आप दूसरे के अधिकारों पर अतिक्रमण क्यों कर रहे, हाईकोर्ट ने जैन संस्थानों से किया सवाल

Why are you encroaching on the rights of others, High Court questions Jain institutions
आप दूसरे के अधिकारों पर अतिक्रमण क्यों कर रहे, हाईकोर्ट ने जैन संस्थानों से किया सवाल
मांसयुक्त पदार्थों के विज्ञापन पर रोक की मांग आप दूसरे के अधिकारों पर अतिक्रमण क्यों कर रहे, हाईकोर्ट ने जैन संस्थानों से किया सवाल

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने जैन चैरिटेबल संस्थानों ने पूछा है कि वे दूसरे के अधिकारों पर अतिक्रमण क्यों करना चाह रहे है। दरअसल जैन संस्थानों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर मांस व मांसयुक्त पदार्थों के प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया में विज्ञायापन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। याचिका में दावा किया गया था कि जैसे अल्कोहल व सिगरेट को सेहत के लिए हानिकारक माना गया है। इसलिए सरकार ने इसके विज्ञापन पर रोक लगाई  है। ठीक ऐसे ही मांसयुक्त पदार्थ भी सेहत के लिए हानिकारक है लिहाजा इसके विज्ञापन पर भी रोक लगाई जानी चाहिए। 

सोमवार को यह याचिका मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति माधव जामदार की खंडपीठ के सामने सुनवाई के लिए आयी। याचिका पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने कहा कि याचिका में जो मुद्दा उठाया गया है वह विधायिका के दायरे में आता है। क्योंकि अदालत कानून नहीं बनाती है। जिससे की वह मांस व मांसयुक्त पदार्थों के विज्ञापन पर रोक लगाई जा सके। कोर्ट ने कहा कि सामान्यतौर पर जिसे कोई विज्ञापन नहीं देखना होता है तो वह विकल्प के तौर पर टीवी बंद कर लेता है। याचिकाकर्ता के पास भी यह विकल्प मौजूद है। कोर्ट ने कहा कि हम किसी भी मामले को सिर्फ कानून के नजरिए से देखते है। कोर्ट के इस रुख के मद्देनजर याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका वापस ले ली। 

हाईकोर्ट में जैन धर्म का पालन करनेवाले श्री आत्म कमल लब्धिश्वरजी जैन सहित तीन चैरिटेबल संस्थानों ने याचिका दायर की थी। याचिका में इस मामले को लेकर सूचना प्रसारण मंत्रालय, प्रेस परिषद,भारतीय विज्ञापन मानक परिषद, खाद्य व नागरी आपूर्ति व उपभोक्ता संरक्षण विभाग को निर्देश जारी करने की मांग की गई थी। इसके अलावा याचिका में कई कंपनियों को प्रतिवादी बनाया गया था। 

याचिका में दावा किया गया था कि उनके परिवारवालों व बच्चों को जबरन मांस व मांसयुक्त पदार्थों के विज्ञापन को देखने के लिए मजबूर किया जाता है। जो कि उनके शांतिपूर्ण ढंग से जीवन जीने के अधिकार का उल्लंघन करता है। इसके साथ ही इन विज्ञापनों के जरिए बच्चों की मनोदशा को भी प्रभावित किया जाता है। याचिका में उठाए गए इस मुद्दे पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने कहा कि आखिर याचिकाकर्ता दूसरों के अधिकार पर अतिक्रमण क्यों कर रहे है। क्या आपने(याचिकाकर्ता) संविधान की प्रस्तावना पढी है।

खंडपीठ ने याचिकाकर्ता से पूछा की संविधान के अनुच्छेद 19 के उल्लंघन का क्या, खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में आदेश जारी करना हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। खंडपीठ ने कहा कि आप(याचिकाकर्ता) चाहते है कि अदालत किसी चीज पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून व नियम बनाए। यह अदालत का नहीं विधायिका का काम है। लिहाजा याचिकाकर्ता अपनी याचिका को वापस ले। खंडपीठ की इस राय के बाद याचिकाकर्ता के वकील ने मौजूदा याचिका को नए सिरे से दूसरी याचिका दायर करने अनुमति के साथ वापस ले लिया। 

जंगली सूअर के हमले के चलते जान गंवानेवाले शख्स की विधवा पत्नी को सरकार दस लाख रुपए मुआवजा दे-हाईकोर्ट

बांबे हाईकोर्ट ने जंगली सूअर के हमले के चलते अपने पति को गंवानेवाली एक विधवा महिला को राज्य सरकार को दस लाख रुपए तीन माह के भीतर 6 प्रतिशत ब्याज के साथ मुआवजे के रुप में देने का निर्देश दिया है। जबकि 50 हजार रुपए महिला को मुकदमे के खर्च के रुप में भुगतान करने को कहा है। कोर्ट ने कहा कि जंगली जीवों की सुरक्षा सरकार की जिम्मेदारी है। इसके साथ ही ऐसे जानवरों से नागिरकों की जान बचाना भी सरकार का दायित्व है। इस तरह से सरकार पर दोहरा दायित्व है। जिसका पालन सरकार से अपेक्षित है। न्यायमूर्ति गौतम पटेल व न्यायमूर्ति गौरी गोडसे की खंडपीठ ने रत्नागिरी निवासी अंजना रेडिज की ओऱ से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया है। खंडपीठ ने कहा कि यह वन अधिकारी की यह जिम्मेदारी है कि जंगली जानवर प्रतिबंधित इलाके को छोड़कर रिहाइशी इलाकों में न घूमे। अंजना के पति अरुण की फरवरी 2018 में उस समय मौत हो गई थी। जब वे काम से लौट रहे थे और जंगली सूअर ने मोटरसाइकिल पर जोरदार हमला कर दिया था। इसके बाद महिला ने वन विभाग के पास मुआवजे के लिए निवेदन दिया था लेकिन उस पर विचार नहीं किया गया था। 

 

Created On :   26 Sept 2022 9:43 PM IST

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