जर्जर इमारत में शौचालय - दिव्यांगों से कह रहे अपने रिस्क पर जाओ

Toilets in Shabby Building, Saying to Divya Go On Your Risk
जर्जर इमारत में शौचालय - दिव्यांगों से कह रहे अपने रिस्क पर जाओ
जर्जर इमारत में शौचालय - दिव्यांगों से कह रहे अपने रिस्क पर जाओ

डिजिटल डेस्क, नागपुर। सोशल मीडिया पर आजकल एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें एक व्यक्ति गली के चक्कर लगाते हुए कह रहा है कि जागते रहो, मेरे भरोसे मत रहो। कुछ इसी तरह मनपा भी दिव्यांगों को कह रही है, शौचालय में जाएं तो अपनी जान की सुरक्षा खुद करें, हमारे भरोसे मत रहें। दरअसल मनपा ने दिव्यांगों के लिए जिस इमारत में शौचालय बनाया है, वह जर्जर हो चुकी है। खास बात यह है कि इसके समीप ही कई स्थानों पर जर्जर इमारत से सुरक्षा की सूचना लगाई गई है। ऐसे में जर्जर इमारत में शौचालय बनाने पर सवाल उठ रहे हैं। लगभग दो साल पहले उच्च न्यायालय ने दिव्यांगों को प्रशासकीय कार्यालयों में सुविधा मुहैया कराने केे निर्देश दिये थे। इसके बाद सरकार के सभी कार्यालयों ने दिव्यांगों के लिए रैंप, रेलिंग और शौचालय बनाने का काम शुरू कर दिया है। मनपा ने भी दो लाख रुपए की लागत से शौचालय  का निर्माण कराया है।

प्रशासकीय कार्यालयों में दिव्यांगों के सुविधा मुहैया कराने के उच्च न्यायालय के निर्देश के बाद समीक्षा समिति बनायी गई थी। इस समिति ने मनपा की नई और पुरानी इमारत के सभी हिस्सों का निरीक्षण किया था। निरीक्षण के दौरान नई इमारत में फायर विभाग के समीप दिव्यांग शौचालय की सुविधा मिली थी, हालांकि सीढ़ियों के समीप टैक टाइल्स और रैम्प नहीं था। इसके अलावा पूरे इलाके में दिव्यांगों को सुविधाओं की जानकारी देने वाले बोर्ड भी नहीं थे। समीक्षा समिति ने नई इमारत में रैम्प, टाइल्स और सूचना बोर्ड को तत्काल लगाने के निर्देश दिये थे। वहीं दूसरी ओर पुरानी इमारत में दिव्यांग शौचालय की व्यवस्था करने का निर्देश दिया था। लोक निर्माण विभाग के तत्कालीन अभियंता राजेन्द्र रहाटे ने पुरानी इमारत में तत्काल शौचालय की व्यवस्था करने का आश्वासन दिया था लेकिन दो वर्षों तक इस पर कार्यवाही नहीं की गई। अब शौचालय का निर्माणकार्य पुरानी इमारत में कैन्टीन के समीप किया गया है, लेकिन बेहद जर्जर इमारत में निर्मित शौचालय होने से दिव्यांगों की सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रहे हैं। इतना ही नहीं, पिछले करीब चार सालों से इमारत के प्रत्येक हिस्से में खतरनाक इमारत में नागरिकों से सावधानी बरतने के नोटिस भी लगाए गए हैं। ऐसी इमारत में बने शौचालय को दिव्यांग सुरक्षित रूप में कैसे इस्तेमाल कर पाएंगे, इसका जवाब देने से अब लोक निर्माण विभाग भी बचने का प्रयास कर रहा है।    

मनपा के लोक निर्माण विभाग ने कैंटीन के समीप चयनित स्थान पर दिव्यांग शौचालय के लिए दो माह पहले ठेका आवंटन प्रक्रिया की। इस काम का जिम्मा संजय मोपिडवार एजेंसी को दिया गया। करीब 2 लाख रुपए की लागत से सीढ़ियों के कोने में महिला एवं पुरुष दिव्यांगों के लिए व्यवस्था की गई है। पुरानी इमारत के जर्जर हिस्से को प्लास्टर कर सिरमिक टाइल्स, सैनेटरी फिटिंग को लगाकर काम पूरा किया गया है। दिव्यांग सुविधा के लिहाज से जमीन से 12 इंच ऊंचाई तक वाकिंग रैम्प बनाया गया है। बेहद संकरी जगह पर जर्जर स्थिति वाली इमारत में भले ही जीर्णोद्धार कर शौचालय बनाया गया है, लेकिन दुर्घटना की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। इस पूरे काम को आनन-फानन में महज 15 दिनों में तैयार किया गया है। हालांकि अब निर्माण कार्य के बाद लोक निर्माण विभाग भी नए स्थान पर दोबारा से शौचालय बनाने का प्रस्ताव बना रहा है। 

न्यायालय के निर्देश पर दिव्यांगों के लिए सुविधा तैयार करने के निर्देश के बाद मनपा ने प्रशासकीय इमारतों में सुविधाओं का प्रस्ताव तैयार किया था। साल 2017-18 में प्रस्ताव के लिए समाजकल्याण विभाग ने 21.60 लाख रुपए का फंड दिया है। इस फंड से मुख्य इमारतों में दिव्यांगों के लिए रैम्प, टैक टाइल्स, रेलिंग, ब्रेल लिपि के सूचना बोर्ड लगाना है। इतना ही नहीं, इमारत के मुख्य प्रवेश द्वार पर सूचनाओं के स्थान की जानकारी वाला बड़ा बोर्ड भी लगना है। लोक निर्माण विभाग का दावा है कि ब्रेल लिपि के बोर्ड को छोड़कर सभी सुविधाओं को तैयार कर लिया गया है। ब्रेल लिपि का बोर्ड भी सप्ताह भर में लगा दिया जाएगा। इस फंड में से ही पुरानी इमारत के समीप जर्जर हिस्से में दिव्यांग के लिए शौचालय बनाया गया है।

केन्द्र सरकार ने दिव्यांगों को सुविधाएं मुहैया कराने के लिए प्रारूप को मंजूरी दी है। इसके तहत सभी राज्यों को अपने सरकारी एवं गैर सरकारी कार्यालयों समेत स्थानीय संस्थाओं के प्रशासकीय परिसर में सुविधाओं को तैयार करना है, लेकिन राज्य सरकार की ओर से केन्द्र के नियमों की अनदेखी की जा रही है। ऐसे में कई निजी संस्थाओं ने मुंबई उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की। उच्च न्यायालय ने फरवरी 2018 में राज्य सरकार को समीक्षा कर सुविधाओं को तैयार करने के लिए राज्य एडवाइजरी बोर्ड का गठन करने का निर्देश भी दिया था। न्यायमूर्ति एन एच पाटील एवं नितिन सांबरे की बेंच के मुताबिक एडवाइजरी बोर्ड को केन्द्र सरकार के राइट्स ऑफ पर्सन्स विद डिसेबिलिटी एक्ट 2016 को क्रियान्वयन को पूरा करना था। इससे पहले दिसंबर 2017 में भी उच्च न्यायालय ने एडवाइजरी बोर्ड के माध्यम से राज्य भर में दिव्यांग सुविधाओं की समीक्षा का आदेश दिया था। इसके तहत मार्गों, सार्वजनिक परिवहन स्थलों, प्रशासकीय इमारतों एवं सरकारी स्थानों पर दिव्यांगों के लिए सुविधा तैयार करनी थी।


 

Created On :   5 March 2019 1:55 PM GMT

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