लॉकडाउन में पीड़ित और आरोपी परिवार ने की थी एक दूसरे की मदद, हाईकोर्ट ने रफा-दफा किया मामला

Victim and accused both families came help to each other, High Court cleared the matter
लॉकडाउन में पीड़ित और आरोपी परिवार ने की थी एक दूसरे की मदद, हाईकोर्ट ने रफा-दफा किया मामला
बुरे दौर ने दूर किए गिले-शिकवे लॉकडाउन में पीड़ित और आरोपी परिवार ने की थी एक दूसरे की मदद, हाईकोर्ट ने रफा-दफा किया मामला

डिजिटल डेस्क, नागपुर। कोरोना संक्रमण का डेढ़ वर्ष हर किसी के लिए कठिन रहा। शारीरिक और मानसिक ही नहीं, बल्कि आर्थिक समस्याओं ने सबको परेशान किया। ऐसे कठिन दौर में किसी ने किसी की मदद की, तो किसी ने मदद ली। इस दौरान आपसी गिले-शिकवे मिटा कर लोग एक दूसरे के काम आए। ऐसा ही एक मामला बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में पहुंचा। चंद्रपुर निवासी सिद्धार्थ सिंगाडे  (30) ने किसी निजी विवाद में 1 अक्टूबर 2009 को अपने पड़ोसी धीरज बंसोड की पिटाई कर दी। मामला बढ़ता गया और सिद्धार्थ ने चाकू से धीरज पर वार करके उसे जख्मी कर दिया। धीरज ने सिद्धार्थ के खिलाफ भादवि 307 (हत्या के प्रयास) के तहत पुलिस में शिकायत दर्ज कर दी। इस मामले में चंद्रपुर सत्र न्यायालय ने सिद्धार्थ को दोषी करार देते हुए 7 वर्ष की जेल और एक हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई।  सिद्धार्थ ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ वर्ष 2012 नागपुर खंडपीठ में अपील की। हाईकोर्ट में यह मामला तब से विचाराधीन था। 

भावनात्मक पहलू काम आया 

इस बीच पिछले साल कोरोना संक्रमण के कारण लॉकडाउन लगा। कई लोगों की इसमें नौकरी चली गई। ऐसे वक्त में आरोपी और पीड़ित के परिवारों पर भी लॉकडाउन का असर रहा। इस वक्त दोनों पड़ोसी एक दूसरे के काम आए। अपील पर सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि दोनों परिवारों के घर एक दूसरे के ठीक आमने-सामने है। अब दोनों ने गिले-शिकवे मिटा लिए हैं। लॉकडाउन में बेरोजगारी के वक्त दोनों परिवारों ने एक दूसरे की मदद की। धीरज ने भी कोर्ट से सिद्धार्थ को माफ करने की विनती की। इस भावनात्मक पहलू के अलावा  कोर्ट ने भी तथ्यों पर गौर किया तो पाया कि उक्त घटना में न तो घायल को जानलेवा क्षति होने के सबूत मिले और न ही आरोपी की ऐसी कई मंशा साबित हुई। मामले में सभी पक्षों को सुनकर हाईकोर्ट ने युवक की सात वर्ष की सजा खारिज करके उसे बरी कर दिया। 

समीर पालतेवार को सर्वोच्च न्यायालय से अंतरिम राहत

इसके अलावा रामदासपेठ स्थित मेडिट्रीना अस्पताल के प्रबंधक समीर पालतेवार को सर्वोच्च न्यायालय से अंतरिम राहत मिली है। पालतेवार की याचिका पर सुनवाई करते हुए मंगलवार को सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा। अगले आदेश तक सर्वोच्च अदालत ने पालतेवार की गिरफ्तारी पर रोक लगाई है। उल्लेखनीय है कि बीती 30 जुलाई को नागपुर खंडपीठ ने पालतेवार की  अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी। जिसके बाद पालतेवार ने वरिष्ठ अधिवक्ता रणजीत कुमार और एड. आकाश गुप्ता के जरिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। अस्पताल के ही संचालक गणेश चक्रवार (61) की शिकायत पर पालतेवार के खिलाफ शहर के सीताबर्डी पुलिस थाने में भादवि 420, 406, आईटी एक्ट धारा 66-सी व अन्य के तहत मामला दर्ज किया गया है। आरोप है कि अस्पताल का सारा कारोबार डॉ. पालतेवार की देख-रेख में चलता था। आरोप है कि डॉ.समीर ने अपने पद का दुरुपयोग कर अस्पताल में इलाज कराने आए मरीजों के बिलों में भारी गड़बड़ी की है। 1 अप्रैल 2019 से 19 फरवरी 2021 के दरमियान समीर ने शुल्क के रूप में मरीजों से लिए गए 5 लाख 36 हजार 415 रुपए का गबन िकया है। यह रकम अस्पताल के रिकाॅर्ड से गायब है।
 


 

Created On :   18 Aug 2021 2:36 PM IST

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