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विश्व बैंक की रिपोर्ट : गरीबी की चंगुल में फंस जाते हैं 75 फीसदी सड़क हादसे के शिकार
डिजिटल डेस्क, मुंबई। सड़क हादसों का शिकार होने वाले 75 फीसदी लोगों को इसके बाद आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इससे सबसे ज्यादा परेशानी गरीबों को होती है क्योंकि उन्हें औसतन कम से कम सात महीने की आमदनी का नुकसान होता है। विश्वबैंक की एक रिपोर्ट मे यह खुलासा हुआ है। यही नहीं सड़क हादसों के 50 फीसदी पीड़ित डिप्रेशन का शिकार भी हो जाते हैं। सड़क हादसों के बाद चोट और विकलांगता, भारतीय समाज पर बोझ नाम से प्रकाशित इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सड़क हादसों का शिकार होने वाले गरीबी और कर्ज के चंगुल में ऐसे फंसते हैं कि उससे बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है। अध्ययन में सड़क हादसों, गरीबी, असमानता और असुरक्षा के बीच की कड़ी का भी खुलासा होता है। विश्व बैंक ने सेव लाइफ फाउंडेशन नाम की गैरसरकारी संस्था के साथ मिलकर यह अध्ययन किया है। इसके लिए उत्तर प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में हादसों का शिकार हुए लोगों से बातचीत की गई है। देश में होने वाले कुल सड़क हादसों के 35 फीसदी इन्हीं चार राज्यों में होते हैं। लोगों के जवाब के आधार पर सड़क हादसों का लोगों की सामाजिक, आर्थिक, लैंगिक और मनोवैज्ञानिक असर को समझने की कोशिश की गई है। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि सड़क हादसों के शिकार लोगों की जिंदगी बचाने से लेकर उनके आय, इलाज और कानूनी मदद के लिए भी कदम उठाए जाने चाहिए। रिपोर्ट जारी करते हुए केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि सरकार सड़क हादसों को 2025 तक 50 फीसदी कम करने के लिए कई कदम उठा रही है। उन्होंने सभी राज्यों से नए मोटर वाहन अधिनियम को भी लागू करने की भी अपील की।
ग्रामीण गरीबों पर ज्यादा असर
रिपोर्ट के मुताबिक सड़क हादसों के बाद ग्रामीण इलाकों में रहने वाले 56 फीसदी गरीब सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। इसके अलावा 29.5 फीसदी शहरी गरीबों और 39.5 फीसदी उच्च आयवर्ग के लोगों की आमदनी भी सड़क हादसों से प्रभावित हुई। अध्ययन में खुलासा हुआ कि ग्रामीण इलाकों में हादसे का शिकार हुए 44 फीसदी गरीबों को जान गंवानी पड़ी जबकि शहरी इलाकों में हुए हादसों में 11.6 फीसदी हादसों में किसी न किसी की मौत हुई। सर्वे से यह भी खुलासा हुआ कि गरीब हो या अमीर सड़क हादसों का सबसे बुरा असर परिवार की महिलाओं पर पड़ा और उन पर जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ गया। 50 फीसदी महिलाओं की पारिवारिक आय सड़क हादसे के बाद तेजी से कम हुई। 11 फीसदी को अतिरिक्त काम करना पड़ा और 40 फीसदी को अपने कामकाज में बदलाव करना पड़ा। सर्वे में जिन ट्रक ड्राइवरों से बातचीत की गई उनमें से दो तिहाई को थर्ड पार्टी लाइबिलिटी इंश्यूरेंस के बारे में जानकारी ही नहीं थी। बता दें कि इस इंश्यूरेंस के तहत हादसे में शिकार सामने वाले व्यक्ति को मुआवजा मिलता है। हादसों के बाद किसी ड्राइवर ने कैशलेस इलाज या मुआवजे के लिए आवेदन नहीं किया। सेव लाइफ के सीईओ पियुष तिवारी के मुताबिक हादसे के बाद इलाज, इंश्यूरेंस और मुआवजे को लेकर जल्द से जल्द बेहतर रणनीति बनाने की जरूरत है।
सड़क हादसे और महाराष्ट्र
2017 तक कुल पंजीकृत गाड़ियां 3,02,17,000
2019 में राज्य में कुल सड़क हादसे 27286
2019 में कुल सड़क हादसे में कुल मौत 14608
हादसे के बाद राज्य के 44 फीसदी गरीबों को लेना पड़ा उधार
Created On :   15 Feb 2021 8:08 PM IST