आजादी के पहले ही फहरा दिया था तिरंगा - बुढ़ार में भड़की थी आजादी की चिंगारी,  जलाई थी विदेशी वस्त्रों की होली

The tricolor was hoisted before independence - there was a spark in freedom
आजादी के पहले ही फहरा दिया था तिरंगा - बुढ़ार में भड़की थी आजादी की चिंगारी,  जलाई थी विदेशी वस्त्रों की होली
आजादी के पहले ही फहरा दिया था तिरंगा - बुढ़ार में भड़की थी आजादी की चिंगारी,  जलाई थी विदेशी वस्त्रों की होली

डिजिटल डेस्क  शहडोल । अंग्रेजी हुकूमत की बेडिय़ों से हिन्दुस्तान को स्वतंत्र कराने के लिए देश के कोने-कोने में स्वतंत्रता का बिगुज बजा था। भारत छोड़ो आंदोलन के पहले चाहे असहयोग आंदोलन रहा हो अथवा नमक सत्याग्रह जैसे बड़े आंदोलनों ने अंग्रेजों को हिलाकर रख दिया था। ऐसे में आजादी के दीवाने शहडोल जिले में थे, जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए न केवल आंदोलनों में हिस्सा लिया, बल्कि आजादी मिलने के पहले ही तिरंगा फहराकर अपनी मंशा जता दी। इसके बाद जेल भी गए। शहडोल जिला बनने के पूर्व रीवा रियासत के जमाने में कोयलांचल नगरी बुढ़ार से भी आजादी की चिंगारी भड़की थी। पाकर का पेड़ और उसके नीचे स्थापित शिलालेख आज भी स्थानीय स्वतंत्रता सेनानियों के जज्बे की कहानी बयां कर रही है। 
असहयोग व नमक सत्याग्रह का रहा असर
आजादी के लिए संघर्ष करने वालों में बुढ़ार निवासी स्व. शिव प्रसाद जी गुप्ता (बड़का जी) का नाम आज भी आदर से लिया जाता है। वर्ष 1914 में जन्में बड़का जी बचपन से ही देश को आजाद देखना चाहते थे। वर्ष 2009 में 97 वर्ष की अवस्था में उनका निधन हुआ। उनके दूसरे पुत्र दिनेश गुप्ता ने बताया कि पिताजी अक्सर आजादी कैसे मिली इसके बारे में मां को बताया करते थे। उन्होंने उस समय के आंदोलन के बारे में बताया जब गांधीजी द्वारा विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार का ऐलान किया गया था। बुढ़ार में भी इसका व्यापक असर रहा। वर्ष 1929 में पाकर पेड़ के नीचे राष्ट्रीय ध्वज फहराकर विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गई। अंगे्रजी सरकार ने बड़काजी सहित अन्य कईयों को जेल में डाल दिया। डेढ़ वर्ष तक जेल में रहे। इसके पूर्व हुए नमक सत्याग्रह में भी बड़का जी के साथ अन्य लोगों हिस्सा लिया, जिस पर 6 महीने के लिए जेल जाना पड़ा।
आजादी की लड़ाई का प्रतीक बना पाकर पेड़
बुढ़ार में स्थित पाकर का पेड़ आजादी की लड़ाई का प्रतीक बना हुआ है। बड़का जी के घर के पास स्थित पेड़ के नीचे एक शिलालेख स्मारक के रूप में आजादी मिलने पर सन 1947 में स्थापित किया गया, जिसका विधिवत प्रतिष्ठापन 5 जून 1976 को वरिष्ठ सैनिक शिवप्रसाद गुप्ता के कर कमलों द्वारा कराया गया। जिसमें दर्ज है कि इसी पेड़ के नीचे स्वतंत्रता संग्राम की ज्योति प्रज्जवलित हुई और यहीं पर सभाएं की जाकर आंदोलन को जागृति दी गई। दिनेश गुप्ता बताते हैं कि प्रत्येक 15 अगस्त तथा 26 जनवरी को यहां पर राष्ट्रीय ध्वज फहराकर स्वतंत्रता सेनानियों को याद किया जाता है।
 

Created On :   12 Aug 2020 3:32 PM IST

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