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कानूनी की कसौटी पर किसका दावा खरा
डिजिटल डेस्क, मुंबई। शिवनेता नेता व मंत्री एकनाथ शिंदे के बागवती तेवर के बाद महाराष्ट्र में आए सियासी तुफान के बीच अब पार्टी के रुप में ‘शिवसेना’ व उसके चुनाव चिन्ह ‘धनुषबाण’ के छिनने की चर्चा जोर पकड़ने लगी हैं। क्योंकि श्री शिंदे अब ‘शिवसेना’ पर अपना दावा करने की तैयारी में हैं। उनका यह दावा कानून की कसौटी कितना खरा उतर सकता है इस बारे में संविधान विशेषज्ञ व राज्य के पूर्व महाधिवक्ता श्री हरि अणे के अनुसार ‘चुनाव चिन्ह किसी व्यक्ति को नहीं एक पार्टी को आवंटित किया जाता हैं। चूंकि शिवसेना एक पंजीकृत पार्टी है। इसलिए चुनाव आयोग ने शिवसेना को धनुषबाण का चुनाव चिन्ह आवंटित किया है।’ उन्होंने कहा कि ‘चुनाव आयोग का काम सिर्फ चिन्ह आवंटित करना है उसके इस्तेमाल को देखना नहीं है। अब श्री शिंदे दावा कर रहे हैं कि वे शिवसेना की अगुवाई कर रहे है तो वास्तविक रुप से इसे उन्हें साबित करना होगा कि वे ही असली शिवसेना हैं।’
‘दैनिक भास्कर’ से बातचीत में श्री अणे ने कहा कि यह बात महज विधायकों के हस्ताक्षरित पत्र से साबित नहीं होगी। इसका उन्हें विधानसभा अध्यक्ष के सामने सबूत भी देना होगा। जरुरत पड़ने पर उन्हें विधायकों को विधानसभा अध्यक्ष के सामने व्यक्तिगत रुप से सामने लाना पड़ेगा। वर्तमान में यदि विधानसभा अध्यक्ष नहीं है तो विधानसभा उपाध्यक्ष इस मामले को देख सकते हैं। चूंकि शिंदे को अभी पार्टी से निकाला नहीं गया है इसलिए वे अभी भी शिवसेना में हैं। लिहाजा उन्हें सदन में फ्लोर टेस्ट के रास्ते से गुजर कर बहुमत साबित करना होगा और यह साबित करना होगा वे ही ‘शिवसेना’ हैं। इसके साथ ही उन्हें यह स्पष्ट करना होगा कि वे सत्तारुढ सरकार का समर्थन नहीं करते हैं। तब अविश्वास प्रस्ताव लाया जाएगा। फिर शक्तिपरीक्षण के बाद आगे की प्रक्रिया होगी।
उन्होंने कहा कि जहां तक बात चुनाव चिन्ह की है तो इस विषय को लेकर चुनाव आयोग को पहले सभी संबंधित लोगों को सुनना पड़ेगा। क्योंकि यदि शिंदे धनुषबाण पर दावा करेंगे तो शिवसेना पक्ष प्रमुख की ओर से इसका विरोध किया जाएगा। ऐसी स्थिति में आयोग सभी पक्षों को सुनने के बाद ही वह अपना आदेश देगा। जहां तक मुख्यमंत्री के इस्तीफे की बात है तो इससे सिर्फ मुख्यमंत्री का पद रिक्त होता है सरकार नहीं गिरती है। इस मामले में दल बदल कानून तभी लागू होगा जब शिंदे के पास दो तिहाई से कम यानी 37 से कम विधायक होंगे।
सिर्फ विधायकों के साथ पार्टी पर कब्जा नहीं
वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता व पूर्व एडिशनल सालिसिटर जनरल राजेंद्र रघुवंशी के अनुसार सिर्फ 37 विधायक होने के आधार पर श्री शिंदे पार्टी पर अपना दावा नहीं कर सकते हैं। पार्टी पर दावे के लिए पार्टी कैडर व पदाधिकारी का होना भी जरुरी है। वहीं अधिवक्ता यशोदीप देशमुख का कहना है कि 37 विधायक साथ होने की स्थिति में श्री शिंदे सिर्फ दलबदल कानून के तहत अयोग्य होने से बच सकते हैं और एक स्वतंत्र धड़ा बना सकते हैं।
क्या कहता है विधानसभा का गणित
विधानसभा में शिवसेना के 55, राकांपा के 53 और कांग्रेस के 44 विधायक हैं। राज्य की 288 सदस्यीय विधानसभा में सामान्य बहुमत के लिए 144 का आंकड़ा जरूरी है। भाजपा के पास अपने 106 विधायक हैं तथा उसे राज ठाकरे की अगुवाई वाली महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना, स्वाभिमानी पक्ष एवं राष्ट्रीय समाज पक्ष के एक- एक विधायकों एवं छह निर्दलीय विधायकों का समर्थन प्राप्त है। इस प्रकार सदन में उसके पास सहयोगियों को मिलाकर कुल 116 विधायक हैं। फिलहाल एकनाथ शिंदे शिवसेना के विधायकों के एक धड़े एवं कुछ निर्दलीय विधायकों के साथ गुवाहाटी में हैं। उन्होंने कहा है कि उन्हें 46 विधायकों का समर्थन प्राप्त है। जिसमें 37 शिवसेना के विधायक हैं। इस लिहाज से भाजपा व शिंदे गुट के विधायकों की कुल संख्या 153 तक पहुंचती है।
भाजपा+ शिवसेना (शिंदे)
भाजपा 106
भाजपा समर्थक निर्दलिय 06
मनसे 01
रासपा 01
शिवसेना (शिंदे गुट) 37
शिंदे समर्थक निर्दलीय 07
प्रभार जनशक्ति (बच्चू कडू) 02
जनसुराज्य (विनय को) 01
कुल 161
महा विकास आघाडी
शिवसेना (उद्धव ठाकरे) 18
राकांपा 53
कांग्रेस 44
सपा 02
मकपा 01
क्रांतिकारी शेतकरी पक्ष 01
शेकाप 01
स्वाभिमानी पक्ष 01
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कुल 121
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किसी के साथ नहीं........
बहुजन विकास आघाडी 03
एमआईएम 02
Created On :   23 Jun 2022 9:17 PM IST