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प्राचार्यों का कार्यकाल सीमित करने वाला यूजीसी का नियम रद्द - हाईकोर्ट
डिजिटल डेस्क, नागपुर। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने सोमवार को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के उस विवादित संशोधन को रद्द कर दा है, जिसमें यूजीसी ने प्राचार्यों के कार्यकाल को 5 वर्ष (अधिकतम 10 वर्ष) के लिए मर्यादित कर दिया था। हाईकोर्ट में डॉ.सुरेश रेवतकर समेत अन्य प्राचार्यों ने यूजीसी के इस नियम को चुनौती दी थी। उन्होंने इसे अवैध और प्राचार्यों के अधिकारों का हनन करने वाला बताया था। दरअसल वर्ष 2010 तक नियम था कि एक बार प्राचार्य के पद पर नियुक्ति होने के बाद संबंधित व्यक्ति सेवानिवृत्ति की उम्र तक पद पर बना रह सकता था। लेकिन वर्ष 2010 में यूजीसी ने शिक्षा संस्थानों में प्राचार्य पद पर नियुक्ति के नियमों में संशोधन किया। संशोधन करके यूजीसी ने प्राचार्य पद का कार्यकाल 5 वर्ष के लिए मर्यादित कर दिया। इस पर भी एक व्यक्ति अधिकतम 2 बार यानी कुल 10 वर्ष तक ही प्राचार्य पद पर रह सकता था।
याचिकाकर्ता ने इस संशोधन को अवैध बताते हुए हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। इस मामले में सभी पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने माना कि एक बार प्राचार्य जैसे वरिष्ठ पद पर जाने के बाद किसी भी व्यक्ति को उससे ऊंचे पद पर जाने या फिर सेवानिवृत्ति तक वहीं पर बने रहने की उम्मीद होती है। तब ही वह जटिल चयन प्रक्रिया से होकर गुजरता है। लेकिन इसके बाद यदि कोई नियम उसकी 5 से 10 वर्षों की सेवा के बाद उसे पद से हटा देता है , तो यह सही नहीं होगा। ऐसे में हाईकोर्ट ने पद के लिए पात्र उम्मीदवारों को सेवा में बने रहने की अनुमति दी है। हाईकोर्ट के फैसला सुनाने पर यूजीसी ने फैसले को 3 माह के लिए स्थगित करने की प्रार्थना की। देश में कोरोना लॉकडाऊन की स्थिति देखते हुए हाईकोर्ट ने अपने फैसले को 3 माह के लिए रोका है। साथ ही यह भी स्पष्ट किया है कि इस स्थगन के कारण याचिकाकर्ताओं के अधिकार प्रभावित नहीं होने चाहिए। मामले में याचिकाकर्ता की ओर से एड.श्रीरंग भंडारकर ने पक्ष रखा।
Created On :   28 April 2020 4:52 PM IST