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आठ माह के भीतर एसएनसीयू में 262 तो पीआईसीयू में 100 से ज्यादा बच्चों की गई जान
कारण : स्वास्थ्य विभाग तथा महिला एवं बाल विकास विभाग के मैदानी अमले ने बरती कोताही
डिजिटल डेस्क शहडोल । जिला चिकित्सालय में 6 दिन के भीतर हुई 8 बच्चों की मौत को लेकर पूरे प्रदेश में मचे हडक़ंप के बीच जांच और समीक्षाओं के दौर भी तेज हो गए हैं। इन्हीं समीक्षाओं व जांचों के बीच दैनिक भास्कर ने जब पड़ताल की तो चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि जिला चिकित्सालय में औसतन हर दिन एक बच्चे की मौत हो रही है।
पिछले आठ महीने (अप्रैल से नवंबर) के भीतर ही 362 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है। सबसे ज्यादा 262 बच्चों की मौत नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई (एसएनसीयू) में हुई तो 100 से ज्यादा बच्चों ने बाल गहन चिकित्सा इकाई (पीआईसीयू) में इलाज के दौरान जान गंवाई। इनमें से किसी एक बच्चे की भी मौत की जिम्मेदारी किसी चिकित्सक व जिला चिकित्सालय प्रबंधन ने नहीं ली। जिम्मेदारी डाली गई हालातों व परिजनों पर, जागरूकता के अभाव व विलंब से गंभीर अवस्था में लाने के कारण के रूप में। जबकि यह चिकित्सक भी जानते हैं कि यदि कोई गंभीर रूप से बीमार नहीं तो चिकित्सालय आएगा ही क्यों।
कई कारण फिर भी सामने आए
बावजूद इसके प्रशासन ने विशेष रूप से संभागायुक्त नरेश पाल ने समीक्षा दौरान जो कारण पाए उनमें सबसे बड़ा कारण स्वास्थ्य विभाग एवं महिला एवं बाल विकास विभाग के मैदानी अमले द्वारा अपने दायित्व निवर्हन में बरती गई कोताही के रूप में सामने आया है। संभागायुक्त ने महिला एवं बाल विकास विभाग एवं स्वास्थ्य विभाग के मैदानी अमले को निर्देशित किया है कि वे ग्रामीण इलाकों में बीमार बच्चों को चिन्हित करें और इलाज के लिए नजदीकी स्वास्थ्य केंद्रों में भर्ती कराएं। सीएमएचओ डॉ. राजेश पांडेय ने भी तद्संदर्भ में सभी को पत्र जारी करते हुए गुरुवार से डेली रिपोर्ट भेजने को कहा है। जाहिर है यदि यह सब पहले से ही हो रहा होता तो आज इस तरह के न तो निर्देशों की जरूरत पड़ती और न ही इतने बच्चों ने जान गंवाई होती।
कोरोना काल में मैदान से लगभग गायब ही रहा अमला
हाल ही में हुई आठ शिशुओं की मौत के मामले में भले ही चिकित्सक निमोनिया का करण बताते हुए यह तर्क दे रहे हैं कि ठंड के मौसम में निमोनिया के केस बढ़ जाते हैं। लेकिन एसएनसीयू और पीआईसीयू में पिछले आठ महीने के दौरान हुई 362 से ज्यादा बच्चों की मौतों के आंकड़ों में अप्रैलए मई, जून और जुलाई महीने के भी आंकड़े शामिल हैं। जबकि इन महीनों में अमूमन मौसम काफी गर्म रहता है। सूत्रों के मुताबिक कोरोना संक्रमण की वजह से महिला एवं बाल विकास विभाग एवं स्वास्थ्य विभाग का मैदानी अमला मैदान से लगभग गायब रहा है। यही कारण है कि बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य की असल जानकारी सामने नहीं आ पाई और बच्चों की मौत का ग्राफ बढ़ता गया।
Created On :   3 Dec 2020 5:30 PM IST