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63 प्रतिशत दिव्यांग छात्रा क्यों नहीं बन सकती डॉक्टर
नेशनल मेडिकल कमीशन, चिकित्सा शिक्षा विभाग, शहडोल मेडिकल कॉलेज सहित अन्य को नोटिस
डिजिटल डेस्क जबलपुर । मप्र हाईकोर्ट ने नेशनल मेडिकल कमीशन, प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा विभाग, शहडोल मेडिकल कॉलेज के डीन को नोटिस जारी कर पूछा है कि 63 प्रतिशत दिव्यांग छात्रा क्यों नहीं डॉक्टर बन सकती है। इसके साथ ही उसका एमबीबीएस से एडमिशन क्यों निरस्त किया गया। जस्टिस जेपी गुप्ता और जस्टिस संजय द्विवेदी की डिवीजन बैंच ने इस मामले की अगली सुनवाई 11 जनवरी को नियत की है। होशंगाबाद रायपुरा निवासी प्रियांशी मीणा की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि वह 63 प्रतिशत दिव्यांग है। उसने बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद नीट की परीक्षा में ओबीसी कैटेगरी से 212 अंक हासिल किए थे। काउंसलिंग में उसे शहडोल मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की सीट आवंटित की गई थी। शहडोल मेडिकल कॉलेज ने उसे सूटेबिलिटी सर्टिफिकेट लाने के लिए कहा। नेशनल कैरियर सर्विस सेंटर फॉर डिफरेंटली एबल्ड पर्सन डिपार्टमेंट ने कहा कि वह एमबीबीएस नहीं कर सकती है। इसके आधार पर उसका एडमिशन निरस्त कर दिया गया। अधिवक्ता आदित्य संघी ने तर्क दिया कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की गाइडलाइन में स्पष्ट लिखा हुआ है कि 80 प्रतिशत से अधिक दिव्यांग एमबीबीएस नहीं कर सकते हैं। याचिकाकर्ता केवल 63 प्रतिशत दिव्यांग है। याचिकाकर्ता जन्म से दिव्यांग नहीं है। वर्ष 2016 में करंट लगने की वजह से उसका हाथ कंधे से काट दिया गया। याचिकाकर्ता कृत्रिम हाथ के सहारे डॉक्टरी के सभी काम करने के योग्य है। पोलियोग्रस्त होने के बावजूद भी देश में कई डॉक्टर सफलतापूर्वक मरीजों का इलाज कर रहे हैं। ऐसे में याचिकाकर्ता को एमबीबीएस में एडमिशन देने से कैसे इनकार किया जा सकता है। प्रारंभिक सुनवाई के बाद डिवीजन बैंच ने अनावेदकों को नोटिस जारी कर जवाब-तलब किया है।
Created On :   1 Jan 2021 1:41 PM IST