साइबर अपराध के मामले 2017 के बाद दोगुने से अधिक हुए, पुलिस महकमे में पर्याप्त प्रशिक्षण की कमी

Cyber crime cases more than doubled after 2017, lack of adequate training in police department
साइबर अपराध के मामले 2017 के बाद दोगुने से अधिक हुए, पुलिस महकमे में पर्याप्त प्रशिक्षण की कमी
चुनौती साइबर अपराध के मामले 2017 के बाद दोगुने से अधिक हुए, पुलिस महकमे में पर्याप्त प्रशिक्षण की कमी

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। प्रौद्योगिकी के विकास के साथ, साइबर अपराध पूरे देश में एक प्रमुख मुद्दा बनकर उभरा है। ये अपराध भौगोलिक सीमाओं को पार कर जाते हैं, जिससे अपराधियों को ट्रैक करना मुश्किल हो जाता है। धोखेबाज जहां भोले-भाले लोगों को ठगने के लिए नए-नए तरीके खोजते रहते हैं, वहीं पुलिस के लिए यह एक बड़ी चुनौती भी बन गई है।

सरकारी डेटा साइबर अपराध की बढ़ती प्रवृत्ति की ओर इशारा करता है और एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, मामले 2018 में 21,796 से बढ़कर 2020 में 50,035 हो गए हैं।

गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने अपनी हालिया रिपोर्ट में कहा कि पुलिस के लिए अपराधियों द्वारा अपनाए गए नए तौर-तरीकों और प्रौद्योगिकी रुझानों पर अपडेट रहना महत्वपूर्ण है। समिति ने बढ़ती प्रवृत्ति पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त की और कहा कि केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को बढ़ते खतरे से निपटने के लिए एक साथ आने की जरूरत है।

रिपोर्ट में साइबर अपराध के खतरे से लड़ने के लिए कई राज्यों में पर्याप्त बुनियादी ढांचे की कमी का भी खुलासा किया गया है। इसमें कहा गया है कि पंजाब, राजस्थान, गोवा, असम में एक भी साइबर क्राइम सेल नहीं है, जबकि आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में सिर्फ एक या दो की स्थापना की गई है।

इस पर ध्यान देते हुए, समिति ने सिफारिश की कि केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) राज्यों को सभी जिलों में साइबर सेल स्थापित करने की सलाह दे सकता है। राज्यों को साइबर क्राइम हॉटस्पॉट का नक्शा बनाना चाहिए, जो अपराधों का त्वरित पता लगाने में मदद करेगा और उन्हें रोकने के लिए सक्रिय उपाय करेगा।

समिति ने पाया कि ये अपराध मुख्य रूप से वित्तीय लेनदेन से संबंधित हैं और अपराधी न केवल निर्दोष और कमजोर लोगों, विशेष रूप से बुजुर्ग लोगों को निशाना बनाते हैं और उनकी बचत को ठगते हैं, बल्कि जाने-माने व्यक्तियों और मशहूर हस्तियों को भी ठगते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, समिति का विचार है कि देश में बढ़ते साइबर अपराधों से निपटने के लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता है।

समिति अनुशंसा करती है कि एसवीपीएनपीए, एनईपीए को साइबर कानूनों, साइबर अपराध जांच, डिजिटल फोरेंसिक के आवश्यक ज्ञान के साथ पुलिस कर्मियों को प्रशिक्षित करने के लिए राज्य प्रशिक्षण अकादमियों के साथ समन्वय करना चाहिए और साइबर अपराधों से निपटने के लिए उन्हें समय-समय पर नए तकनीकी उपकरणों पर अपग्रेड करना चाहिए।

इसमें कहा गया है, समिति ने देखा कि साइबर अपराध जांच के प्रबंधन में राज्यों को जनशक्ति और संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। इसने सिफारिश की कि गृह मंत्रालय को नागरिक समाज के आईटी विशेषज्ञों के स्वयंसेवी सहायता समूह बनाने पर विचार करना चाहिए जो साइबर चोरों को ट्रैक करने और उन्हें न्याय दिलाने के तरीकों को विकसित करने में योगदान दे सकते हैं।

इसमें कहा गया है, राज्य/केंद्र शासित प्रदेश की पुलिस को साइबर अपराधों की तत्काल रिपोटिर्ंग के लिए एक साइबर क्राइम हेल्प डेस्क बनाना चाहिए, जिससे उनके द्वारा जल्द जांच की जा सके। समय पर हस्तक्षेप से ऐसे अपराधों की रोकथाम के साथ-साथ पीड़ितों को राहत मिल सकती है।

समिति ने सुझाव दिया कि गृह मंत्रालय साइबर ट्रेनिंग लैब्स की स्थापना और सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मौजूदा साइबर ट्रेनिंग इंफ्रास्ट्रक्च र को मजबूत/उन्नत करने के लिए पर्याप्त फंड आवंटित कर सकता है और आवश्यक संसाधनों का विस्तार कर सकता है। यह देखा गया कि साइबर अपराधों से निपटने के लिए पुलिस कर्मियों का पारंपरिक प्रशिक्षण पर्याप्त नहीं है, वहीं दूसरी ओर ये अपराधी तकनीक-प्रेमी हैं और नियमित रूप से नए तौर-तरीकों का पालन कर रहे हैं।

सोर्सः आईएएनएस

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Created On :   27 Aug 2022 4:00 PM IST

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