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अकादमिक हिंदी की स्थिति पर पुनर्विचार हो : प्रो. दीक्षित
डिजिटल डेस्क, नागपुर । बदलते समय के परिप्रेक्ष्य में यह जरूरी है कि अकादमिक हिंदी की स्थिति पर पुनर्विचार हो। आज हिंदी चहुंओर बढ़ रही है। पूरी दुनिया में हिंदी का प्रचार हो रहा है, हिंदी वैश्विक भाषा बन रही है, किन्तु अकादमिक जगत में हिंदी के प्रति जागरूकता में निरंतर कमी आती जा रही है। यह बात हिंदी के प्रख्यात चिंतक, राष्ट्र भाषा प्रचार समिति, वर्धा और हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग के सभापति प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित ने कही। वे राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन अवसर पर बोल रहे थे। संगोष्ठी का विषय था ‘अकादमिक हिंदी स्थिति और संभावनाएं’।
उन्होंने कहा कि लोग अपनी दुनिया में इतने सिमट गए हैं कि उन्हें इसका एहसास ही नहीं रह गया है कि वे अपनी भाषा और साहित्य के साथ किस तरह का कुठाराघात कर रहे हैं। हिंदी ही नहीं पूरे भारतीय ज्ञान-विज्ञान में शोध की स्थिति दयनीय होती जा रही है। यह दुर्भाग्यपूर्ण सच है कि हमारे शोध संस्थानों से कोई महत्वपूर्ण शोध कार्य इधर नहीं आ रहा है। शोध राष्ट्र के विकास का मानक तय करता है, इसलिए इस पर गंभीरता से चिंतन करने की जरूरत है।
शोध के क्षेत्र अनंत हैं
सत्र का अध्यक्षीय उद्बोधन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सिद्धार्थ विनायक काणे ने किया। उन्होंने कहा कि भाषा और साहित्य में शोध कार्य पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। शोध हमारे समाज के लिए दिशा सूचक होते हैं। इस पर विचार करना हम शिक्षण संस्थानों का दायित्व है। प्रमुख अतिथि स्वामी रामानंद तीर्थ मराठवाड़ा विश्वविद्यालय नांदेड़ के प्र-कुलपति डॉ. जोगेंद्र सिंह बिसेन ने कहा कि शोध के अनंत क्षेत्र हैं, लेकिन सावधानी पूर्वक उनके चयन और निष्पादन की आवश्यकता है। हमें शोध के मापदंडों पर सख्ती से विचार करने की जरूरत है।
ऐसे आयोजन चिंतन के द्वार खोलेंगे
विशिष्ट अतिथि के रूप में नेशनल थर्मल पॉवर कारपोरेशन लिमिटेड के मुख्य प्रबंध निदेशक दिलीप कुमार ने कहा कि आज हिंदी का प्रचार बड़ी तेजी से हो रहा है। हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए इस दिशा में शोध के नए क्षेत्रों को तलाशा जाना चाहिए। स्वागत उद्बोधन में विभाग के अध्यक्ष प्रो. प्रमोद शर्मा ने कहा कि हिंदी विभाग निरंतर इस तरह के नए आयोजन करता रहता है। यह आयोजन हिंदी की वर्तमान दिशा पर चिंतन का द्वार खोलेगा, ऐसी अपेक्षा है। संचालन संगोष्ठी के संयोजक डॉ. मनोज पाण्डेय ने तथा आभार प्रदर्शन प्रो. वीणा दाढ़े ने किया।
Created On :   11 Feb 2020 3:54 PM IST