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जब 11 में से दस दिहाड़ी हुए नियमित तो ग्यारहवें को भी मिले वही लाभ
डिजिटल डेस्क जबलपुर । लेबर कोर्ट के आदेश के बाद भी 33 साल से जबलपुर नगर निगम में दैनिक वेतन भोगी के रूप में काम कर रहे एक कर्मचारी को नियमित न किए जाने पर हाईकोर्ट ने हैरानी जताई है। चीफ जस्टिस अजय कुमार मित्तल और जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ ने मामले पर सुरक्षित रखा फैसला सुनाते हुए कहा कि लेबर कोर्ट का 4 जुलाई 2003 का आदेश 11 दैवेभो को लेकर था। उस आदेश के बाद 11 में से दस कर्मचारी तो नियमित कर दिए गए, बस आवेदक को उसमें छोड़ दिया गया। युगलपीठ ने कहा कि जब दस कर्मचारी नियमित हुए हैं तो उसका लाभ आवेदक को भी मिलना चाहिए।
जबलपुर नगर निगम में मैकेनिक हैल्पर के पद पर कार्यरत प्रदीप कुमार झारिया की ओर से यह अपील दायर की गई थी। आवेदक का कहना था कि वह 26 फरवरी 1987 से लगातार अपनी सेवाएं नगर निगम को दे रहा है। आवेदक का कहना था कि नगर निगम में कुछ कर्मचारियों को नियमित किए जाने पर उसने भी अपना दावा नगर निगम में पेश किया था। उसका दावा निगम द्वारा ठुकराए जाने पर मामला लेबर कोर्ट में गया। लेबर कोर्ट ने 4 जुलाई 2003 को अवार्ड पारित करके आवेदक सहित कुल 11 दैनिक वेतन भोगियों को नियमित करने कहा। इस अवार्ड को चुनौती देकर नगर निगम ने एक याचिका पूर्व में हाईकोर्ट में दायर की थी। एकलपीठ ने 2 अगस्त 2018 को अपना फैसला सुनाते हुए लेबर कोर्ट द्वारा 4 जुलाई 2003 को पारित अवार्ड निरस्त कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ यह अपील दायर की गई थी।
मामले पर सुनवाई के बाद सुरक्षित रखा फैसला सुनाते हुए युगलपीठ ने कहा- च्अवार्ड वर्ष 2003 में लेबर कोर्ट ने पारित किया था। 11 में से दस कर्मचारी उसी अवार्ड के तहत नियमित कर दिए गए। आवेदक को छोड़कर अन्य को नियमित करने के भेदभावपूर्ण रवैये को लेकर निगम की ओर से कोई ठोस कारण नहीं दिया गया। हम जानते हैं कि संविधान में नकारात्मक समानता का कोई स्थान नहीं है। ऐसे में आवेदक भी उसी समानता का हकदार है।
Created On :   1 May 2020 2:45 PM IST