डॉक्टरी छोड़ अमेरिका में रिसर्च करने की चाहत खने वाले युवक को से मिली राहत

Young man got relief from a  who wanted to do research in America except for a doctorate
डॉक्टरी छोड़ अमेरिका में रिसर्च करने की चाहत खने वाले युवक को से मिली राहत
हाईकोर्ट डॉक्टरी छोड़ अमेरिका में रिसर्च करने की चाहत खने वाले युवक को से मिली राहत

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने अमेरिका में रहकर मेडिकल रिसर्च से जुड़ा कार्य करने के इच्छुक एक मेडिकल रिसर्च स्कालर युवक को राहत प्रदान की है। युवक सिद्देश वीर ने रशिया से एमडी की डिग्री ली थी। इसके बाद वह आगंतुक वीजा पर अमेरिका में अपनी मां से मिलने चले गए। वीर की मां अमेरिका की ग्रीनकार्डधारक नागरिक हैं। इस बीच वीर ने रिसर्च स्कालर वीजा (जे1) के लिए आवेदन किया जो उन्हें मिल गया। इस बीच उन्होंने ग्रीनकार्ड की मंशा के तहत अपने वीजा के प्रारुप में बदलाव किया। इसके लिए उन्हें केंद्र सरकार से ‘नो आब्जेक्शन टू रिटर्न  टू इंडिया’ (नूरी) प्रमाणपत्र की जरुरत पड़ी। किंतु केंद्र सरकार के स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय ने वीर को ब्रेन-ड्रेन (प्रतिभा पलायन) की नीति का हवाला देकर नूरी प्रमाणपत्र देने से मना कर दिया। क्योकि वीर के पास मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया का पंजीयन था। 

केंद्र सरकार ने याचिका के विरोध में दायर हलफनामे में कहा था कि फिलहाल देश में दस लाख 50 हजार डाक्टर हैं। भारत में चार लाख डाक्टरों की कमी है। वहीं वीर ने याचिका में दावा किया था कि वे डाक्टर के तौर पर न तो भारत में प्रैक्टिस करना चाहते हैं और न ही अमेरिका में। वे मेडिकल काउंसिल में किए गए अपने पंजीयन को भी वापस करने को तैयार हैं। उनकी इच्छा सिर्फ मेडिकल रिसर्च में है। ऐसे में उन्हें नूरी प्रमाणपत्र से वंचित करने को बिल्कुल भी न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता है। 

न्यायमूर्ति ए.एस चांदुरकर व न्यायमूर्ति जीए सानप की खंडपीठ के सामने इस याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता वाईएस जहांगीर ने कहा कि मामले से जुड़ी सरकार की नीति मेडिकल प्रैक्टिशनर व शोधार्थी के बीच का अंतर स्पष्ट नहीं करती है। मेरे मुवक्किल ने एमसीआई के पंजीयन व  लाइसेंस को वापस कर दिया है। अब मेरे मुवक्किल की इच्छा सिर्फ मेडिकल रिसर्च में है। वहीं केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने कहा कि नीतिगत निर्णय व डाक्टरों की कमी के चलते याचिकाकर्ता को नूरी प्रमाणपत्र देने से मना किया गया है। इसलिए इस मामले में कोर्ट का हस्तक्षेप अपेक्षित नहीं है।

मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि नूरी प्रमाणपत्र सामान्य रुप से नहीं बाटा जा सकता है लेकिन अपवादजनक मामले में इसे दिया जा सकता है। इस मामले में तर्कसंगत मत अपनाया जाना चाहिए। खंडपीठ ने कहा कि अतीत में इस तरह के मामले में नूरी प्रमाणपत्र देने का आदेश दिया गया है। इस तरह खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को नूरी प्रमाणपत्र देने से मना करनेवाले आदेश को रद्द कर दिया और केंद्र सरकार को दो सप्ताह में याचिकाकर्ता को नूरी प्रमाणपत्र जारी करने को कहा। खंडपीठ ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता अमेरिका में डाक्टर के तौर पर प्रैक्टिस करते पाए गए तो उन्हें जारी किया गया नूरी प्रमाणपत्र रद्द कर दिया जाएगा। 

 

Created On :   29 April 2022 8:51 PM IST

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