जमीन खरीदने के लिए व्यापारियों ने जमा किया था चंदा, पदाधिकारियों ने कंपनी के नाम कर दी

Traders had deposited donations to buy land, officials gave it in the name of the company
जमीन खरीदने के लिए व्यापारियों ने जमा किया था चंदा, पदाधिकारियों ने कंपनी के नाम कर दी
एनवीसीसी जमीन खरीदने के लिए व्यापारियों ने जमा किया था चंदा, पदाधिकारियों ने कंपनी के नाम कर दी

डिजिटल डेस्क, नागपुर। नाग विदर्भ चेंबर ऑफ काॅमर्स की जमीन के हस्तांतरण मामले में रोज नए खुलासे हो रहे हैं। बताया जाता है कि, चेंबर से संलग्न व्यापारियों ने इस जमीन को खरीदने के लिए चंदा इकट्ठा किया था। जमीन चेंबर के नाम होती, उसके ठीक पहले तत्कालीन पदाधिकारियों ने इसे चेंबर के मिलते-जुलते नाम से अपने नाम करवा ली। यह बात कुछ साल बाद तब पता चली, जब इस जमीन को बेचा गया। इसके बाद वर्तमान पदाधिकारियों ने आनन-फनन में 13 लाख में व्यापारियों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था के नाम की जमीन एक कंपनी के नाम सरेंडर कर दी। पदाधिकारी अब इस धांधली को छिपाने के लिए तरह-तरह के तर्क दे रहे हैं। पूरे मामले में एक खास बात यह भी है कि, 2012 से लेकर 2014 तक चेंबर की एजीएम में इस पर सहमति बनी थी कि, मामले को सुप्रीम कोर्ट तक लड़ेंगे, मगर छोड़ेंगे नहीं। 

किराएदार घोषित करने के लिए भी हुई साजिश

चेंबर से जुड़े सूत्रों के अनुसार, चेंबर से कुछ नामी पूर्व अध्यक्ष  ने जमीन में पार्टनरशिप के ऑफर पर एनवीसीसी को किराएदार कोर्ट में मानने के लिए एक सौदा किया था। इस पर जमीन मालिक से एनवीसीसी किराएदार के रूप में तब्दील हो गई। इसमें सबसे खास भूमिका एनवीसीसी की एक वकील ने निभाई, जो पहले से ही विरोध पार्टी के वकील माने जाते थे। उन्होंने अपने तर्कों से जमीन बचाने के बजाय उसे छोड़ने पर जोर दिया।

कुछ समय पहले तक एनवीसीसी का जहां कार्यालय था, वह जमीन एक जज की थी। जज इस जमीन को बेचना चाहते थे, इसलिए खरीदने का सबसे पहले ऑफर मध्यप्रदेश चेंबर ऑफ काॅमर्स (वर्तमान में एनवीसीसी) को दिया। चेंबर के तत्कालीन पदाधिकारियों ने इस जमीन को खरीदने का मन बनाया और इसके लिए चंदा एकत्रित भी किया। उस समय चेंबर के मुख्य पदाधिकारियों में गोपालदास मोहता और दुर्गाप्रसाद सराफ थे। दोनों ने उक्त जमीन मध्यप्रदेश चेंबर ऑफ काॅमर्स के नाम से खरीदने की जगह इसके मिलते-जुलते नाम मध्यप्रदेश मर्चंट चेंबर ऑफ कॉमर्स प्रा. लि. के नाम से खरीदी। इसके मालिक वे खुद थे। कुछ समय बाद मोहता ने सराफ से जमीन के पूरे शेयर अपने नाम कर लिए। इससे जुड़े पदाधिकारी बताते हैं कि, चेंबर के नाम पर व्यापारियों के हित में संबंधित जज ने जमीन कुछ हजार रुपए में ही दे दी। संबंधित कंपनी सालों तक निष्क्रिय रहने से रिकॉर्ड में गुम होकर रह गई।

एनवीसीसी की जमीन का रेट जब बढ़ गया, तो कुछ साल पहले अचानक मध्यप्रदेश मर्चंट चेंबर ऑफ कॉमर्स प्रा. लि. अस्तित्व में आ गई और इसके कर्ताधर्ता गोपालदास मोहता ने यह जमीन रमेश रांधड़ को 10.25 लाख में बेच दी। जमीन का सौदा करने के बाद रांधड़ ने 2008 में नाग विदर्भ चेंबर ऑफ काॅमर्स पर स्मॉल कॉज कोर्ट में बेदखली का केस दर्ज किया। इसके बाद 2010 में किराया बढ़ाने का केस। इसके बाद एनवीसीसी और रांधड़ के बीच कोर्ट में केस चलने लगा।

किराएदार घोषित करने के लिए भी हुई साजिश
चेंबर से जुड़े सूत्रों के अनुसार, चेंबर से कुछ नामी पूर्व अध्यक्ष  ने जमीन में पार्टनरशिप के ऑफर पर एनवीसीसी को किराएदार कोर्ट में मानने के लिए एक सौदा किया था। इस पर जमीन मालिक से एनवीसीसी किराएदार के रूप में तब्दील हो गई। इसमें सबसे खास भूमिका एनवीसीसी की एक वकील ने निभाई, जो पहले से ही विरोध पार्टी के वकील माने जाते थे। उन्होंने अपने तर्कों से जमीन बचाने के बजाय उसे छोड़ने पर जोर दिया।

एक-एक कर केस कमजोर किया गया : पूरे मामले में एक-एक कर केस कमजोर किया गया। 2019 में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने चेंबर के नाम इस जमीन को छोड़ने के ऑर्डर निकाले। नाग विदर्भ चेंबर ऑफ कॉमर्स अपील में गए। इसी बीच अचानक कोर्ट के बाहर ही दोनों पार्टियों ने आपस में समझौता कर लिया और कोर्ट में चेंबर ने इस जमीन के हस्तांतरण को लेकर सहमति-पत्र दे दिया। और इस तरह करीब 100 करोड़ की जमीन एक कंपनी को महज 6.50 करोड़ में उसके नाम कर दी गई। हालांकि जानकारों का मानना है कि, अंडर टेबल सौदा इससे कई गुना अधिक रकम पर किया गया, जो पदाधिकारियों की जेब में गई। यहां खास बात यह भी है कि, 2012 से लेकर 2014 तक चेंबर की एजीएम में इस पर सहमति बनी थी कि, मामले को सुप्रीम कोर्ट तक लड़ेंगे, इस सहमति को भी दरकिनार कर दिया गया। समझौता होते ही एक रात में वहां खड़ी एेतिहासिक बिल्डिंग को जमींदोज कर दिया गया, ताकि खरीदने वाली कंपनी को असानी हो सके।

Created On :   24 Nov 2021 6:29 PM IST

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