पन्ना: हांसिये पर राष्ट्रीय बाल्य स्वास्थ्य कार्यक्रम, जिला अस्पताल के स्टोर रूम के हाफ कक्ष डीईआईसी यूनिट न डॉक्टर न स्टॉफ

हांसिये पर राष्ट्रीय बाल्य स्वास्थ्य कार्यक्रम, जिला अस्पताल के स्टोर रूम के हाफ कक्ष डीईआईसी यूनिट न डॉक्टर न स्टॉफ

डिजिटल डेस्क, पन्ना। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत एक नव परिर्वतनकारी और महत्वाकांक्षी पहल राष्ट्रीय बाल्य स्वास्थ्य कार्यक्रम आरबीएसके आरंभ किया गया था जिसका उद्देश्य ० से १८ वर्ष आयु वर्ग के बच्चों की स्वास्थ्य जांच बीमारियों को पहचानने के लिए एक व्यवस्थित दृष्टिकोण के साथ नि:शुल्क उपचार कराना है। जन्म लेकर १८ वर्ष की आयु वर्ग की ४-डी बीमारियों जन्मजात विकृति, कमियां, विकासत्मक देरी और विकलांगता के चिन्हित सभी बच्चों को जांच व उपचार की सुविधा उपलब्ध कराना है। भारत सरकार के इस कार्यक्रम को प्रारंभ हुए लगभग ०९ साल पूरे हो चुके है परंतु पन्ना जिला जिसकी स्थिति स्वास्थ्य सेवाओं के मामले बेहद ही कमजोर है भारत सरकार के बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम की स्थिति हांंसिए पर बनी हुई है।

कार्यक्रम के प्रारंभ के नौ साल बाद भी इसे क्रियान्वयन करने के लिए जो संरचनात्मक व्यवस्था तैयार होनी जानी चाहिए उसकी स्थिति यह है कि जिला स्तर पर राष्ट्रीय बाल्य स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत जिला अस्पताल पन्ना में जिला शीघ्र हस्तक्षेप केन्द्र डीईआईसी बनाया गया है वह अस्पताल प्रबंधन द्वारा जिला अस्पताल में स्थित कबाड़ कक्ष के आधे कमरें में संचालित हो रहा है। डीईआईसी की स्टॉफ संरचना के अनुसार चिकित्सक, पैरामेडिकल स्टॉफ, सपोर्टिग स्टॉफ होना चाहिए परंतु यूनिट में काम करने के लिए सिर्फ एक नेत्र सहायक की ही पदस्थापना है। जहां पर न तो जांच उपचार के उपकरण है और न ही किसी तरह की व्यवस्थायें बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत सभी सरकारी स्कूलों एवं आंगनबाडी केन्द्रों में दर्ज बच्चों की स्क्रीनिंग कर प्राथमिक रूप से बीमारी पाए गए बच्चों को चिन्हित करने के लिए जिलें में कुल ११ चलित घुमंतू दल एमएसटी की व्यवस्था और प्रत्येक दल में आयुष पुरूष एवं महिला चिकित्सक, एएनएम एवं फार्मासिस्ट का होना अनिवार्य है उसको लेकर स्थिति यह है कि ११ मोबाइल टीमें की जगह ०७ टीमेंं ही काम कर रही है जिनमें से किसी भी टीमें के पास एएनएम नहीं हैं। जो ७ टीमें का कर रही है उनमें भी सिर्फ ०४ टीमें फार्मासिस्ट है। साथ ही ०७ टीमों में से एक ही टीम में आयुष महिला डॉक्टर जिसके चलते जिले के कुल बच्चों में से ५० प्रतिशत बच्चों की स्क्रींनिग ही नही हो पा रही है और राष्ट्रीय बाल्य स्वास्थ्य कार्यक्रम की जिलें में दयनीय स्थिति बनी हुई है।

स्कूलों और आंगनबाडी केन्द्रों में ०२ लाख ५२ हजार ६४६ बच्चे

राष्ट्रीय बाल्य स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत संस्थागत प्रसव की स्थिति में बच्चे की जन्मजात विकृति एवं बीमारी की पहचान वहीं पर हो जाती है। जिन बच्चों घर में जन्म लेते है ऐसे बच्चों ० से ०६ सप्ताह तक बच्चों की स्क्रीनिंग की जिम्मेदारी तथा स्वास्थ्य केन्द्रों से उपचार जांच हो यह कार्य आशा वर्करों का है वहीं स्कूलों तथा आंगनबाडी केन्द्रों में दर्ज सभी बच्चों की स्क्रीनिंग तथा ४-डी बीमारियों का चिन्हांकन करने का दायित्व मोबाइल टीम में काम करने वाले आयुष महिला तथा पुरूष चिकित्सक का होता है। मोबाइल टीम ४-डी के तहत चिन्हित बच्चों की जानकारी पोर्टल के साथ जिला स्तर डीईआईसी के साथ साझा करती है और बच्चों की बीमारी अनुसार चिकित्सक जांच एवं उपचार से संबंधित कार्य की व्यवस्थायें डीईआईसी जिला शीघ्र हस्तक्षेप केन्द्र के माध्यम से किया जाता है। जिले में स्कूल आंगनबाडी केन्द्रों में बच्चों की कुल संख्या जिसमें ०२ लाख ५२ हजार ६४६ है। जिनके स्वास्थ्य की स्क्रीनिंग मोबाइल टीमों की कमी, कुल २२ महिला एवं पुरूष चिकित्सक के नाम पर कुल ०८ चिकित्सक उपलब्ध होने के चलते अधिकत्म एक साल में ०१ लाख २६ हजार ७२० बच्चों की हो पाना जिलें में संभव है अर्थात जिले में बाल्य स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत ५० फीसदी बच्चों की साल में एक बार स्वास्थ्य जांच की स्क्रीनिंग ही नही हो पा रही है।

वर्तमान सत्र में ७६८६१ बच्चों की अब तक हो सकी जांच स्क्रीनिंग

राष्ट्रीय बाल्य स्वास्थ्य केन्द्र के अंतर्गत एक मोबाइल टीम में दो आयुष चिकित्सक होते है जिन्हें प्रत्येक चिकित्सक को ६०-६० बच्चों की स्कूल एवं आंगनबाडी केन्द्र पहुंचकर स्वास्थ्य जांच करने का लक्ष्य निर्धारित है और इसके आधार पर एक चिकित्सक ६० बच्चों की स्क्रीनिंग कर पाते है। हर माह जिलेे में औसतन २२ कार्य दिवस के दिन मोबाइल टीम स्कूल आंगनबाडी केन्द्रों में प्लान के अनुसार पहँुचती है और शत-प्रतिशत कार्य हो तो मोबाइल टीमों के चिकित्सक जिन कुल संख्या ०८ है अधिकत्म ०१ लाख २६ हजार बच्चों की ही स्क्रीनिंग एवं जांच कर पाने में समर्थ है। जिले में मोबाइल टीमें संसाधनों के अभाव के बावजूद भी पूरे मनयोग के साथ सार्थक परिणाम देने का प्रयास कर रही है। एचएनएम मध्य प्रदेश द्वारा अप्रैल से नवम्बर तक के लिए मोबाइल टीमों के लिए कुल ८४ हजार ४८० बच्चों की स्क्रीनिंग जांच आदि का लक्ष्य निर्धारित किया गया है जिसके विरूद्ध ९१ प्रतिशत उपलब्धी के साथ ही ०८ माह में ७६ हजार ८६१ स्कूलों एवं आंगनबाडी केन्द्रों के दर्ज कुल ७६ हजार ८६१ बच्चों की जांच की गई जिनमें ४-डी के अंतर्गत ०८ हजार ७०२ बच्चे चिन्हित हुए। जिसमें जन्मजात विकृति वाले १५३, विकासत्मक कमी २५३२ विकासत्मक देरी में २३८ तथा बीमारी से पीडित ३१०६ तथा अन्य प्रकार की समस्याओं के २६६६ बच्चे पाए गए। जिनकी आवश्यकता अनुसार जांच उपचार आदि की प्रक्रियां की जांच निरन्तर रूप से की जा रही है।

डीईआईसी यूनिट के लिए नहीं बना भवन

आरबीएसके के अंतर्गत जिला चिकित्सालय कैम्पस में जिला चिकित्सालय से जुडा हुआ जिला शीघ्र हस्तक्षेप केन्द्र का जो कि ६० गुणा ६० वर्ग फुट का दो मंजिला होना चाहिए और इसमें बच्चो के लिए खेल तथा उनकी गतिविधियों से उनके बीमारी की समझ के लिए आवश्यक खेल सामग्री उपलब्ध होनी चाहिए किन्तु डीईआईसी यूनिट के लिए भवन तैयार करने की अब तक कवायद ही शुरू ही नही हो सकी है मंजूर होना और कार्य पूरा होना तो दूर की बात है।

आरबीएसके कार्यक्रम के अंतर्गत केन्द्रित बच्चे

पहली से आठवीं तक शासकीय स्कूलों में दर्ज बच्चे-११४४०९

९वीं से १२वीं तक शासकीय स्कूलों दर्ज बच्चें-४५५६८

०६ माह से ०३ वर्ष तक आंगनबाडी केन्द्रों में दर्ज बच्चे-३८१६५

०३ वर्ष से ०६ वर्ष तक आंगनबाडी केन्द्रों में दर्ज बच्चे-५४५०४

कुल-२५२६४६

संस्थाओं की जिलें में स्थिति

प्राथमिक शालायें- १६३५

माध्यमिक शालायें-७२३

हाई स्कूल -६९

हायर सेकेडरी -५८

कुल -२४८५

जिला शीघ्र हस्तक्षेप केन्द्र डीईआईसी की ऐसी होना चाहिए यूनिट

जिला शीघ्र हस्तक्षेप केन्द्र की जो संरचना निर्धारित है उसमें डीईआईसी यूनिट में शिशु रोग चिकित्सक, दन्त रोग चिकित्सक प्रबंधक, फिजियोथैरिपिस्ट, आडियोलाजिस्ट एवं स्पीच थेरोपिस्ट, नेत्र स्टॉफ नर्स, सहायक, साइकॉलोजिस्ट, सोशल एजूकेटस, काउंसलर सोशल वर्क, डाटा इन्ट्री आपरेटर, कार्यालय सहायक के एक-एक पद कार्यरत होने चाहिए। उक्त इन सभी पदों के विरूद्ध पन्ना जिला चिकित्सालय में संचालित डीईआईसी की यूनिट में मात्र एक नेत्र सहायक ही कार्यरत है। जन्म लेकर १८ वर्ष तक की आयु वर्ग के ४-डी बीमारियों जिसमें जन्मजात विकृति कमियां विकासत्मक देरी और विकलांगता के चिन्हित सभी बच्चों को जांच व उपचार से संबंधित सुविधा उपलब्ध कराना है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार द्वारा भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत एक नव परिर्वतनकारी और महत्वाकांक्षी पहल राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम आरंभ किया गया। जो कि स्वास्थ्य जांच, बच्चों में बीमारियों को पहचाने के लिए एक व्यवस्थित दृष्टिकोण जिन बच्चों की उम्र ० से ०६ सप्ताह की होती है जिसकी जिम्मेदारी आशा वर्कर को दी जाती है।

इनका कहना है

इस संबध में शासन को पत्र लिखा गया है, डीईआईसी यूनिट के लिए बजट है परंतु केन्द्र का भवन बनाने के लिए जगह नहीं होने से बन नहीं पाया है। स्टॉफ की पदस्थापना एनएचएम से होनी है। शाहनगर में एक भी मोबाइल यूनिट नहीं हैं जिसके चलते स्वास्थ्य विभाग की टीम स्कूलों एवं आंगनबाडी केन्द्रों के बच्चों की जांच, स्क्रीनिंग के लिए निर्देशित किया गया है।

डॉ. व्ही.एस. उपाध्याय

सीएमएचओ, पन्ना

Created On :   21 Dec 2023 5:47 PM IST

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