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प्राचीन कलाकृतियों की बिक्री की अनुमति अब अधीक्षण पुरातत्वविद देंगे
डिजिटल डेस्क, भोपाल। प्रदेश में प्राचीन कलाकृतियों की बिक्री की अनुमति अब भारत सरकार के आर्कियोजाजिकल सर्वे आफ इण्डिया यानि एएसआई के मप्र के भोपाल में बैठने वाले अधीक्षण पुरातत्वविद देंगे। प्रदेश में प्राचीन कलाकृतियों के व्यापार का लायसेंस अभी चार-पांच लोगों के पास ही है तथा नई व्यवस्था होने से अब इसके और लायसेंस जारी होंगे।
उल्लेखनीय है कि प्रदेश की प्राचीन धरोहरों के संरक्षण का कार्य राज्य का पुरातत्व कार्यालय और केंद्र सरकार का एएसआई दोनों करते हैं तथा इसके लिये ऐसी धरोहरे दोनों के बीच बंटी हुई है। इसके अलावा लोगों के घरों, किलों एवं महलों में पड़ी प्राचीन धरोहरों का भी रजिस्ट्रेशन होता है। पहले इस रजिस्ट्रेशन का कार्य मप्र सरकार का पुरातत्व कार्यालय करता था परन्तु कुछ माह पहले भारत सरकार ने उससे यह अधिकार छीन लिया है और अब यह कार्य एएसआई के सांची म्युजियम में बैठने वाले सहायक सुपरिन्टेन्डेंट आर्कियोलाजिस्ट डा. एमसी जोशी को दे दिया गया है। लेकिन सात माह बीतने के बावजूद राज्य सरकार का पुरातत्व कार्यालय उसके द्वारा रजिस्टर्ड प्राचीन धरोहरों का विवरण एएसआई के उक्त अधिकारी को नहीं कर सका है। इस व्यवस्था से अब प्रदेश के लोगों को अपने निवास पर रखी प्राचीन धरोहरों के रजिस्ट्रेशन हेतु सांची आना पड़ेगा जबकि यह कार्य पहले राज्य पुरातत्व कार्यालय के प्रदेशभर के जिलों में स्थित सर्किल कार्यालयों में ही हो जाता था।
प्राचीन धरोहरों की बिक्री हेतु भी लायसेंस लेना होता है जिसके लिये पहले कोई डेजिगनेटेड अधिकारी नहीं था जिसे अब भारत सरकार ने कर दिया है। लायसेंस की यह व्यवस्था भारत सरकार ने प्राचीन धरोहरों की तस्करी रोकने के लिये की है। प्रदेश में ऐसी तस्करी की कई घटनायें सामने आ चुकी हैं। प्राचीन धरोहरों का विदेश में काफी मूल्य होता है तथा इसके करोड़ों रुपये मिलते हैं। भारत सरकार ने इसकी तस्करी करने पर दस साल की सजा का प्रावधान किया हुआ है। नई लायसेंसिंग अथारिटी डेजिगनेटेड होने से अब इनके वैधानिक व्यापार हेतु लोग लायसेंस ले सकेंगे।
Created On :   12 Nov 2017 10:13 PM IST