पंचम दा : शोहरत से एकाकीपन, 9 साल की उम्र से शुरु हुआ सफर
टीम डिजिटल, नई दिल्ली। आरडी बर्मन बचपन में पांचवे सुर में रोते थे इसलिए उनका नाम ही पड़ गया पंचम दा। हालांकि उन दिनों उनके परिवार के सदस्यों को ये नहीं पता था कि यही बच्चा एक दिन संगीत की दुनिया में जाना माना नाम बनेगा। 27 जून को उनके जन्मदिन पर आज फिर उन्हें याद किया जा रहा है।
पंचम दा की कहानी को किसी एक खांचे में नहीं बांध सकते। कामयाबी, नाकामयाबी, शोहरत, एकाकीपन... सब कुछ इसमें मिलेगा। कलकत्ता में उनका जन्म हुआ था। जीनियस पिता के जीनियस पुत्र होने के लक्षण बचपन में ही दिखने लगे थे। पिता ने नाम रखा था टबलू। लेकिन एक दिन उन्हें रोते देखा तो अशोक कुमार ने कहा कि ये तो पंचम में रोता है। नाम पड़ गया पंचम। परिवार कलकत्ता से बंबई (अब मुंबई) आया, तो उन्होंने अली अकबर खां साहब से सरोद सीखा। हार्मोनिका भी सीख लिया। समता प्रसाद से तबला सीखा। संगीतकार सलिल चौधरी को उन्होंने हमेशा अपना गुरु माना। नौ साल के थे, जब पहला गाना कंपोज किया। यह गाना सचिन देव बर्मन ने फिल्म फंटूश में इस्तेमाल किया, जो 1956 में रिलीज हुई थी।
कोने में बैठा था बड़ा चश्मा लगाए बच्चा
उसी दौरान महमूद एक फिल्म के लिए सचिन देव बर्मन से मिलने आए। बर्मन दा व्यस्त थे। उन्होंने मना कर दिया। महमूद ने देखा कि बड़ा चश्मा लगाए एक छोटा बच्चा कोने में तबला बजा रहा है। वो पंचम दा थे। महमूद ने सचिन देव बर्मन से इजाजत ली कि पंचम को उनके लिए काम करने दें और इस तरह पंचम को वो फिल्म मिली। फिल्म थी छोटे नवाब, जिसका गाना घर आजा घिर आए बेहद मशहूर हुआ था।
60 का दशक
60 का दशक पंचम दा के लिए कामयाबी और कड़वाहट दोनों लेकर आया। उनका विवाह 1966 में रीता पटेल से हुआ। लेकिन वैवाहिक जीवन सुखद नहीं रहा। 1971 में उनका तलाक हो गया। 1975 में पिता सचिन देव बर्मन नहीं रहे। इन सारी बातों के बीच उनका संगीत फलता-फूलता रहा। एक के बाद एक ऐसी फिल्में आईं, जिनका संगीत बेमिसाल था। उसी दौरान आशा भोसले का साथ भी उन्हें मिला। 80 के दशक में दोनों ने साथ जीवन बिताने का फैसला किया, लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजूर था। कहते हैं जब पंचम दा ने अंतिम सांस ली तो उनकी माँ को यकीन नहीं हुआ कि ये उनका पंचम ही है।
Created On :   27 Jun 2017 1:48 PM IST