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जान से मारने की धमकी आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं - हाईकोर्ट
डिजिटल डेस्क, मुंबई। जान से मारने की धमकी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता है। बांबे हाईकोर्ट ने एक पतपेढी के प्रबंधक की आत्महत्या के मामले के चार आरोपियों की रिहाई के आदेश को कायम रखने के फैसले में यह बात कही है। चारों आरोपियों पर कोल्हापुर स्थित बाबूरावजी महाराज नागरी पत संस्था में प्रबंधक के रुप में कार्यरत संजय जाधव को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप था। जाधव ने मई 1998 को बैंगलोर के एक होटल में आत्महत्या कर ली थी। उसके शव के पास से मिले पत्र के आधार पर पुलिस ने रामचंद्र पाटील, श्रीधर घोरपड़े, जर्नादन कोरे व अतुल रांगणेकर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 306, 384, 420, 323,व 34 के तहत मामला दर्ज किया था। निचली अदालत ने सबूत के अभाव में चारों आरोपियों को बरी कर दिया था। जिसके खिलाफ राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में अपील की थी। न्यायमूर्ति के.आर श्रीराम के सामने सरकार की अपील पर सुनवाई हुई।
अभियोजन पक्ष के मुताबिक जाधव जिस पत संस्था में काम करता था शुरुआत में उसकी वित्तीय स्थिति अच्छी थी लेकिन बाद में कर्जदारों द्वारा कर्ज का भुगतान न करने के चलते पत संस्था की आर्थिक हालत बिगड़ती चली गई। इस बीच पतपेढी के लिए काम करनेवाले ने जाधव की मुलाकात अतुल रांगणेकर से कराई। रांगणेकर ने जाधव से कहा कि उसके एक चाचा मुंबई में उद्योगपति हैं। वे एक करोड़ रुपए का निवेश करना चाहते है। यदि वह (जाधव) उसे सात लाख रुपए कमीशन दे तो वह एक करोड़ रुपए की नकदी उसकी संस्था में जमा करा सकता है। जाधव ने संस्था के चेयरमैन को इसकी जानकारी दी। चेयरमैन ने चार लाख रुपए का इंतजाम किया जबकि जाधव को शेष तीन लाख रुपए की व्यवस्था करने को कहा। जाधव ने डेढ लाख रुपए साहुकार से उधार लिए बाकी रकम अपने रिश्तेदारों से ली और उसे सात लाख रुपए दे दिया। इस बीच रांगणेकर प्रबंधक जाधव को अपने चाचा से कई बार मिलवाने के लिए मुंबई ले गया लेकिन मुलाकात नहीं हो पायी। जिससे एक करोड़ रुपए का भी इंतजाम नहीं हो पाया। इसके बाद रांगणेकर ने चेयरमैन के चार लाख रुपए तो लौटा दिए लेकिन जाधव के तीन लाख का भुगतान नहीं किया। इस दौरान जाधव ने जिस साहुकार से कर्ज लिया था वह उसे पैसे के भुगतान का दबाव बनाने लगा। इधर रिश्तेदार भी जाधव से अपने पैसे मांगने लगे। इससे जाधव काफी तनाव में था। एक दिन साहुकार ने जाधव को रास्ते में पकड़ा और उसकी पिटाई भी की। इसके साथ ही कहा कि वह जब तक कर्ज की रकम का भुगतान नहीं करता तब तक मकान के कागज उसके पास जमा करे। आरोपियों ने जाधव से कहा था कि यदि वह उनके पैसे का भुगतान नहीं करेगा तो वे उसे जान से मार देंगे। इसके बाद जाधव ने एक होटल के कमरे में आत्महत्या कर ली।
न्यायमूर्ति ने सरकारी वकील की दलीलों से असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि यदि आरोपी किसी को आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए प्रेरित करता है तो ही उसे आत्महत्या के लिए उकसाना माना जा सकता है। न्यायमूर्ति ने कहा कि जाधव के शव के पास से जो पत्र मिला है उसमे कही नहीं लिखा है कि आरोपियों ने उसे आत्महत्या करने के लिए कहा है। न्यायमूर्ति ने कहा कि आरोपी बिल्कुल भी नहीं चाहते थे कि जाधव आत्महत्या करे क्योंकि यदि जाधव आत्महत्या कर लेगा तो उनके पैसो का भुगतान नहीं हो पाएगा। न्यायमूर्ति ने कहा कि आत्महत्या करने का निर्णय जाधव का खुद का था। क्योंकि वह कर्ज को लेकर परेशान था। और उसे महसूस हो रहा था कि आरोपियों से बहस करके कोई फायदा नहीं है। वह उनके कर्ज का भुगतान नहीं कर पाएगा। घर से जाधव पुणे के लिए निकला था बाद में वह पुणे की बजाय बैंगलोर चला गया। इसलिए इस मामले में धारा 306 के तहत मामला नहीं बनता। अन्य आरोपों को लेकर भी ठोस सबूत नहीं पेश किए गए। यह बात कहते हुए न्यायमूर्ति ने निचली अदालत के आदेश को कायम रखा और राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया।
Created On :   31 Dec 2019 7:54 PM IST