Bday special: वहीदा रहमान, जिन्होंने गुरु दत्त से मुहब्बत की और अदाकारी से इश्क
डिजिटल डेस्क , मुंबई । जब भी बॉलीवुड की बेहतरीन डांसर और एक्ट्रेस की बात की जाती है उसमें गिनी चुनीं अदाकाराओं के नाम लिए जाते हैं, जिनमें से वहीदा रहमान एक हैं। वहीदा जी ने अपने दौर के बेहतरीन एक्टर्स और बेहतरीन फिल्मों में काम किया। जिस वक्त लड़कियों को घरों से बाहर निकलने तक के लिए इजाजत नहीं हुआ करती थी, तब वहीदा ने चैन्नई और मुंबई (तब बंबई) में भरनाट्यम की शिक्षा ली। साथ ही कई स्टेज परफॉर्मेंस भी दिए। वहीदा को दर्शकों ने हर किरदार में पसंद किया चाहे वो नयिका का किरदार हो या खलनायिका का। जिस भी किरदार में ढलीं उसे अपना बना लिया। 3 फरवरी 1938 को जन्मीं वहीदा रहमान 79 साल की होने के बाद भी लाजवाब लगती हैं। आपको बता दें उर्दू में वहीदा का मतलब ही "लाजवाब" होता है। अपने नाम की ही तरह उनकी खूबसूरती, अदाकारी और डांसिग भी लाजवाब है। फिल्म जगत मे जितने उनके काम के चर्चे हुआ करते थे, उतने ही उनके मोहब्बत के किस्सों की चर्चा होती थी, लेकिन उन्होंने किसी भी बात का खुद पर असर नहीं होने दिया और अपना काम करती गईं।
वहीदा का जन्म चेन्नई (तब मद्रास) में हुआ। उनके पिता डिस्ट्रिक्ट कमिश्नर थे। जब वहीदा काफी कम की उम्र थीं तब उनके वालिद साहब का इन्तकाल हो गया। पिता के बाद घर के हालात खराब होने लगे, तब वहीदा ने घर की कमान संभालते हुए फिल्मों में काम करना शुरू किया। 1955 में तेलुगू फिल्म से एक्टिंग की शुरुआत करने वाली वहीदा रहमान ने जब बॉलीवुड में डेब्यू किया तो हर तरफ छा गईं। गुरू दत्त के साथ "प्यासा" और "कागज के फूल", राज कपूर के सात "तीसरी कसम", देव आनंद के साथ "गाइड" और दिलीप कुमार के साथ "दिल दिया दर्द लिया", सुनील दत्त के साथ "मुझे जीने दो", राजकुमार के साथ "नील कमल" और धर्मेंद्र के साथ "खामोशी" समेत करीब 80 से ज्यादा फिल्मों में काम किया। वहीदा आज भी फिल्मों में काम कर रही हैं और अगले साल फिल्म "विश्ववरुम" में भी वो नजर आएंगी। उनके बर्थडे पर आज हम उनकी लाइफ की कुछ खास बातें आपको बताते हैं, कुछ ऐसी बातें जो आप नहीं जानते होंगे।
डॉक्टर बनने का था सपना
आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में एक परंपरागत मुस्लिम परिवार में 3 फरवरी 1938 को जन्मीं वहीदा रहमान की गिनती बॉलीवुड की शीर्ष अभिनेत्रियों में की जाती है। वहीदा वैसे तो बचपन में डॉक्टर बनना चाहती थीं, लेकिन किस्मत में कुछ और ही लिखा था। उन्होंने डॉक्टरी की पढ़ाई शुरू भी की, लेकिन फेफड़ों में इंफेक्शन की वजह से ये कोर्स वो पूरा नहीं कर सकीं। माता-पिता के कहने पर वहीदा ने भरतनाट्यम नृत्य सीखा। इसके बाद वो मंचों पर प्रस्तुतियां देने लगीं, फिर उन्हें नृत्य के कई प्रस्ताव मिले, लेकिन वहीदा की कम उम्र के चलते उनके पैरेंट्स ने उन प्रस्तावों को ठुकरा दिया।
गुरुदत्त ने पहचाना वहीदा का हूनर
इसके बाद जाने माने डायरेक्टर गुरुदत्त की नजर उन पड़ी और उन्होंने वहीदा को फिल्म "सीआईडी (1956)" में खलनायिका का किरदार दिया। अपनी दमदार एक्टिंग से वहीदा ने इस किरदार में जान डाल दी, इसके बाद उन्हें एक के बाद एक कई बड़ी फिल्मों के ऑफर मिलना शुरू हो गए, लेकिन वहीदा ने सोच समझकर फिल्मों को चुना और "सीआईडी" की कामयाबी के बाद फिल्म "प्यासा" (1957) में वहीदा रहमान को बतौर हीरोइन के रूप में लिया गया।
कपड़ों के लिए रखी थी शर्त
वहीदा ने अपने करियर की शुरुआत में गुरुदत्त के साथ तीन साल का कॉन्ट्रेक्ट किया था, जिसमें उन्होंने शर्त रखी थी कि वो कपड़े अपनी मर्जी के पहनेंगी और उन्हें कोई ड्रेस पसंद नहीं आई तो उन्हें पहनने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा।
गुरुदत्त से प्यार की चर्चा
तीन फिल्मों और नई हीरोइन होने के बावजूद कपड़ों को लेकर नखरे, इंडस्ट्री में कुछ और ही कहानी बयां कर रहे थे। मजबूत व्यक्तिव वाली वहीदा और गुरुदत्त के प्यार के चर्चे शुरू हो गए। कहा जाता है कि इनकी फिल्म "कागज के फूल" (1959) की कहानी इन्हीं के जीवन पर आधारित थी। इसके बाद दोनों ने फिल्म "चौदहवीं का चांद" (1960) और "साहिब बीवी और गुलाम" (1962) में साथ-साथ काम किया।
गुरु दत्त से प्यार और दूरी
गुरु दत्त, वहीदा से बेपनाह इश्क करते थे। गुरु दत्त ने गीता दत्त से शादी की थी, लेकिन दोनों के रिश्ते में बहुत दिन तक प्यार नहीं रह पाया। इसकी वजह थी गुरु और वहीदा की बेपनाह मुहब्बत। जैसा कि कहा जाता है ज्यादा मीठा कड़वाहट की दस्तक होती है, यही इन दोनों की प्रेम कहानी के साथ भी हुआ। एक समय ऐसा भी आया जब वहीदा और गुरु दत्त एक दूसरे को देखना भी पसंद नहीं करते थे।
उस दौर में ऐसी खबरें उड़ने लगी कि गुरु दत्त ने वहीदा रहमान को ठुकरा दिया। जिसका कारण था वहीदा की अपनी मर्जी से चीजों को चुनने की आदत। गुरु, वहीदा रहमान से इतना प्यार करते थे कि हमेशा अपनी आंखों के सामने उनको रखना चाहते थे। वहीदा रहमान के बहनोई रउन ने खुद इस बात का खुलासा किया था कि गुरु, वहीदा से शादी करना चाहते थे। उन्होंने कहा है कि गुरु दत्त धर्म बदलकर वहीदा से शादी के लिए भी तैयार हो गए थे।
जब भारत में गुरु दत्त के मुसलमान बनकर वहीदा से शादी की चर्चाएं जोरों पर थीं, तो उनकी पत्नी (गीता दत्त) का दिल टूट गया था। उनकी पत्नी गीता लंदन में थीं। उन्हें जल्द ही घर लौटना था, लेकिन वह घर लौटने के बजाय अपने कश्मीर स्थित घर चली गईं। कुछ दिन हफ्तों में तब्दील हो गए पर गीता घर वापस आने का नाम ले रही थीं। ये वो वक्त था जब गुरु दत्त को पत्नी या प्रेमिका में एक चुनना था और उन्होंने गीता का साथ चुना। गीता के घर वापस ना आने के कारण गुरु दत्त का धैर्य जवाब देने लगा तो उन्होंने गीता के ऊपर वापस आने की लिए दबाव डालना शुरू किया। जिसके बाद उन्होंने खुद को वहीदा से दूर करना शुरु कर दिया। कहते हैं इश्क में मिली नाकामयाबी के बाद गुरु दत्त को नींद तक आना बंद हो गया था और आखिरकार वहीदा की जुदाई के गम ने उन्हें दुनिया से दूर कर दिया।
गुरु दत्त सुसाइड के बाद भी लगातार करती रहीं काम
गुरु दत्त ने 10 अक्टूबर, 1964 में सुसाइड कर लिया और इसके बाद वहीदा अकेली हो गईं, लेकिन इसके बाद भी उन्होंने अपने करियर पर आंच नहीं आने दी और दोगुनी हिम्मत के साथ आगे बढ़ीं। राज कपूर के साथ फिल्म "तीसरी कसम" में उन्होंने नाचने वाली हीराबाई का किरदार निभाया था। इसमें एक गाना था "पान खाए सैंया हमारो..मलमल के कुर्ते पर पीक लाले लाल"। ये गाना बहुत ही ज्यादा पॉपुलर हुआ था। बिहार के फारबिसगंज के बैकग्राउंड में बनी इस फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था।
फिल्म "नीलकमल" ने फिर पहुंचाया बुलंदियों पर
1965 में "गाइड" के लिए वहीदा को फिल्मफेयर अवार्ड मिला। वहीदा और देवानंद की जोड़ी को भी दर्शकों ने खूब सराहा। इसमें वहीदा रहमान और देवानंद की जोड़ी ने ऐसा कमाल किया कि दर्शक सिनेमाघरों में फिल्म देखने को टूट पड़ते थे। वहीदा को इस फिल्म के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था। दोनों ने "काला बाजार", "गाइड" और "प्रेम पुजारी" जैसी सफल फिल्मों में काम किया। 1968 में आई "नीलकमल" के बाद एक बार फिर से वहीदा रहमान सभी का आकर्षण रहीं, इस फिल्म में वो अभिनेता मनोज कुमार और राजकुमार के साथ नजर आई थीं, ये फिल्म उनके करियर को बुलंदियों तक पहुंचाने में सफल साबित हुई। इसके बाद, अभिनेता कंवलजीत ने शादी का प्रस्ताव रखा, जिसे वहीदा रहमान ने खुशी से स्वीकार कर लिया और शादी के बंधन में बंध गईं। साल 2002 में उनके पति का आकस्मिक निधन हो गया। वो एक बार फिर अकेली हो गईं, लेकिन टूटी नहीं, उन्होंने हार नहीं मानी और लगातार काम करती रहीं।
पद्मश्री और पद्मभूषण से की गईं सम्मानित
वहीदा ने अपने फिल्मी करियर के दौरान दो बार फिल्मफेयर का पुरस्कार जीता, पहला सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार उन्होंने 1969 की फिल्म "नीलकमल" और दूसरा 1967 में आई "गाइड" के लिए जीता। अभिनय के क्षेत्र में बेमिसाल प्रदर्शन करने वाली वहीदा को 1972 में पद्मश्री और साल 2011 में पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
Created On :   3 Feb 2018 12:39 PM IST