जागता उदाहरण है जिले के ओरछा स्थित सातार नदी के तट पर बने चंद्रशेखर आजाद का स्मारक ; वे अपने अज्ञातवास के दौरान 1926-1927 में यहां ठहरे थे। 1984 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने चंद्रशेखर आजाद की आदमकद कांस्य प्रतिमा का लोकार्पण किया था। 

चंद्रशेखर आजाद जिस कुटिया में ठहरे थे, वर्तमान में वह उपेक्षित पड़ी है। कच्चे मकान में केवल एक फोटो और जीर्ण-शीर्ण चबूतरा बना है। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार उत्तर प्रदेश के काकोरी में राम प्रसाद बिस्मिल की अगुवाई में हुए काकोरी कांड में आजाद उनके साथ थे, तब सहारनपुर, लखनऊ सवारी गाड़ी से अंग्रेज सरकार का खजाना लूट लिया गया था।

इस घटना के बाद आजाद झांसी आ गए। उसके बाद उन्होंने अपना रुख ओरछा के सातार नदी के किनारे के जंगल की ओर किया। सातार नदी के तट पर बने आजाद स्मारक में दर्ज विवरण इस बात की गवाही देते हैं कि आजाद यहां संन्यासी बनकर रहे थे। उन्हें चंद्रशेखर से हरिशंकर छद्म नाम स्वतंत्रता सेनानी रुद्रनारायण सिंह ने दिया। आजाद यहां लगभग डेढ़ वर्ष तक रहे। यहां उन्हें कोई पहचान नहीं पाया और वह यहीं रहकर आजादी के अपने मिशन को अंजाम देते रहे। आजाद के समय की स्मृतियां तो बची हैं, मगर वे ज्यादा दिन अपने अस्तित्व में रह पाएंगी या नहीं, इसमें हर किसी को संदेह है।

आजाद ने यहां पर एक छोटा कुआं खोदा था, जो आज भी है। इसी के साथ उन्होंने एक हनुमान मंदिर स्थापित किया और कुटिया बनाई। स्मारक में उपलब्ध दस्तावेज बताते हैं कि आजाद का नजदीक के गांव ढिमरपुरा के मलखान सिंह ठाकुर के घर पर आना-जाना रहता था। इस गांव का नाम अब आजादपुरा है। मलखान सिंह की पहचान पंजा लड़ाने वाले पहलवान की थी, मगर वह पंजा लड़ाने में आजाद से हार गए तो उनकी क्षेत्र में अलग पहचान बन गई थी।

ओरछा में गुरिल्ला युद्ध का अभ्यास किया
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार सातार के जंगल में ही आजाद ने गुरिल्ला युद्ध का अभ्यास किया और साथियों को भी प्रशिक्षण दिया। वह शिकार के बहाने हथियार चलाने का अभ्यास किया करते थे। आजाद जिस कुटिया में सोते थे, वह मिट्टी की है। मिट्टी का चबूतरा उनकी चारपाई थी, तो तकिया भी मिट्टी का ही था। कुटिया का कुछ हिस्सा ही बचा है। अब वह खंडहर में बदलने लगी है। आजाद ने यहां बच्चों को पढ़ाने का भी काम किया था। सातार नदी तट पर जहां आजाद ने अज्ञातवास काटा था, वहां स्मारक बन गया है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस स्मारक का लोकार्पण 31 मई 1984 को किया था। यहां आजाद की जयंती और पुण्यतिथि के मौके पर कार्यक्रम आयोजित कर उन्हें याद किया जाता है।

स्थली संवारने कवि ने लिखा पीएम को पत्र
बुंदेलखंड के ख्याति प्राप्त कवि सुमित मिश्रा ने सातार तट पर बनी चंद्रशेखर आजाद की स्थली को संवारने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री श्री मोदी ने केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय को पत्र भेजा है। जवाब में संस्कृति मंत्रालय के सचिव ने मुझे पत्र लिखा है। जिसमें बताया गया है कि अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद की 125वीं जयंती, जो कि 2031 में आएगी। तब सातार नदी के तट पर बने स्मारक को बेहतर ढंग से सजाया, संवारा जाएगा। श्री मिश्रा ने कहा कि आजादी के बाद पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ देश में राष्ट्रवादियों की सरकार बनी है। ऐसी स्थिति में भी अगर देश के अमर सपूतों की स्थली उपेक्षित रहेंगी तो यह दुर्भाग्य की बात है।

Created On :   23 July 2018 8:12 AM GMT

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