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TRP Case : गोस्वामी को संदिग्ध आरोपी बताने पर हाईकोर्ट ने पूछा यह सवाल
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि आखिर टेलिविजन रेटिंग प्वाइंट (टीआरपी) पत्रकार अर्णब गोस्वामी व अन्य को संदिग्थ आरोपी बनाने का क्या मतलब है। केंद्र व राज्य की जांच एजेंसी नागरिकों को परेशान न करे। यदि आप(पुलिस) उन्हें(गोस्वामी) आरोपी के रुप में नहीं दिखाना चाहते है तो इस विषय को सुना जाना महज समय की बरबादी होगी। हालांकि कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई कानून नहीं है। जिसके तहत अदालत जांच एजेंसी को एक खास समय के भीतर तहकीकात को पूरा करने का निर्देश दे सके। फिर भले ही जांच रुपी हथियार का इस्तेमाल किसी के दमन के लिए ही क्यों न हो रहा हो। जांच का विषय पूरी तरह से जांच अधिकारी के अधिकार क्षेत्र के भीतर होता है। हाईकोर्ट में एआरजी आउटलर मीडिया लिमिटेड व अर्णब गोस्वामी की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई चल रही है। याचिका में इस मामले की जांच सीबीआई अथवा किसी स्वतंत्र एजेंसी को सौपने की मांग की गई है। जिस पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने उपरोक्त बात कही
पार्थोदास व गोस्वामी के बीच वाट्स एप पर सिर्फ दोस्ताना बातचीत
सोमवार को यह याचिका न्यायमूर्ति एसएस शिंदे व न्यायमूर्ति मनीष पीटाले की खंडपीठ के सामने सुनवाई के लिए आयी। इस दौरान कोर्ट के एक सवाल का उत्तर देते हुए याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक मुंदरगी ने कहा कि पुलिस मेरे मुवक्किल (गोस्वामी) के खिलाफ जो सबसे बड़ा सबूत होने दावा कर रही है वह ब्राडकास्ट आडिएंस रिसर्च काउंसिल (बीएआरसी) के पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी पार्थोदास गुप्ता व गोस्वामी के बीच वाट्स एप पर हुई बातचीत है। लेकिन यह बातचीत ऐसी है जो करीबी दोस्त करते है। इसका टीआरपी की फेरफार से कोई मतलब नहीं है। पुलिस ने टीआरपी में अपना मामला मजबूत बनाने के लिए इस बातचीत को पूरे संदर्भ से अलग समझा है। इस बातचीत में गोस्वामी व दासगुप्ता बजार के नए ट्रेंड के बारे में चर्चा कर रहे थे। जैसे दो करीबी दोस्तों के बीच चर्चा होती है। इस बाचीत में कही पर भी टीआरपी के फेरफार के संकेत नहीं मिलते है। पुलिस ने इस मामले में एआरजी के 150 कर्मचारियों को समन जारी किया है।जिसमें से पांच को आरोपी नहीं बनाया है। गोस्वामी को पुलिस ने समन नहीं जारी किया है।
इस पर खंडपीठ ने कहा कि क्या आरोपी पार्थोदास गुप्ता ने रिपब्लिक टीवी की टीआरपी के बारे में गोस्वामी की मदद की है। इस पर श्री मुंदरगी ने कहा कि पुलिस ने इस प्रकरण को लेकर जो दो आरोपपत्र दायर किए है उससे तो यह स्पष्ट नहीं होता है। उन्होंने कहा कि पुलिस ने दोनों आरोपपत्र में गोस्वामी को आरोपी नहीं बनाया है। उसे संदिग्ध के रुप में दिखाया गया है। और जांच को लंबा खीचा जा रहा है। यह एक तरह से मेरे मुवक्किल को परेशान करने के लिए किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अदालत को पुलिस से स्पष्ट तौर पर पूछना चाहिए की पुलिस इस मामले की जांच अनिश्चित काल के लिए न करे। इसके साथ ही मेरे मुवक्किल को जांच के जारी रहते गिरफ्तारी से पूरी राहत प्रदान की जाए।
25 मार्च को पुलिस बताएगी जांच में लगेगा कितना समय
इस दलील पर खंडपीठ ने कहा कि ऐसा कोई कानून नहीं जिसके तहत कोर्ट पुलिस को जांच को एक खास समय के भीतर करने के लिए निर्देश दे सके। इस दौरान खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में गोस्वामी को सिर्फ संदिग्ध आरोपी बताने का क्या मतलब है। जांच एजेंसियां नागरिकों को परेशान न करे। इस दौरान खंडपीठ ने कहा कि यदि मामले जुड़ी वाट्स चैट को मिटा दिया जाता है, तो पुलिस क्या करेगी। जवाब में सरकारी वकील दीपक ठाकरे ने कहा कि फारेंसिक लैबोरेटरी मिटाए गए चैट को भी दोबारा हासिल किया जा सकता है। तो फिर ये निजता को लेकर क्यों शोर मचाया जा रहा है। श्री ठाकरे ने कहा कि पुलिस 25 मार्च को बताएगी कि इस प्रकरण की जांच में और कितना समय लगेगा। इसके बाद खंडपीठ ने मामले की सुनवाई गुरुवार तक के लिए स्थगित कर दी।
Created On :   22 March 2021 6:05 PM IST