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दंडित करने के उद्देश्य से किया तबादला ही दुर्भावनापूर्ण, याचिका की खारिज
डिजिटल डेस्क, मुंबई। सरकारी कर्मचारी को दंडित करने और उसकी पदावनति करने के इरादे से किए गए तबादले को ही दुर्भावनापूर्ण व अन्यायकारक माना जाएगा। ऐसी परिस्थिति में हस्तक्षेप कर कोर्ट इस तरह के तबादले को रद्द कर सकता है। बांबे हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में यह बात स्पष्ट की है। हाईकोर्ट ने कहा कि यदि प्रशासन अपने प्रशासकीय अधिकारों के अंतर्गत कोई तबादला करता है, तो ऐसे मामलों में अदालत को हस्तक्षेप से दूर रहना चाहिए। हाईकोर्ट ने पोद्दार आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज की विभाग प्रमुख व प्रोफेसर डॉ.एस.एस चौधरी की याचिका खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया।
महानगर के पोद्दार कॉलेज की इस प्रोफेसर का 21 जून 2018 को नांदेड के सरकारी आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर के तौर पर स्थानांतरण किया गया था। तबादले के इस आदेश को प्रोफेसर ने महाराष्ट्र प्रशासकीय न्यायाधिकरण (मैट) में चुनौती दी थी। मैट ने 4 जनवरी 2019 को प्रोफेसर के आवेदन को खारिज कर दिया था। इसलिए प्रोफेसर ने मैट के आदेश को हाईकोर्ट में याचिका दायर कर चुनौती दी थी। याचिका में प्रोफेसर ने आरोप लगाया था कि पोद्दार मेडिकल कॉलेज के अधिष्ठता का इरादा मेरे स्थान पर दूसरी महिला प्रोफेसर को नियुक्ति करने का था। इसलिए मेरे खिलाफ शिकायत की जांच किए बिना ही तबादला कर दिया गया। इसके अलावा प्रोफेसर ने दावा किया था कि कानूनी रुप से उसने अपने पद पर तीन साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया था। इस लिहाज से उसके तबादले का आदेश सही नहीं है।
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति गिरीष कुलकर्णी की खंडपीठ के सामने इस याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान सरकारी वकील ज्योति चव्हाण ने कहा कि अधिष्ठता ने कानून के तहत मिले अधिकारों के तहत याचिकाकर्ता के तबादले के विषय में योग्य निर्णय लिया है। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता का अस्पताल के नर्स व दूसरे कर्मचारियों के साथ व्यवहार ठीक नहीं था। जिसके कारण न सिर्फ माहौल बिगड़ा रहा था, वही इसका असर मरीजों की सेवा पर भी पड़ रहा था। इसलिए अधिष्ठाता ने आयुष निदेशालय को प्रस्ताव भेज कर याचिकाकर्ता के तबादले का आग्रह किया। इस प्रस्ताव की एक प्रति मुख्यमंत्री व मेडिकल शिक्षा मंत्री को भेजी गई थी। इसके बाद हुई बैठक के बाद याचिकाकर्ता के तबादले का आदेश जारी किया गया। जिसे मैट ने भी सही ठहराया है।
इस मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि ऐसा नहीं कि तबादले के आदेश से याचिकाकर्ता के वेतन में कटौती हुई, उसका प्रमोशन प्रभावित हुआ है, अथवा उसके सर्विस रिकार्ड में कोई धब्बा लगा है। ऐसी कोई बात याचिकाकर्ता की ओर से नहीं कही गई है। ऐसा प्रतीत होता है कि कॉलेज में याचिकाकर्ता के चलते जो स्थिति पैदा हुई थी, उसे टालने और दोबारा ऐसी परिस्थिति न हो इसके लिए याचिकाकर्ता का तबादला नियमों के तहत किया गया है। खंडपीठ ने कहा कि एक स्थान पर दो साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद विशेष परिस्थिति में प्रशासन के पास तबादले का अधिकार है। इस तरह से खंडपीठ ने मैट के आदेश को वैध माना और प्रोफेसर की याचिका को खारिज कर दिया।
Created On :   17 Dec 2020 6:51 PM IST