संकष्टी चतुर्थी व्रत सोमवार को : इस 1 मंत्र से पूरे होंगे सभी रूके काम

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संकष्टी चतुर्थी व्रत सोमवार को : इस 1 मंत्र से पूरे होंगे सभी रूके काम
संकष्टी चतुर्थी व्रत सोमवार को : इस 1 मंत्र से पूरे होंगे सभी रूके काम


डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली।  संकष्टी चतुर्थी का अर्थ है संकट को हरने वाली "चतुर्थी"। हिंदू पंचाग के अनुसार हर महीने संकष्टी चतुर्थी कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के चौथे दिन मनायी जाती है। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को "संकष्टी चतुर्थी या सकट चतुर्थी" कहा जाता है। शुक्ल पक्ष में आने वाली चतुर्थी को "विनायक चतुर्थी" के नाम से जाना जाता है। कहते हैं कि अगर चतुर्थी मंगलवार के दिन हो तो उसकी महत्वता बढ़ जाती है और उसे अंगारकी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस पर्व को दक्षिण भारत में उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक व्रत धारण किया जाता है।  इस दिन भगवान गणेश के लिए किया गया व्रत विद्या, बुद्धि, सुख-समृद्धि की दृष्टि से बहुत ही लाभदायक माना जाता है।

 

 

जानें पूजन का विधि विधान-

 

- इस दिन व्रत रखें. सूरज उगने से पहले स्नान कर पूजा करें 

 

- पूजा के दौरान धूप जलाएं और इस मंत्र का जाप करें

 

गजाननं भूत गणादि सेवितं, कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।। 

 

- पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुख करके आसन पर बैठकर भगवान गणेश का पूजन करें

 

- शाम के समय व्रत पूर्ण करने से पहले संकष्टी व्रत कथा का पाठ करें। 

 

- संकष्टी व्रत का पूजन शुभ मुहूर्त में करना ही लाभदायक माना जाता है

 

- 3 फरवरी 2018 को पूजा का शुभ मुहूर्त रात 9 बजकर 20 मिनट से शुरु होगा और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत खोला जाता है।


 

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पूजन मुहूर्त-

चंद्रोदय- शाम 21:08 बजे

 

चतुर्थी मुहूर्त प्रारंभ - 3 फरवरी 2018 सुबह 10:36 बजे से
चतुर्थी तिथि समाप्त - 4 फरवरी 08:57 बजे तक।

 

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संकष्टी चतुर्थी कथा- 

 

कथा के अनुसार, सतयुग में महाराज हरिश्चंद्र के नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार उसने बर्तन बनाकर आंवा लगाया पर आंवा पका ही नहीं, बर्तन कच्चे रह गए। बार-बार नुकसान होते देख उसने एक तांत्रिक से पूछा तो उसने कहा कि बच्चे की बलि से ही तुम्हारा काम बनेगा। तब उसने तपस्वी ऋषि शर्मा की मृत्यु से बेसहारा हुए उनके पुत्र को पकड़ कर सकट चौथ के दिन आंवा में डाल दिया, लेकिन बालक की माता ने उस दिन गणोश जी की पूजा की थी। बहुत तलाशने पर जब पुत्र नहीं मिला तो गणेश जी से प्रार्थना की। सबेरे कुम्हार ने देखा कि आंवा पक गया, लेकिन बालक जीवित और सुरक्षित था। डर कर उसने राजा के सामने अपना पाप स्वीकार किया। राजा ने बालक की माता से इस चमत्कार का रहस्य पूछा तो उसने गणेश पूजा के विषय में बताया। तब राजा ने संकट चौथ की महिमा स्वीकार की तथा पूरे नगर में गणेश पूजा करने का आदेश दिया। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकट हारिणी माना जाता है।
 

Created On :   3 March 2018 7:11 AM GMT

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