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भगवान ही बचा सकता है शिक्षा व्यवस्था, हाईकोर्ट ने पूछा - दसवीं की परीक्षा न लेने के सरकारी फैसले को क्यों न किया जाए रद्द
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को कक्षा दसवीं की परीक्षा को रद्द करने के मुद्दे पर राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है जैसे सरकार शिक्षा व्यवस्था का मजाक बना रही हैं। यदि सरकार बिना परीक्षा के विद्यार्थियों को कक्षा दसवीं से प्रमोट से पास करने के बारे में विचार कर रही है तो भगवान ही राज्य की शिक्षा को बचा सकता है। न्यायमूर्ति एस जे काथावाला व न्यायमूर्ति एसपी तावड़े की खंडपीठ ने इस मामले सरकार को जवाब देने को कहा है और उससे जानना चाहा है कि परीक्षा रद्द करने के सरकार के फैसले को क्यों न निरस्त किया जाए। खंडपीठ ने यह बात पुणे निवासी धनजंय कुलकर्णी की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कही। सरकार ने पिछले माह कोरोना संकट के चलते कक्षा दसवीं की परीक्षा रद्द करने का निर्णय किया था। जिसे याचिका में चुनौती दी गई है। इससे पहले सरकारी वकील पी बी काकड़े ने कहा कि विद्यार्थियों के अंक के मूल्यांकन का फॉर्मूला नहीं तय किया गया है। दो हफ्ते में इस बारे में निर्णय किया जाएगा। इस पर खंडपीठ ने कहा कि आप(,सरकार) शिक्षा व्यवस्था का मजाक बना रहे हैं। यदि सरकार बिना परीक्षा के विद्यार्थियों को पास करने के बारे में विचार कर रही है तो भगवान ही राज्य की शिक्षा व्यवस्था को बचा सकता है।
महामारी के नाम पर विद्यार्थियों का भविष्य नहीं बर्बाद कर सकते
खंडपीठ ने कहा कि कक्षा दसवीं का वर्ष काफी महत्वपूर्ण होता है। क्योंकि यह स्कूली शिक्षा का आखिरी साल होता है। इसलिए परीक्षा महत्वपूर्ण होती है। सरकार महामारी के नाम पर विद्यार्थियों का कैरियर व भविष्य नहीं बर्बाद कर सकती हैं। यह स्वीकार योग्य नहीं है। आप व्यवस्था को नष्ट कर रहे हैं। खड़पीठ ने कहा कि आखिर सरकार ने कक्षा दसवीं की परीक्षा क्यों रद्द की है 12 वी की क्यों नहीं? यह भेदभाव क्यो? ऐसा लग रहा है कि सबकुछ नीति निर्माताओं की इच्छा से चल रहा है। खंडपीठ ने कहा कि विद्यार्थी देश व राज्य का भविष्य है इसलिए उन्हें साल दर साल बिना परीक्षा के प्रमोट नहीं किया जा सकता है। हम सिर्फ इस बात को लेकर चिंतित है। खंडपीठ ने कहा कि ऑनलाइन परीक्षा में कम अंक पाने की क्षामता रखने वाला छात्र भी 90 प्रतिशत भी हासिल कर सकता है। इसलिए यह ठीक नहीं है। खंडपीठ ने फिलहाल मामले की सुनवाई अगले सप्ताह रखी है और सरकार से जानना चाहा है कि उसके निर्णय को क्यों न रद्द किया जाए।
बच्चों के प्रेम पाने पहले पिता की जिम्मेदारी निभाओ-हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक शख्स को कहा है कि वह बच्चे का प्रेम व स्नेह पाने के लिए पिता के रुप में पहले अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करें। कोर्ट ने यह बात पिता की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान कही। याचिका में पिता ने मांग की थी कि उसके बच्चों (बेटा-बेटी) को कोर्ट में पेश किया जाए और उसे उनसे मिलने की इजाजत दी जाए। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति एस जे काथावाला की खंडपीठ ने पाया कि बच्चों को सौंपने की मांग करने वाले पिता को अपने बच्चों की सही उम्र की भी जानकारी नहीं है। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। खड़पीठ ने कहा कि यदि आप (पिता) बच्चों से मिलने का अधिकार होने का दावा करते है तो आपको अपने दायित्वों का भी निर्वहन करना चाहिए। और बच्चों की देखरेख भी करनी चाहिए। खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान बच्चों से बातचीत भी की। बच्चों के जवाब को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा इन बच्चों को सिखाया पढ़ाया नहीं जा सकता। खंडपीठ ने पाया कि बच्चे अपने माँ के प्रति पिता बर्ताव से खुश नहीं है। खंडपीठ ने इस दौरान पिता द्वारा गुजार भत्ते का पूरा भुगतान न करने पर भी नाराजगी जाहिर की। कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार को रखी हैं।
Created On :   20 May 2021 8:52 PM IST