उपराष्ट्रपति ने कहा न्यायपालिका सहित कोई भी सर्वोच्च नहीं है, केवल संविधान सर्वोच्च है - वेंकैया नायडू
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। उप राष्ट्रपति सचिवालय उपराष्ट्रपति ने कहा न्यायपालिका सहित कोई भी सर्वोच्च नहीं है, केवल संविधान सर्वोच्च है श्री वेंकैया नायडू ने कहा कि कुछ न्यायिक फैसलों से हस्तक्षेप की स्पष्ट छाप दिखती है राज्यसभा के सभापति ने कहा कि सदन में प्रश्नकाल का समय बदलने के बावजूद, व्यवधानों की वजह से प्रश्नकाल का 60 प्रतिशत समय गंवाया जा रहा है श्री नायडू ने पीठासीन अधिकारियों से ‘लोकतंत्र रूपी मंदिर’ की पवित्रता को बनाए रखने का आग्रह किया व्यवधान मुक्त विधानमंडल को सक्षम करने के लिए राजनीतिक दलों से आत्मनिरीक्षण करने को कहा संसद की विभाग संबंधित स्थायी समितियों की सराहना करते हुए, पीठासीन अधिकारियों से देश के सभी विधानमंडलों में समिति प्रणाली सुनिश्चित करने को कहा। देश के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति श्री एम. वेंकैया नायडू ने आज कहा कि "राज्य" के तीनों अंगों में से कोई भी सर्वोच्च होने का दावा नहीं कर सकता क्योंकि केवल संविधान सर्वोच्च है और विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका संविधान में परिभाषित अपने-अपने अधिकार क्षेत्रों में काम करने के लिए बाध्य हैं। गुजरात के केवडिया में पीठासीन अधिकारियों के 80वें अखिल भारतीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए श्री नायडू ने राष्ट्र निर्माण के लिए आपसी सम्मान, जिम्मेदारी और संयम की भावना के साथ मार्गदर्शन करने के लिए राज्य के तीन अंगों से काम करने का आग्रह किया। उन्होंने तीनों अंगों में से प्रत्येक के दूसरे के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण करने के मामलों पर चिंता जतायी। साथ ही, श्री नायडू ने विधानमंडलों के कामकाज को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए, पीठासीन अधिकारियों को लोकतंत्र के मंदिरों का "उच्च पुजारी" बताते हुए, उनसे इन मंदिरों की पवित्रता सुनिश्चित करने का आग्रह किया। यह कहते हुए कि विधायिका लोकतंत्र की आधारशिला है जो कार्यपालिका और न्यायपालिका दोनों के कार्यों का आधार प्रदान करती है, श्री नायडू ने इन वर्षों में कानून बनाने वाले निकायों और विधानमंडलों के खिलाफ बन रही जनराय का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि बार-बार किए जाने वाले व्यवधान, सदनों के कक्षों के भीतर और बाहर विधि निर्माताओं का आचरण, आपराधिक पृष्ठभूमि वाले विधि निर्माताओं की बढ़ती संख्या, चुनावों में धनबल में वृद्धि, विधि निर्माताओं द्वारा शक्ति का घमंड दिखाना, इस नकारात्मक धारणा के कुछ कारण हैं। उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति ने कहा, "उम्मीदवारों के चयन के मापदंड के रूप में जाति, नकदी और आपराधिकता के, आचरण, चरित्र और क्षमता की जगह लेने से विधानमंडलों और उनके सदस्यों की प्रतिष्ठा कम हो रही है।" श्री नायडू ने राजनीतिक दलों से विधानमंडलों एवं विधि निर्माताओं की प्रतिष्ठा बढ़ाने और साथ ही विधानमंडलों का व्यवधान मुक्त कामकाज सुनिश्चित करने के लिए वर्तमान स्थिति को लेकर आत्मनिरीक्षण करने का आग्रह किया। श्री नायडू ने विशेष रूप से व्यवधानों के कारण विधानमंडलों के निरीक्षण (विधायिका के लिए कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करना) संबंधी कामकाज में क्षरण का उल्लेख किया। उन्होंने खुलासा किया कि 2014 में राज्यसभा में प्रश्नकाल का समय सुबह 11 बजे से बदलकर दोपहर 12 बजे करने के बावजूद लगभग प्रश्नकाल का 60% कीमती समय अभी भी व्यवधानों और मजबूरन स्थगन होने के कारण गंवाया जा रहा है। सभापति ने बताया कि 2010-14 के दौरान, राज्यसभा में प्रश्नकाल के केवल 32.39% समय का इस्तेमाल किया जा सका, जिसके बाद 2014 के अंत में प्रश्नकाल का समय बदलकर दोपहर 12 बजे कर दिया गया। उन्होंने कहा कि इस पुनर्निर्धारण के बाद भी, अगले वर्ष यानी 2015 में, प्रश्नकाल के केवल 26.25% समय का लाभ उठाया गया था। उन्होंने आगे बताया कि 2015-19 की पांच वर्षों की अवधि के दौरान, यह बढ़कर 42.39% हो गया, जिसका अर्थ है कि सदन के ‘निरीक्षण’संबंधी कामकाज के तहत सरकार से सवाल करने के लिए मौजूद कुल समय का करीब 60%हिस्सा गंवाया गया। श्री नायडू ने कहा कि प्रश्नकाल में व्यवधान न करने, सांसदों के सभापति के आसन के पास ना जाने के विषयों पर संसद के दोनों सदनों द्वारा 1997 में देश की आजादी की स्वर्ण जयंती के अवसर पर सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किए जाने के बाद भी राज्यसभा में प्रश्नकाल का कीमती समय बर्बाद हो रहा है। उन्होंने पिछले 30 वर्षों में प्रश्नकाल के इस्तेमाल किए जाने वाले समय में कमी के चलन पर गंभीर चिंता व्यक्त की। श्री नायडू ने कहा, "लोकतंत्र के मंदिरों के शिष्टाचार, सभ्यता और गरिमा (डिसेंसी, डेकोरम और डिग्निटी) को केवल तीन और ‘डी’ यानी वाद-विवाद।
Created On :   26 Nov 2020 9:35 AM GMT