एक भाई की जन्मतिथि, तो दूसरे की पुण्यतिथि, खून के साथ तारीखों में भी कायम रहा रिश्ता

actor,singer ashok kumar and kishor kumar are sharing this date
एक भाई की जन्मतिथि, तो दूसरे की पुण्यतिथि, खून के साथ तारीखों में भी कायम रहा रिश्ता
एक भाई की जन्मतिथि, तो दूसरे की पुण्यतिथि, खून के साथ तारीखों में भी कायम रहा रिश्ता

डिजिटल डेस्क, मुंबई। आज हिंदी सिनेमा की दो दिग्गज हस्तियों को याद किया जा रहा हैं। ये दोनों हस्तियां खून के रिश्ते में बंधी थीं। किस्मत देखिए कि आज एक भाई का जन्मदिन है तो दूसरे भाई की पुण्यतिथि। हम बात कर रहे हैं बॉलीवुड के बेहतरीन सिंगर और एक्टर किशोर कुमार और उनके एक्टर भाई अशोक कुमार की। जी हां दोस्तों आज किशोर दा की पुण्यतिथि है और उनके बड़े भाई अशोक कुमार का जन्मदिवस है। दोनों भाईयों ने असल जिंदगी के साथ-साथ तारीखों में भी अपना रिश्ता कायम रखा है। इस खास दिन को हम भी उनके कुछ किस्सों से याद करेंगे।

भाई अशोक बनाना चाहते थे एक्टर, लेकिन बन गए सिंगर

मध्यप्रदेश के खंडवा में 4 अगस्त 1929 को मध्यवर्गीय बंगाली परिवार में अधिवक्ता कुंजी लाल गांगुली के घर जब सबसे छोटे बेटे ने जन्म लिया तो शायद किसी को भी इस बात का अंदाजा नहीं होगा कि ये परिवार का नाम रोशन करेगा। भाई-बहनों में सबसे छोटे नटखट आभास कुमार गांगुली उर्फ किशोर कुमार का रुझान बचपन से ही संगीत की ओर था। अभिनेता और गायक के.एल. सहगल के गानों से प्रभावित किशोर कुमार उनकी ही तरह गायक बनना चाहते थे।

सहगल से मिलने की चाह लिए किशोर कुमार 18 साल की उम्र मे मुंबई पहुंचे, लेकिन उनकी इच्छा पूरी नहीं हो पाई। उस समय तक उनके बड़े भाई अशोक कुमार बतौर अभिनेता अपनी पहचान बना चुके थे। अशोक कुमार चाहते थे कि किशोर नायक के रूप में अपनी पहचान बनाएं, लेकिन खुद किशोर कुमार को अदाकारी की बजाय गायक बनने की चाह थी और किसी भी तरह की संगीत की शिक्षा लिए बिना ही किशोर ने अपने इरादे मजबूत कर लिए थे, लेकिन भाई ने उन्हें अभिनय से जोड़ दिया। किशोर अपने भाई से ज्यादा पैसा और नाम कमाना चाहाते थे। उन्हें लगा एक अभिनेता के रूप में वो केवल अपने भाई की परछाई ही बन कर रह जाएंगे, इसलिए फिल्मों में गाने की उनकी ललक और भी बढ़ गई।

1946 में एक्टिंग और 1948 में सिंगिग में किया पदार्पण

किशोर दा की शुरुआत एक अभिनेता के रूप में 1946 में आई फिल्म "शिकारी" से हुई थी। इस फिल्म में उनके बड़े भाई अशोक कुमार ने प्रमुख भूमिका निभाई थी, लेकिन बात नहीं बनीं फिर उन्हें 1948 में बनी फिल्म "जिद्दी" में देव आनंद के लिए गाना गाने का मौका मिला।  "जिद्दी" की सफलता के बावजूद उन्हें न तो पहचान मिली और न कोई खास काम मिला।

शुरू में किशोर दा को एसडी बर्मन और अन्य संगीतकारों ने अधिक गंभीरता से नहीं लिया था और उनसे हल्के स्तर के गीत रिकॉर्ड करवाए गए, लेकिन किशोर दा ने 1957 में बनी फिल्म "फंटूश" में "दुखी मन मेरे" गीत से अपनी ऐसी धाक जमाई कि जाने माने संगीतकारों को किशोर कुमार की प्रतिभा का लोहा मानना पड़ा। इसके बाद एसडी बर्मन ने किशोर कुमार को अपने संगीत निर्देशन में कई गीत गाने का मौका दिया।

आरडी बर्मन ने रिकॉर्ड करवाए कईं गाने

आरडी बर्मन के संगीत निर्देशन में किशोर कुमार ने "मुनीम जी", "टैक्सी ड्राइवर", "फंटूश", "नौ दो ग्यारह", "पेइंग गेस्ट", "गाईड", "ज्वेल थीफ", "प्रेम पुजारी", "तेरे मेरे सपने" जैसी फिल्मों में अपनी जादुई आवाज से फिल्मी संगीत के दीवानों को अपना दीवाना बना लिया। एक अनुमान के अनुसार किशोर कुमार ने वर्ष 1940 से वर्ष 1980 के बीच के अपने करियर के दौरान करीब 574 से अधिक गाने गाए।

किशोर दा ने हिन्दी के साथ ही तमिल, मराठी, असमी, गुजराती, कन्नड़, भोजपुरी, मलयालम और उड़िया फिल्मों के लिए भी गीत गाए। उनको आठ फिल्म फेयर पुरस्कार मिले, उनको पहला फिल्म फेयर पुरस्कार 1969 में "अराधना" फिल्म के गीत "रूप तेरा मस्ताना प्यार मेरा दीवाना" के लिए दिया गया था। किशोर कुमार की खासियत ये थी कि उन्होंने देव आनंद से लेकर राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन के लिए अपनी आवाज दी और इन सभी अभिनेताओं पर उनकी आवाज ऐसी रची बसी मानो किशोर खुद उनके अंदर मौजूद हों।

81 में एक्टिंग, 600 फिल्मों में गायन और 18 फिल्मों का किया निर्देशन 

किशोर कुमार ने 81 फिल्मों में अभिनय और 600 से ज्यादा फिल्मों में गाने गाए।18 फिल्मों का निर्देशन भी किया। फिल्म "पड़ोसन" में उन्होंने जिस मस्त मौला आदमी के किरदार को निभाया, वही किरदार वो जिंदगीभर अपनी असली जिंदगी में निभाते रहे। 

साल 1987 मे किशोर कुमार ने निर्णय किया कि वो फिल्मों से संन्यास लेने के बाद वापस अपने शहर खंडवा लौट जाएंगे। वो अक्सर कहा करते थे कि दूध, जलेबी खाएंगे खंडवा में बस जाएंगे, लेकिन उनका ये सपना अधूरा ही रह गया। 13 अक्तूबर 1987 को किशोर कुमार को दिल का दौरा पड़ा और वो इस दुनिया को अलविदा कह गए, लेकिन आज भी खंडवा में उनकी पुण्यतिथि नहीं मनाई जाती है। इसका कारण है कि खंडवा के लोग उन्हें अमर मानते हैं और वो सिर्फ उनका जन्मदिन ही मनाते हैं। 

अशोक कुमार ने भाई की मौत के बाद नहीं मनाया बर्थडे

हिंदी सिनेमा में एक जगमगाता सितारा रहे अशोक कुमार का जन्‍म 13 अक्‍टूबर 1911 को भागलपुर (बिहार) के एक मध्यम वर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था। उन्‍होंने कई हिट फिल्‍मों में काम किया और कई जबदरदस्त भूमिकाएं निभाए। अशोक कुमार को पद्म भूषण से सम्मानित किया जा चुका है। अपने जन्मदिन पर ही भाई की मौत के बाद अशोक कुमार ने अपना जन्मदिन मनाना छोड़ दिया था। 

अशोक कुमार ने फिल्‍म "किस्‍मत" में नेगेटिव रोल किया था और समय किसी भी कलाकार का ग्रे शेड रोल करना बड़ी बात होती थी। बावजूद इसके उनकी फिल्म इतनी हिट हुई थी कि किस्मत ने बॉक्स आफिस के सारे रिकार्ड तोड़ते हुए कोलकाता के चित्रा सिनेमा हॉल में लगभग चार साल तक लगातार चलने का रिकार्ड बनाया।

पहले डारेक्टर ने बदला नाम

अशोक कुमार के एक्टर बनना भी खिसी फिल्मी कहानी जैसा ही है। कॉलमिस्ट जयप्रकाश चौकसे के अनुसार, "अशोक कुमार मुंबई आकर निर्माता-निर्देशक हिमांशु राय के साथ टेक्नीशियन के रूप में काम करने लगे थे। हिमांशु 1936 में फिल्म जीवन नैया बना रहे थे, लेकिन तभी अफवाह उड़ी कि फिल्म के हीरो हुसैन का हिमांशु की पत्नी देविका रानी, जो फिल्म की हीरोइन भी थीं, से अफेयर है। इसके बाद हिमांशु नाराज हो गए और अशोक कुमार से कहा कि वो अब उनकी फिल्म के हीरो होंगे। अशोक कुमार ने एक्टर बनने से काफी इंकार किया, लेकिन हिमांशु नहीं माने। इस तरह अशोक कुमार के एक्ट‍िंग करियर की शुरुआत हुई।

अशोक कुमार का असली नाम कुमुदलाल गांगुली था, लेकिन हिमांशु राय के कहने पर उन्होंने अपना स्कीन नेम अशोक कुमार रख लिया और फिर वो आगे इसी नाम से जाने गए। हालांकि लोग उन्हें प्यार से दादामुनी कह कर भी बुलाते थे। 1936 में आई उनकी फिल्म "अछूत कन्या" सुपरहिट साबित हुई।
"अछूत कन्या" हिंदी सिनेमा की शुरुआती हिट फिल्मों में शामिल थी। इस फिल्म में भी अशोक कुमार की हीरोइन देविका रानी ही थी। इस फिल्म के बाद दोनों की जोड़ी सुपरहिट हो गई और दोनों ने एक बाद एक लगातार 6 फिल्में की। दोनों की आखिरी फिल्म "अंजान" थी जो बॉक्स ऑफिस पर नहीं चली। अशोक कुमार इन सभी फिल्मों के हीरो तो थे लेकिन वो देविका रानी की छाया में ही काम करते रहे। इसके बाद अशोक कुमार की जोड़ी लीला चिटनिस के साथ भी काफी पसंद की गई और दोनों ने "कंगन", "बंधन" और "आजाद" जैसी कामयाब फिल्में दी, लेकिन 1941 में लीला चिटनिस के साथ आई उनकी फिल्म "झूला" ने उन्हें हिंदी सिनेमा के सबसे भरोसेमंद अभिनेताओं में शामिल कर दिया।

कई सितारों के मेंटर भी रहे

अशोक कुमार हिंदी सिनेमा के कई सितारों के मेंटर भी रहे। उनके प्रोडक्शन तले बनी फिल्म "जिद्दी" से देवआनंद ने अपने करियर की शुरुआत की। इसी फिल्म से हिंदी सिनेमा को प्राण जैसा अभिनेता भी मिला। अशोक कुमार की गाइडेंस में ही बॉम्बे टॉकीज के जरिए मधुबाला का करियर भी लॉन्च हुआ। 1949 में आई फिल्म महल में अशोक कुमार और मधुबाला साथ थे और इसी फिल्म का गाना "आएगा आने वाला" भी बहुत पॉप्युलर हुआ था और इसी गाने ने लता मंगेश्कर को भी पहचान दिलाई थी।
ऋषिकेश मुखर्जी और शक्ति सामंता जैसे निर्देशकों की पौध तैयार करने का श्रेय भी अशोक कुमार को दिया जाता है।

जब अशोक के कारण पत्नी कृष्णा से नाराज हो गए थे राज कपूर

अशोक कुमार होम्योपैथी की भी प्रैक्टिस किया करते थे और माना जाता है कि इसके जरिए उन्होंने कई लोगों की गंभीर बीमारियों का इलाज भी किया। "राज कपूर की शादी के दौरान अशोक कुमार फेमस नहीं हुए थे, लेकिन शादी में किसी ने चिल्लाया कि अशोक कुमार आए हैं तो राज कपूर की दुल्हन कृष्णा ने यह सुनकर अपना घुंघट हटा लिया था। ये सब होने के बाद राज कपूर अपनी पत्नी से कई दिनों तक नाराज रहे थे। बहुत कम लोग जानते हैं कि शोले, जंजीर जैसी फ़िल्मों के को-राइटर सलीम खान की पहली कहानी अशोक कुमार ने ही ख़रीदी थी। वो उनके करीबी मित्र थे। अशोक कुमार ने फिल्मों के पेशे को बेहद सम्मान दिलाया।

Created On :   13 Oct 2017 10:46 AM GMT

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