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मेलघाट में 240 माताओं की मृत्यु, सरकारी योजनाओं का नहीं मिल रहा लाभ
डिजिटल डेस्क, अमरावती। गर्भवती व माता मृत्यु रोकने के लिए प्रशासन स्तर पर किए जा रहे विभिन्न उपाय खोखले साबित हो रहे हैं। मेलघाट में माता मृत्यु का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। मेलघाट में अब तक 240 माताओं की मृत्यु हुई है। जिले का आंकड़ा तो हजारों में है। माता मृत्यु को कम करने के लिए राज्य में प्रधानमंत्री सुरक्षा मातृत्व अभियान (पीएमएसएमके) योजना शुरू की गई है। जिन माताओं का हिमोग्लोबीन कम है, हाईबीपी, पेट में बच्चे की ग्रोथ ठीक नहीं, प्लेटलेट की संख्या कम है, ऐसी महिलाओं को विशेष उपचार की आवश्यकता होती है। इन सभी माताओं के लिए सभी सुविधाओं का प्रावधान है। मगर इस योजना की व्यापक जानकारी व जनजागरण के अभाव में मेलघाट में इस योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा। जिले सहित राज्य में अब तक 19 वर्षों में हजारों माताओं की मृत्यु हुई। जिसमें से सिर्फ मेलघाट आदिवासी बहुल क्षेत्र की 240 माताएं शामिल हैं।
अस्पतालों की लापरवाही, गंभीर रक्तस्त्राव, संक्रमण, चोट, एनिमिया, हाईबीपी और बच्चे के जन्म के समय होने वाली पीड़ा के कारण प्रसूति के समय माता मृत्यु का दर बढ़ा है। अमरावती के अलावा पूर्व विदर्भ के वर्धा सहित अन्य जिलों में भी माता मृत्यु का दर बढ़ता दिखाई दे रहा है। माता मृत्यु दर कम करने के लिए प्रशासन व्दारा कई अधिकारी, कर्मचारियों की नियुक्तियों का प्रावधान है। लेकिन कुछ कर्मियों की लापरवाही और कामचोरी से माता मृत्यु की संख्या में कमी नहीं आ पा रही है। संबंधित अस्पताल या डाक्टर पर जवाबदेही निश्चित न होने से माता मृत्यु का सिलसिला बदस्तूर जारी है। माता मृत्यु का डेथ ऑडिट होने पर मृत्यु के कारणों का पता चल सकेगा और ज्यादा से ज्यादा माताओं की जान बचाई जा सकेगी, ऐसी राय अनेक चिकित्सकों ने दी है।
गर्भावस्था में एएनसी जांच जरूरी
गर्भवती महिलाओं को पूरे 9 माह तक अपने गर्भ के साथ ही खुद का सावधानीपूर्वक खयाल रखना चाहिए। 9 माह तक उचित एएनसी जांच करवाना जरूरी है। समय-समय पर हिमोग्लोबीन की जांच आवश्य होती है। शरीर पर थोड़ी भी सूजन आने पर तत्काल चिकित्सकों से परामर्श लें। साथ ही आसानी से पचने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए जो कि गर्भस्थ शिशु के लिए पोषक बने। गर्भ धारणा से लेकर प्रसूति तक चार बार सोनोग्राफी जांच करना जरुरी है। ऐसा करने पर ज्यादा से ज्यादा माताओं की जान बच सकती है और शिशु भी सुरक्षित रह सकता है। - डॉ. उज्ज्वला मोहोड़, वैद्यकीय अधिकारी
Created On :   19 July 2019 8:25 AM GMT