त्रिपुरी का वैभव - मंदिर के पीछे मिले प्राचीन शहर की बसाहट के पुरावशेषों ने बढ़ाया कौतूहल

Tripuris splendor - The antiquities of the ancient city dwellings found behind the temple increased the curiosity
त्रिपुरी का वैभव - मंदिर के पीछे मिले प्राचीन शहर की बसाहट के पुरावशेषों ने बढ़ाया कौतूहल
त्रिपुरी का वैभव - मंदिर के पीछे मिले प्राचीन शहर की बसाहट के पुरावशेषों ने बढ़ाया कौतूहल

मजबूत फर्श, दीवारें व नक्काशीदार पिलर ही बता रहे कितनी मॉर्डन थी 7वीं सदी की इंजीनियरिंग
त्रिपुर सुंदरी के पीछे जो प्राचीन शहर मिला है उसके पुरावशेष हैरान करने वाले हैं। पुरातत्व वि
भाग द्वारा की जा रही खुदाई में निकल रहे बड़े भवनों के नक्काशीदार पिलर, फर्श और दीवारों को देखकर ऐसा लगता है कि उस दौर में भी भारत देश की इंजीनियरिंग लाजवाब थी। कभी यहाँ पर एक समृद्ध शहर था। गली-चौराहों और पनघटों पर जीवन मुस्कुराता था। तकनीकी के ऐसे जानकार भी थे, जो सीमित संसाधनों में भी उच्च कोटि के भवन और प्रासादों का निर्माण करने में पारंगत थे। 
डिजिटल डेस्क जबलपुर ।
अब तक की खुदाई में यहाँ पत्थरों से निर्मित जो चौकोर खंभे मिले हैं, वे इस बात की तरफ इशारा कर रहे हैं कि प्राचीन नगरी में भवनों की छत 11 फीट से ऊपर होगी। भवनों को मजबूती देने के साथ भव्यता का भी पूरा ध्यान रखा जाता था। पुरावशेष सातवीं सदी के माने जा रहे हैं, लेकिन जानकार मानते हैं कि यह बसाहट उससे भी पुरानी है। व्यवस्थित खुदाई में यहाँ सिंधु घाटी जैसी सभ्यता के साक्ष्य भी सामने आ सकते हैं।
होता था वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम 
 खुदाई में निकले मिट्टी से बने एक रिंगबेल (उपयोग होने वाले पानी को एकत्रित करने वाली टंकी) को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि 7वीं सदी में भी वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम अपनाया जाता था। शुरूआती खुदाई में दो से तीन फीट लंबा रिंगबेल पाया गया है, जिसमें तीन से चार फीट गहरी परतें हैं। पुरातत्वविदों का मानना है कि इसकी गहराई 5 से 15 फीट तक हो सकती है, लेकिन वास्तविकता पूरी खुदाई के बाद ही सामने आएगी। 
जुड़ाई के लिए होता था गुड़-चूने का उपयोग 
 पुरातत्व विभाग की टीमें त्रिपुर सुंदरी मंदिर के पीछे दो सर्किलों में खुदाई  कर रहीं हैं। सर्किल टू में मिले भवनों की दीवारों  और फर्श को चैक करने पर पाया गया कि 7वीं सदी में दीवार-फर्श की मजबूत जुड़ाई के लिए चार परतों में चूने और गुड़ का मिक्चर बिछाया जाता था। इसके अलावा भवनों की छत के कोनों में पानी के रिसाव को रोकने के लिए भट्टी में तपे हुए मिट्टी के गोलाकार बर्तन भी मिले हैं। 
बोलते प्रतीत हो रहे पायलों के घुंघरू 
तेवर में चल रही खुदाई में निकल रहीं सिंगल पत्थरों पर बनीं मूर्तियों की नक्काशी अद््भुत है। ज्यादातर मूर्तियाँ विध्वंस के दौरान खंडित कर दी गईं थीं, लेकिन जो मूर्तियाँ सुरक्षित बच गईं हैं, उनमें 7 वीं सदी में पूजी जाने वाली तारा देवी की एक मूर्ति का एक-एक हिस्सा बेजोड़ कलाकृति का नमूना है। देवी तारा की आँख, नाक, हाथ-पैरों की अँगुलियों के साथ उनकी पायल, गले का हार और करधन के बारीक जोड़ देखकर ऐसा लगता है कि इसे कुछ साल पहले ही बनाया गया हो। पुरातत्वविदों का कहना है कि 7वीं सदी में पत्थरों के औजार होते थे, जिनसे इतना बारीक काम करना किसी शोध से कम नहीं है। 
इनका कहना है
त्रिपुर सुंदरी मंदिर के पीछे खुदाई में मिल रहीं मूर्तियाँ, बर्तन और अन्य सभी चीजें 7वीं सदी की बेमिसाल इंजीनियरिंग को दर्शा रहीं हैं। इस शोध से जबलपुर में इंटरनेशनल लेवल का पर्यटन स्थल विकसित हो सकता है। 
सुजीत नयन, उप अधीक्षण व पुरातत्वविद जबलपुर सर्किल 

Created On :   17 Feb 2021 3:07 PM IST

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